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अच्छे रहे 75 साल, स्वर्णिम होंगे अगले पांच : रेलवे में 'बुलेट' की रफ्तार से दौड़ेगी विकास की ट्रेन

डीएफसीसी के पूर्व चेयरमैन एके सचान बताते हैं कि पिछले एक दशक में भारतीय रेलवे ने कई इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रोजेक्टों पर काम करना शुरू किया है। अगले पांच सालों में इन प्रोजेक्टों का फायदा देश को मिलने लगेगा। डेडिकेटेड फ्रेट कॉरीडोर इसमें शामिल एक बेहद महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट है।

By Vineet SharanEdited By: Published: Mon, 16 Aug 2021 07:19 AM (IST)Updated: Mon, 16 Aug 2021 07:26 AM (IST)
अच्छे रहे 75 साल, स्वर्णिम होंगे अगले पांच : रेलवे में 'बुलेट' की रफ्तार से दौड़ेगी विकास की ट्रेन
कश्मीर को देश के अन्य हिस्सों से रेल के जरिए जोड़ने वाली परियोजना पर तेजी से काम हो रहा है।

नई दिल्ली, विवेक तिवारी। यात्रियों कृपया ध्यान दें, .....से चलकर....के रास्ते...तक जाने वाली ट्रेन प्लेटफार्म नंबर ....पर आ रही है। प्लेटफार्म की यह उद्घोषणा, ट्रेन, उसकी सीटी, हॉर्न, इंजन की आवाज और पटरियों पर सरपट भागना। हम भारतीयों को यह सब बहुत पसंद है। हम लोग ट्रेन में सफर करते हैं और ट्रेन हमारे दिल के प्लेटफार्म पर रहती है। तभी तो हर सफर में सामने की सीट वालों से रिश्ता सा बन जाता है और ट्रेन सिर्फ हमें मंजिल तक नहीं पहुंचाती बल्कि इससे बढ़कर हमसफर बन जाती है। तभी तो ट्रेन भी आजादी के बाद के इन 75 सालों में हमारे साथ समय की पटरी पर हमराही की तरह दौड़ी है। जैसे-जैसे देश बढ़ा, ट्रेनें भी बेहतर होती गईं। और इसमें बेहतर स्लीपर कोच, एसी कोच, हाई स्पीड इंजन, ऑनलाइन रिजर्वेशन और मेट्रो जुड़े। आइये डीएफसीसी के पूर्व चेयरमैन एके सचान, उत्तर रेलवे के महाप्रबंधक आशुतोष गंगल और ट्रेन-18 बनाने वाले आईसीएफ के पूर्व जीएम सुधांशु मणि के संग इस सफर को देखते हैं। साथ ही जानते हैं कि अगले पांच सालों में रेलवे में विकास की ट्रेन कहां-कहां दौड़ेगी।

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डीएफसीसी के पूर्व चेयरमैन एके सचान कहते हैं कि भारतीय रेलवे विश्व का चौथा सबसे बड़ा नेटवर्क बन चुका है। आजादी के बाद से अब तक भारतीय रेलवे का साइज दो गुना से ज्यादा हो गया है। एके सचान बताते हैं कि पिछले एक दशक में भारतीय रेलवे ने कई इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रोजेक्टों पर काम करना शुरू किया है। अगले पांच सालों में इन प्रोजेक्टों का फायदा देश को मिलने लगेगा। डेडिकेटेड फ्रेट कॉरीडोर इसमें शामिल एक बेहद महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट है। इसमें स्पेशल रेलवे लाइन बनाई जा रही है। इसमें मालगाड़ियां 13 हजार टन का लोड लेकर 100 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड से चलेंगी। ये 3000 किलोमीटर का डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर दिल्ली से मुंबई और लुधियाना से दिल्ली होते हुए सोनपुर बिहार तक जाएगी। ये डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर देश की अर्थव्यवस्था को काफी सपोर्ट करेगा। भारतीय रेलवे एक बहुत बड़ा काम कर रही है जिसमें कश्मीर को रेल नेटवर्क के जरिए जोड़ा जा रहा है। अगले पांच सालों में कश्मीर तक सीधी रेल पहुंच सकेगी। इस प्रोजेक्ट के तहत चिनाब नदी के ऊपर दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल बनाया गया है। नॉर्थ ईस्ट भारत अन्य हिस्सों से जोड़ने के लिए भी कई सारे प्रोजेक्टों पर काम चल रहा है। अगले पांच सालों में देश के कई रेलवे स्टेशन विश्वस्तरीय हो चुके होंगे। इसके लिए रेलवे काफी बड़े पैमाने पर काम कर रहा है।

