पुडुचेरी में फ्रांसीसियों के शासनकाल में हुआ था वाडुवान मसाला मिश्रण का जन्म
गोवा के खान-पान और वहां इस्तेमाल किए जाने वाले मसालों की चर्चा तो फिर भी कभी-कभार सुनने को मिल जाती है पर फ्रांस के जायकों पर पुडुचेरी के खाने के प्रभाव की जानकारी बहुत सीमित है।
नई दिल्ली [पुष्पेश पंत]। पुडुचेरी में फ्रांसीसियों के शासनकाल में अस्तित्व में आया वाडुवान मसाला। जब भी अमेरिकी शेफ अपनी डिशेज में इसका इस्तेमाल करते हैं तो आभार फ्रांस का ही प्रकट करते हैं, हममें से अधिकांश भारत पर बर्तानवी (ब्रिटिश) राज की यादों से इतना अभिभूत रहते हैं कि अक्सर यह भुला देते हैं कि हमारे देश के कुछ हिस्सों पर उनसे कहीं ज्यादा समय तक दूसरी यूरोपीय ताकतों के छोटे उपनिवेश बरकरार रहे हैं। पुर्तगालियों ने गोवा को अपना प्रांत घोषित किया था और फ्रांसीसी साम्राज्य का एक सूबा सरीखा रहा पुडुचेरी।
गोवा के खान-पान और वहां इस्तेमाल किए जाने वाले मसालों की चर्चा तो फिर भी कभी-कभार सुनने को मिल जाती है पर फ्रांस के जायकों पर पुडुचेरी के खाने के प्रभाव की जानकारी बहुत सीमित है। पुडुचेरी में औरोवील नामक ‘अंतरराष्ट्रीय नगर’ में आज भी बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक पहुंचते हैं। शहर के ‘फ्रेंच क्वार्टर’ में फ्रांसीसी हवेलियां और बेकरी की बेहतरीन दुकानें हैं। कुछ रेस्त्रां भी हैं जहां आप लजीज फ्रांसीसी खाना खा सकते हैं मगर वाडुवान मसाले से आपकी मुलाकात अनायास नहीं हो सकती।
उत्तर-दक्षिण का अनूठा संगम
पुडुचेरी में फ्रांसीसियों के शासनकाल में वाडुवान मसाला मिश्रण का जन्म हुआ जिसकी तुलना आप एंग्लो-इंडियन करी पाउडर से कर सकते हैं। वास्तव में यह उत्तर भारतीय सुवासित गरम मसाले और स्वादिष्ट तमिल सांबर मसाले का अनूठा संगम है। इसमें जीरा, धनिया, राई-सरसों, मेथी दाना तो रहते ही हैं, कभी-कभार सौंफ का पुट भी दिया जाता है। लौंग, मोटी (बड़ी) इलायची, काली मिर्च के साथ-साथ जावित्री-जायफल भी इसे आकर्षक सम्मोहन देते हैं। साधारण विलायती करी पाउडर की तरह यह सिर्फ हल्दी-लाल मिर्च की बुनियाद पर नहीं टिका होता।
स्वाद बढ़ाता फ्रांसीसी पुट
वाडुवान मसाले को बनाने के पारंपरिक तरीके में इसमें प्रयोग होने वाले सभी पदार्थों को धूप में खूब अच्छी तरह सुखाया जाता था। फ्रांसीसी अपनी नजाकत-नफासत के लिए मशहूर हैं। स्थानीय जायकों को अपनाने के दौरान उन्होंने इसे अपने अंदाज में परिष्कृत करने का बीड़ा उठाया। सांबर मसाले के कुछ तत्व तो इसमें होते हैं पर दाल के दाने अनुपस्थित रहते हैं। प्याज, हरा या छोटा प्याज तथा लहसुन के बिना वाडुवान मसाला पीसा नहीं जा सकता तो वहीं करी पत्ता इसका आनंद बढ़ाता है। रोजमेरी (गुलमेहंदी) नामक बूटी का समावेश फ्रांसीसी योगदान है।
स्वाद का आखेट
वाडुवान मसाले का इस्तेमाल करी जैसे व्यंजनों में नहीं वरन खालिस फ्रांसीसी व्यंजनों सूप, रोस्ट वगैरह में किया जाता रहा है। शिकार में मारे पशुओं तथा समुद्री जीव-जंतुओं से तैयार किए व्यंजनों में इस मसाला मिश्रण का उपयोग होता था।
यह बात समझ में आती है क्योंकि सागर तटवर्ती प्रदेश होने के कारण यहां ताजे समुद्री जीव इफरात में मिलते हैं और इस भूभाग का एक अंचल वनाच्छादित रहा है जहां औपनिवेशिक शासक आखेट का आनंद लेते थे। यह सुझाना तर्कसंगत है कि इस मसाले की खोज गौरांग हुक्मरानों ने खुद अपने लिए की थी।
शायद यही कारण है कि स्थानीय खान-पान में वाडुवान मसाला अधिक घुसपैठ नहीं कर पाया। हाल में कई अमेरिकी शेफ्स का ध्यान इस नायाब मसाला मिश्रण की ओर गया है। बारबेक्यू शैली के भुने मांस और सब्जियों के ऊपर इसे छिड़क जब वे अपनी कलाकारी का प्रदर्शन करते हैं तो आभार फ्रांस का ही प्रकट करते हैं।
(लेखक प्रख्यात खान-पान विशेषज्ञ हैं)