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सात समंदर पार पहुंचा ग्रामीण महिलाओं का देसी हुनर

कभी मजदूरी कर जीवन यापन करने वाली बोधगया की ये ग्रामीण महिलाएं आज एक मिसाल बन गई हैं, जिनका हुनर सात समंदर पार भी उपस्थिति दर्ज करा रहा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 24 Nov 2018 09:25 AM (IST)Updated: Sat, 24 Nov 2018 09:25 AM (IST)
सात समंदर पार पहुंचा ग्रामीण महिलाओं का देसी हुनर
सात समंदर पार पहुंचा ग्रामीण महिलाओं का देसी हुनर

विनय कुमार मिश्रा, बोधगया। कभी मजदूरी कर जीवन यापन करने वाली बोधगया की ये ग्रामीण महिलाएं आज एक मिसाल बन गई हैं, जिनका हुनर सात समंदर पार भी उपस्थिति दर्ज करा रहा है। इन महिलाओं ने अपनी हस्तशिल्प कला से आर्थिक स्वावलंबन की एक नई लकीर खिंची है। अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल होने के कारण बिहार के इस इलाके में हर साल विदेशी सैलानी बड़ी तादाद में आते हैं, इसलिए गांवों की इन महिलाओं ने अंग्रेजी भी सीखी। वे अपने उत्पाद के बारे में उन्हें समझा सकती हैं। यहां आने वाले सैलानी इनके द्वारा तैयार बैग आदि सुंदर सामान खरीदकर ले जाते हैं।

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बोधगया के बड़की बभरी, शेखवारा आदि गांवों की इन महिलाओं के जीवन में आया बदलाव और उत्साह देखते बनता है। जूली कहती हैं कि अब उनकी आर्थिक स्थिति पहले से बहुत बेहतर है। शिवकुमारी देवी ने अपनी टेलरिंग दुकान खोल ली है। मेनका मेहंदी रचाती हैं। विदेशी महिलाएं भी उनके पास मेंहदी रचाने को आती हैं।

इन ग्रामीण महिलाओं के हुनर को निखारने में विदेशी सैलानियों ने भी मदद की। यूरोपियन देश माल्टा की कुछ फैशन डिजाइनर व मॉडल ने बोधगया में बोधिवृक्ष के द गार्डेन ऑफ स्माइल्स में करीब 40 महिलाओं को प्रशिक्षण दिया। इनमें बच्चियां भी थीं। क्रिस्टी, इला व मारले की मेहनत रंग लाई और गांवों की महिलाएं बैग से लेकर कपड़े तक तैयार करने लगीं। इनके उत्पादों को माल्टा और स्पेन के कई आयोजनों में प्रदर्शित किया जा चुका है।

श्रीपुर स्थित बोधिवृक्ष परिसर में 2016 में द गार्डेन ऑफ स्माइल्स की नींव माल्टा के फैशन डिजाइनरों व मॉडल्स ने रखी थी, जो यहां बतौर स्वयंसेवीआई थीं। उन्होंने लड़कियों को बेकार पड़े वस्त्रों से सिलाई मशीन पर डिजाइन तैयार कराना सिखाया। उसके बाद सभी क्रोशिया हैंड बैग, वुलेन बैग व कॉटन बैग बनाने लगीं। इससे गांवों की महिलाएं भी प्रेरित हुईं और यह अभियान सफलतापूर्वक आगे बढ़ चला। विदेशी बाजार में इन उत्पादों की मार्केटिंग में भी पूरी मदद की गई।

फैशन डिजाइनरों व मॉडल्स की यह पहल रंग लाई और विदेशी बाजार उपलब्ध हो गया। संस्था के निदेशक धीरेंद्र ने बताया कि गत वर्ष चीन के पर्यटकों ने काफी संख्या में बैग की खरीदारी की और ऑर्डर भी दिए। आज कई ग्रामीण महिलाएं खुद का भी व्यवसाय कर रही हैं। 


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