उत्तर रेलवे के महाप्रबंधक आशुतोष गंगल ने बताया कि उत्तर रेलवे के लिए यूएसबीआरएल प्रोजेक्ट के तहत चिनाब नदी पर बनाया जा रहा आर्च ब्रिज एक बड़ी उपलब्धि है। वहीं अंजी ब्रिज का काम जारी है। उत्तर रेलवे उत्तराखंड में नई रेल लाइनें बनाने का काम कर रही है। ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेलवे लाइन बिछाने का काम जारी है। जबकि योगनगरी ऋषिकेश रेलवे स्टेशन तक ट्रेनों को चलाना शुरू किया जा चुका है। उत्तर रेलवे लद्दाख तक ट्रेन चलाने की योजना पर भी काम कर रहा है।

पांच साल में रेलवे में होंगे ये सात बड़े बदलाव बदलाव

1. देश के किसी भी हिस्से से ट्रेन से सीधे कश्मीर पहुंच सकेंगे

कश्मीर (Kashmir) को देश के अन्य हिस्सों से रेल नेटवर्क के जरिए जोड़ने वाले उधमपुर-बारामूला रेल लिंक परियोजना (USBRL Project) पर तेजी से काम हो रहा है। इस प्रोजेक्ट को अप्रैल 2023 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। कश्‍मीर घाटी (Kashmir Valley) को देश के अन्य हिस्सों से जोड़ने वाली 272 किलोमीटर लंबी उधमपुर-बारामूला रेल लिंक परियोजना को वर्ष 2002 में राष्‍ट्रीय परियोजना घोषित किया गया था। इस परियोजना के 272 किलोमीटर में से 161 किलोमीटर पर कार्य पूरा कर उसे चालू कर दिया है। इस प्रोजेक्ट को तीन चरणों में पूरा किया जाना है। इसमें उधमपुर-कटरा के बीच के काम को जुलाई 2014 में पूरा कर लिया गया। काजीगुंड से बारामूला के 118 किलोमीटर लम्बे ट्रैक को अक्‍टूबर, 2009 में शुरू कर दिया गया। बनिहाल-क़ाज़ीगुंड – 18 किलोमीटर – जून 2013 में शुरू हुआ। कटरा से बनिहाल के बीच लगभग 111 किलोमीटर ट्रैक का कार्य जारी है।

(फोटो स्रोत-उत्तर रेलवे)

2. फ्रेट कॉरीडोर से देश के किसी भी हिस्से में सामान भेजना होगा आसान

भारतीय रेलवे ने डेडिकेटेड फ्रेट कॉरीडोर का काम 2022 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा है। पूर्वी समर्पित फ्रेट कॉरिडोर (ईडीएफसी) लुधियाना (पंजाब) के निकट साहनेवाल से शुरू होगा और पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा झारखंड राज्यों से होते हुए पश्चिम बंगाल के दनकुनी में समाप्त होगा। उत्तर प्रदेश के दादरी से मुंबई के जवाहरलाल नेहरू पोर्ट (जेएनपीटी) को जोड़ने वाला पश्चिमी गलियारा, डब्‍ल्‍यूडीएफसी तथा ईडीएफसी के उत्‍तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र राज्यों से होकर (सोननगर - दनकुनी पीपीपी सेक्शन को छोड़कर) गुजरेगा और यह 2800 रूट किलोमीटर जून 2022 तक चालू किया जाएगा। इस डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर पर सिर्फ मालगाड़ियां चलेंगी। जिनकी स्पीड 100 किलोमीटर प्रति घंटा से ज्यादा होगी। ऐसे में एक तरफ जहां देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक माल पहुंचाना आसान होगा वहीं दूसरी तरफ रेलवे को ज्यादा यात्री ट्रेनें चलाने में भी सुविधा होगी।

(फोटो स्रोत-उत्तर रेलवे)

3. देश को मिलेगी बुलेट ट्रेन

अगले पांच सालों में देश को पहली बुलेट ट्रेन मिलेगी। मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन का काम अगले पांच सालों में पूरा हो जाएगा। रिपोर्ट के मुताबिक जून 2021 तक मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल (एमएएचएसआर परियोजना) पर 13,483 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। इस परियोजना की लागत 1.1 लाख करोड़ रुपये है। मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना को समाप्त करने के लिए 2023-24 की समय सीमा निर्धारित की है। मुंबई-अहमदाबाद के 508.17 किमी लंबे बुलेट ट्रेन कॉरिडोर का 155.76 किमी हिस्सा महाराष्ट्र में, 348.04 किमी गुजरात में और 4.3 किमी दादरा एवं नगर हवेली में है।

4. चारधाम की यात्रा होगी आसान

भारतीय रेलवे ने उत्तराखंड में ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन प्रोजेक्ट को वर्ष 2024-25 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा है। केंद्र सरकार ने बजट में समयबद्ध निर्माण के लिए बजट में वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए 4200 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। इस बजट के साथ परियोजना के निर्माण कार्यों में तेजी आएगी।

