दूरदर्शी बजट में अर्थव्यवस्था को मजबूती देने का अगले एक दशक का खाका है
सरकार के सामने असली चुनौती आम बजट 2020-21 के प्रस्तावों को प्रभावी रूप से लागू करने की है। क्योंकि पिछले बजट की कई घोषणाएं लागू नहीं हो पाई।
नई दिल्ली, विवेक कौल। किसी बढ़िया योजना-नीति का गलत और किसी खराब योजना-नीति का सही क्रियान्वयन करीब समान नतीजा देते हैं। बजट 2020-21 पेश हो चुका है। अर्थविद बारीक मीमांसा में लगे हैं। जाकी रही भावना जैसी...को चरितार्थ करने वाले भी कम नहीं हैं। अधिकांश की नजर में यह दूरदर्शी बजट है। इसमें अर्थव्यवस्था को मजबूती देने का अगले एक दशक का खाका है।
अर्थव्यवस्था को रफ्ता-रफ्ता गति देते हुए 2024 तक पांच लाख करोड़ डॉलर के क्लब में शामिल करने का इसे आधार माना जा रहा है। सरकार के सामने असली चुनौती आम बजट 2020-21 के प्रस्तावों को प्रभावी रूप से लागू करने की है। ये चुनौती इसलिए भी टेढ़ी खीर दिखाई दे रही है, क्योंकि पिछले बजट की कई अहम घोषणाएं अभी तक सिरे नहीं चढ़ सकी हैं।
सरकार इस नाकामी पर भले ही दलील दे कि पिछला बजट पेश किए अभी सिर्फ सात महीने ही हुए हैं, लेकिन आम बजट-2020-21 का रंग चोखा दिखाने के लिए उसमें हींग और फिटकरी पर्याप्त मात्रा में डालनी होगी। ऐसे में क्षेत्रवार वर्तमान बजट के प्रस्तावों को लागू कराने के लिए सरकार के सामने चुनौतियों की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।
जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए आशावादी होना जरूरी होता है, पर अति आशावादिता हमेशा उचित बात नहीं होती है। हाल ही में पेश आम बजट 2020-21 को ही ले लीजिए। इसमें देश की अर्थव्यवस्था की सुस्ती तोड़ने के लिए आशावाद की कमी नहीं है। लेकिन यह कितना तार्किक है, इस बात की पड़ताल बहुत जरूरी है। एक फरवरी को पेश किए गए बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश को बताया कि अगले वित्त वर्ष में सरकार विनिवेश से दो लाख दस हजार करोड़ रुपये कमाने की आशा रखती हैं।
पिछले साल भी कुछ ऐसी ही कहानी सुनाई गई थी। इस वित्त वर्ष में सरकार विनिवेश से करीब एक लाख पांच हजार करोड़ कमाना चाहती थी। अप्रैल और दिसंबर 2019 के बीच में सरकार केवल अठारह हजार एक सौ करोड़ कमा पाई है। इसलिए इस वर्ष के विनिवेश को देखते हुए यह कहना बनता है कि अगले वर्ष का विनिवेश लक्ष्य बहुत ज्यादा आशावादी है।
पिछले साल के बजट भाषण में सीतारमण ने ये कहा था कि चुनिंदा केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम का रणनीतिक विनिवेश जारी रहेगा। अभी तक ऐसा कुछ होता हुआ नजर नहीं आ रहा है। इतिहास गवाह है कि भारत में रणनीतिक विनिवेश बहुत कम हुआ है।
कुछ साल पहले ओएनजीसी ने हिंदुस्तान पेट्रोलियम को खरीदा था और सरकार ने इसे रणनीतिक विनिवेश मान लिया था। असली रणनीतिक विनिवेश तब होता है जब एक सरकारी कंपनी निजी क्षेत्र की कंपनी को बेची जाए। सीतारमण ने ये भी कहा था कि सरकार और भी सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का रणनीतिक विनिवेश करेगी। ऐसा अभी तक कुछ नहीं हुआ है। कहा तो ये भी गया था कि एयर इंडिया की रणनीतिक विनिवेश की प्रक्रिया फिर से शुरू की जाएगी। ये शुरू तो हो गई है पर जिस गति से चल रही है उसको देख कर ऐसा नहीं लग रहा है कि इस वित्त वर्ष में पूरी हो सकेगी।
यहां पर ये भी कहना जरूरी है कि पिछली बार से इस बार एयर इंडिया के बिकने की संभावना कहीं ज्यादा है। इस साल के बजट में सरकार ने आइडीबीआइ बैंक को निजी, खुदरा और संस्थागत निवेशकों को स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से, बेचने का इरादा बनाया है। अब देखना ये होगा कि सरकार ये इरादा पूरा कर पाती है कि नहीं। इतिहास सरकार की मंशा के प्रतिकूल है। इससे भी ज्यादा आइडीबीआइ बैंक जैसी लचर स्थिति में है, उसमें अगर निजी निवेशकों ने बैंक को खरीदा तो अपने आप में ये बड़ी बात होगी।
सरकार ने भारतीय जीवन बीमा निगम का भी थोड़ा हिस्सा विनिवेश करने का मन बना लिया है। ये एक महत्वपूर्ण निर्णय है। इससे बीमा निगम के काम करने में पारदर्शिता बढ़ेगी लेकिन, बीमा निगम को शेयर बाजार पर लिस्ट करना आसान नहीं होगा। इसलिए जरूरी है कि इस पर अभी से काम शुरू हो जाए। अमूमन सरकारें विनिवेश पर बजट के दौरान घोषणा करके सो जाती हैं।
वित्त मंत्री ने पिछले बजट में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के पास पड़ी जमीन पर सार्वजनिक अवसंरचना (पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर) बनाने की बात भी कही थी। इस पर भी कुछ खास प्रगति नहीं हुई है। इस बार के बजट में सीतारमण ने एक इन्वेस्टमेंट क्लीयरेंस सेल की बात की है जो लैंड बैंक की भी जानकारी देगी। अब देखना ये है कि किस हद तक ये प्रस्ताव वास्तविकता में बदलता है। पिछले साल के बजट में ये दावा भी किया गया कि एक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक की सेवाएं बाकी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के ग्राहकों तक पहुंचाई जाएगी। ऐसा कुछ भी होता नजर नहीं आ रहा है।
अगर सकल कर राजस्व की ओर नजर डालें तो कुछ ऐसी ही तस्वीर उभर कर सामने आती है। पिछले साल बजट में ये उम्मीद लगाई गई थी कि इस साल के सकल कर राजस्व में 18.3 प्रतिशत का इजाफा होगा। अप्रैल और दिसंबर 2019 के बीच सकल कर राजस्व में 3 प्रतिशत की गिरावट हुई है। इसके बावजूद सरकार ने ये उम्मीद लगाई है कि अगले साल सकल कर राजस्व में 12 प्रतिशत का इजाफा होगा। 12 प्रतिशत बढ़त अपने आप में बहुत ज्यादा नहीं है पर इस साल के कर संग्रह को देखने के बाद ये बहुत ज्यादा लगता है।
पर सरकारें आशावादी होती हैं, इसलिए उनके लिए पिछले साल की घोषणाओं पर क्या काम हुआ है, महत्वपूर्ण नहीं होता है। उनके लिए ये ज्यादा महत्वपूर्ण होता है कि इस साल और भी नई घोषणाएं की जाएं।
(इजी मनी ट्राइलॉजी के लेखक और अर्थशास्त्री)