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क्‍या सभी लोगों को कोरोना वैक्‍सीन लगाने की जरूरत है? जानें-क्‍या कहते हैं एक्‍सपर्ट

कोरोना संक्रमण के मामले भारत में लगातार घट रहे हैं। दूसरे देशों की अपेक्षा भारत में इससे होने वाली मौतों का आंकड़ा भी बेहद कम है। ऐसे में कोविड-19 की वैक्‍सीन किसको दी जाए या नहीं इस पर चर्चा चल रही है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 02 Dec 2020 01:52 PM (IST)Updated: Wed, 02 Dec 2020 06:38 PM (IST)
क्‍या सभी लोगों को कोरोना वैक्‍सीन लगाने की जरूरत है? जानें-क्‍या कहते हैं एक्‍सपर्ट
हर किसी को है कोविड-19 की कारगर वैक्‍सीन का इंतजार।

नई दिल्‍ली (ऑनलाइन डेस्‍क)। कोविड-19 की रोकथाम और इसको खत्‍म करने की तैया‍री के मद्देनजर हर किसी को इसकी कारगर वैक्‍सीन का इंतजार है। इस बीच वैक्‍सीन किसको पहले और किसको बाद में दी जाए, इसको लेकर भी खाका तैयार किया जा चुका है। हालांकि, अब इस बात की चर्चा जोरों पर है कि देश के सभी लोगों को ये वैक्सीन देने की जरूरत होगी या नहीं? इस पर जानकार मानते हैं कि वैक्‍सीन लेने की कतार में सबसे पहले मेडिकल स्‍टाफ हैं, इसके बाद ही दूसरे लोग आते हैं और सभी को इसकी जरूरत नहीं होगी। 

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इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष डॉक्‍टर राजन शर्मा का कहना है कि सभी देशवासियों को कोविड-19 की वैक्‍सीन देने की जरूरत नहीं होगी। उनका कहना है कि भारत लगातार हर्ड इम्‍यूनिटी की तरफ आगे बढ़ रहा है। ऐसे में हमारे लोगों में इम्‍यूनिटी डेवलेप हो रही है। जहां तक वैक्‍सीन को देने की बात है तो इसमें डॉक्‍टर के बाद हाईली रिस्‍क वाले मरीज आते हैं। इसके बाद वो मरीज आते हैं, जो दूसरे गंभीर रोगों से ग्रस्‍त हैं और जिनपर वायरस का अटैक हो सकता है। वैक्‍सीन को उपलब्‍ध करवाने का अर्थ इसकी चैन को तोड़ना है, जो बेहद जरूरी है। उनकी निगाह में एक बार ठीक हो चुके मरीजों को भी इस वैक्‍सीन को देने की जरूरत नहीं होगी। इसकी वजह उनके शरीर में एंटीबॉडीज का डेवलेप होना है।

ये पूछे जाने पर कि क्‍या एक बार इसके संक्रमण से ठीक होने वाले और दोबारा संक्रमित होने वाले को भी वैक्‍सीन देने की जरूरत होगी। उनका कहना है कि ऐसे लोगों में पहले एंटीबॉडी लेवल देखने की जरूरत होगी। डॉक्‍टर राजन का कहना है कि ऐसे लोगों की संख्‍या अभी तक काफी कम है, जो इससे दोबारा संक्रमित हुए हैं। वहीं ऐसे मामलों में जो अब तक देखने को मिला है, उसमें वो माइल्‍ड कंडीशन के हैं, वे लगातार इंप्रूव कर रहे हैं। दूसरी बड़ी बात ये भी है कि आरटीपीसीआर टेस्‍ट में हमें ये तो पता चलता है कि शरीर में वायरस है, लेकिन वो मृत है या जीवित (active or dead virus), इसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाती है। इसका पता लगाने वाला टेस्‍ट और उपकरणों का भी काफी हद तक अभाव है। ऐसे में उनके संक्रमित होने की सटीक जानकारी नहीं मिल पाती है। वहीं यदि समूची आबादी के वैक्‍सीनेशन की बात की जाए तो ये बेहद खर्चीली है।

राजन के मुताबिक, कोविड-19 संक्रमण से ठीक होने वाले किसी भी मरीज का दोबारा संक्रमित होने की आशंका बेहद कम होती है। वहीं ऐसा होने की कई दूसरी वजह भी हो सकती हैं। उनका ये भी कहना है कि ताइवान ने इस वायरस के संक्रमण की रफ्तार को बेहद सफलतापूर्वक रोका है। ये मॉडल पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह वहां के लोगों का इससे बचाव के लिए बनाए गए नियमों का पालन करना है। यही वजह है कि वहां पर बीते 250 दिनों में कोविड-19 का कोई नया मामला सामने नहीं आया है। ये इसलिए बेहद खास है, क्‍योंकि वैक्‍सीन आने के बाद या उससे पहले यदि हम सभी पूरी एहतियात बरतें तो इससे बचे रह सकते हैं और लापरवाही बरतेंगे तो नुकसान ही होगा।


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