5. हाइड्रोजन से चलेगी ट्रेन

भारतीय रेलवे 2030 तक भारत में रेलवे को कार्बन उत्सर्जन से मुक्त करना का लक्ष्य तय किया है। इसी को ध्यान में रखते हुए भारतीय रेलवे जल्द ही हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेनें चलाने की योजना पर काम कर रहा है। हाइड्रोजन फ्यूल सेल आधारित डेमू रेक के लिए बोलियां 21 सितंबर से शुरू होंगी और 5 अक्टूबर तक चलेगी। इसके लिए 17 अगस्त को 11:30 बजे एक प्री-बिड कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया जाएगा। शुरुआत में 2 डेमू रैक को हाइड्रो इंजन में बदला जाएगा।

(फोटो स्रोत-उत्तर रेलवे)

6. 21वीं सदी में बन रही भविष्य की ट्रेन-ग्रीन और इलेक्ट्रिफाइड

देश की सरकारों को समझ आया की रेलवे के विकास के साथ ही देश का विकास जुड़ा है। ऐसे में रेलवे पर फोकस बढ़ गया। आज देश के सभी रेल रूटों का तेजी से इलेक्ट्रिफिकेशन किया जा रहा है। पूर्व रेल मंत्री पीयूष गोयल ने जानकारी दी थी कि अगले कुछ सालों में रेलवे पूरी तरह इलेक्ट्रिफाइड हो जाएगा। 2030 तक भारतीय रेलवे को ग्रीन रेलवे बनाने का लक्ष्य रखा गया है।

7. 75 नई वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेनें

भारतीय रेलवे अपनी ट्रेनों की रफ्तार बढ़ाने के लिए बड़ी तेजी से काम कर रहा है। आने वाले दिनों में आपको देश के कई रूटों पर वंदे भारत एक्सप्रेस जैसी सेमी हाई स्पीड ट्रेनें चलती दिखाई देंगी। नई वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेनों को बनाने के लिए तेजी से काम किया जा रहा है। जल्द ही देश के अलग अलग रूटों पर 75 नई वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेनें दौड़ती नजर आएंगी।

(फोटो स्रोत-उत्तर रेलवे)

भारतीय रेल के महत्वपूर्ण पड़ाव-

1. 16 अप्रैल 1853, जब चली पहली ट्रेन

यूं तो रेलवे का सफर भारत में 16 अप्रैल 1853 को मुंबई से ठाणे के बीच शुरू हुआ। मुंबई से ठाणे के बीच चलाई गई पहली ट्रेन में तीन भाप इंजनों के साथ 14 डिब्बे थे और और इसमें 400 यात्रियों को ले जाया गया। यह सफर 35 किमी का था। आईसीएफ के पूर्व जीएम सुधांशु मणि बताते हैं 1853 में अंग्रेजों ने भारत में रेलवे की नींव डाली। उनका मकसद था की देश पर कब्जा बनाए रखने में ये मदद करेगी। जबकि रेल के चलने से देश में एक तरह से एकता आई।

2. 1947 में 40% से ज्यादा रेलवे नेटवर्क पाकिस्तान में चला गया

15 अगस्त 1947 का दिन रेलवे के इतिहास में काफी महत्वपूर्ण है। इसी दिन देश में एक स्टीम इंजन लगाया गया था। इसी दिन आजादी मिलने के चलते इस इंजन का नाम भी आजाद रख दिया गया। वहीं 1947 में आजादी के साथ ही रेलवे दो हिस्सों में बंट गया। नया बना हुआ 40% से ज्यादा नेटवर्क पाकिस्तान में चला गया। दो प्रमुख लाइनें, बंगाल असम और उत्तर पश्चिमी रेलवे को भारतीय रेल नेटवर्क से अलग कर दिया गया था।

3. 1950 का दशक- भारतीय रेल के राष्ट्रीयकरण से स्लीपर और फिर एसी इलेक्ट्रिक ट्रेन

आजादी के बाद रेलवे के विकास के महत्व को भारत सरकार ने समझा और 1951 में भारतीय रेल का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। देश की आर्थिक व्यवस्था को मजबूत करने में रेलवे का योगदान रहा। देश के विकास के साथ-साथ रेल ने भी तरक्की के नए-नए आयाम गढ़े। रेलवे की आमदनी भी बढ़ी और खर्च भी। 1951-1952 में, रेलवे नेटवर्क को फिर से स्ट्रक्चर किया गया। रेलवे में 17 जोन बनाए गए। वहीं 1954 में, रेलवे ने 3 टायर डिब्बों में स्लीपर सीटों की सुविधा को शुरू किया। इसके बाद 1959 मे WAM-1 को चलाया गया जो भारत में चलने वाली पहली एसी इलेक्ट्रिक ट्रेन है।

आईसीएफ के पूर्व जीएम सुधांशु मणि बताते हैं कि आजादी के बाद सरकार चाहती थीं कि आधुनिक तकनीक वाले रेलवे कोच भारत में ही बनें। इसके लिए देश में कई फैक्ट्रियां लगीं। लेकिन काफी समय तक इस उद्देश्य में सफलता नहीं। हम चीन से बराबरी की बात करते हैं तो आपको बता दें कि चीन के प्रीमियर 1950 के दशक में चाउ अन लाई रेलवे की आईसीएफ फैक्ट्री घूमने आए थे और उन्होंने कहा था कि चीन के लोगों को यहां आ कर सीखना चाहिए कि आधुनिक ट्रेन कोच कैसे बनाते हैं। लेकिन समय के साथ हम पिछड़ गए और चीन आगे निकल गया।

4. 1960 से 80 के बीच बेहतर हुईं सुविधाएं

1964 में, नई दिल्ली और आगरा के बीच ताज एक्सप्रेस ट्रेन चलाई गई। इसे पर्यटकों ने काफी पसंद किया। 1965 में, रेलवे ने कई रूटों पर फास्ट फ्रेट सर्विस की शुरुआत की। अहमदाबाद, बैंगलोर इत्यादि जैसे अन्य महत्वपूर्ण शहरों को जोड़ने के लिए इस सेवा को शुरू किया गया। वहीं 1977 में राष्ट्रीय रेल संग्रहालय खोला गया। 1986 में नई दिल्ली में भारतीय रेलवे ने कम्प्यूटरीकृत टिकट और रिजर्वेशन शुरू किया।

5. मेट्रो और हाई स्पीड ट्रेनों का दौर

-दिल्ली (2002), बैंगलोर (2011), गुड़गांव (2013) और मुंबई (2014) सहित कई शहरों में मेट्रो शुरू की। वहीं 2002 में जन शताब्दी ट्रेन की शुरुआत हुई। इसके बाद 2004 में ऑनलाइन रिजर्वेशन और 2007 में देशभर में रेलवे इंक्वायरी नंबर 139 शुरू किया गया।

6. 2010 का दशक: साफ-सुथरी और तेज रफ्तार वाली ट्रेनें

2014 के बाद स्वच्छता मिशन के तहत रेलवे स्टेशन और ट्रेनों में सफाई पर जोर दिया गया। वहीं ट्रेनों में बॉयो टायलेट लगे। वहीं रेलवे स्टेशनों पर विश्वस्तरीय सुविधाएं देने की कोशिश की जा रही है। नए और अत्याधुनिक रेलवे स्टेशन बन रहे हैं।

7 दशकों में रेलवे की विकास यात्रा अब 1.16 लाख किमी लम्बे रेल नेटवर्क तक पहुंच गई है। 15 हजार रेलगाड़ियां इस नेटवर्क पर दौड़ती हैं। पिछले कुछ सालों में रेलवे की ओर से शुरू की गई राजधानी, शताब्दी, गतिमान, दुरंतो और तेजस जैसी ट्रेनों ने रेल के सफर को और ज्यादा आरामदायक और मनोरंजक बना दिया है। आईसीएफ के पूर्व जीएम सुधांशु मणि बताते हैं कि 2016 में मैंने रेलवे बोर्ड चेयरमैन से कहा कि मुझे आईसीएफ का जीएम बनाईये। मेरा सपना था कि हम दुनिया की एक बेहतरीन ट्रेन बनाएं। आईसीएफ के कर्मचारियों ने मुझे इस सपने को पूरा करने में पूरी मदद की। कई चुनौतियां थी फिर भी हमने लक्ष्य लिया। और इस तरह देश को ट्रेन 18 या वंदे भारत एक्सप्रेस देश को मिली।

भारतीय रेल के महत्वपूर्ण आंकड़े

11,000-गाड़ियां चलाई जाती हैं रोज

7,000-यात्री गाड़ियां हैं

7566 - रेल इंजन

37,840 -सवारी डिब्बे

222,147 -माल डिब्बे

6853 - स्टेशन

300 - यार्ड

2300 -गुड्स शेड

700 - रिपेयर शॉप

14 लाख -कर्मचारी

खास ट्रेनें

- कन्याकुमारी और जम्मू-तवी के बीच चलने वाली हिमसागर एक्सप्रेस सबसे लंबी दूरी की रेल है। ये ट्रेन लगभग 3745 किलोमीटर यात्रा करती है।

-160 किलोमीटर प्रति घंटे तक की रफ्तार से चलने वाली गतिमान एक्सप्रेस देश की सबसे तेज रेल है।

- फेयरी क्वीन दुनिया में सबसे पुराना इंजन है, जो अभी भी दौड़ता है।

(इनपुट-अनुराग मिश्र, मनीष कुमार और विनीत शरण) 


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