Move to Jagran APP

बिखरने के बाद निखरने का जज्बा, जीवन में वापसी का सबक सिखाती है देश की बेटी की ये जीत

मीराबाई चानू का सफर बताता है कि संघर्ष करने का जज्बा हो तो खुद को साबित करने की राहें भी खुल ही जाती हैं। निराशा के एक दौर में देश की इस बेटी ने खेल तक छोड़ने का निर्णय कर लिया था।

By Shashank PandeyEdited By: Published: Mon, 26 Jul 2021 01:47 PM (IST)Updated: Mon, 26 Jul 2021 06:35 PM (IST)
बिखरने के बाद निखरने का जज्बा, जीवन में वापसी का सबक सिखाती है देश की बेटी की ये जीत
बिखरने के बाद निखरने का जज्बा दिखाती मीराबाई चानू।(फोटो: दैनिक जागरण)

डॉ. मोनिका शर्मा। टोक्यो ओलिंपिक में एक बेटी ने देश को पहला पदक दिलाया है। वेटलिफ्टिंग में मीराबाई चानू ने सिल्वर मेडल हासिल कर एक उम्मीद भरी शुरुआत की है। मीराबाई ने 49 किलोग्राम भार में कुल 202 किलोग्राम भार उठाकर यह पदक जीता है। वह ओलिंपिक में वेटलिफ्टिंग में सिल्वर लाने वाली पहली भारतीय एथलीट हैं। सिडनी ओलिंपिक 2000 में कर्णम मल्लेश्वरी ने वेटलिफ्टिंग में कांस्य पदक जीता था। मीराबाई की जीत एक खिलाड़ी की ही नहीं, बल्कि मन से मजबूत और खुद को हर परिस्थिति में संभाल लेने वाली भारतीय बेटी की जीत है। अभावों से लड़कर जीतने के जज्बे से रूबरू करवाने वाली जीत है। यह सबक देती है कि कड़ी मेहनत और लगन से सफलता पाने की प्रतिबद्धता हो तो सपने सच होते हैं।

loksabha election banner

मीराबाई कभी इम्फाल के एक छोटे से गांव में आग जलाने वाली लकड़ी चुनती थीं। उन्होंने 2007 में वेटलिफ्टिंग की ट्रेनिंग शुरू की थी। तब घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने कारण वह डाइट चार्ट के मुताबिक खाना तक नहीं ले पाती थीं। तब अभ्यास के लिए उनके पास लोहे का बार नहीं था। इसके लिए उन्होंने बांस का इस्तेमाल किया। इन तमाम कठिनाइयों से जूझते हुए चानू आज वहां पहुंची हैं जहां पहुंचने का सपना देखा था।भारत में जहां एक आम खिलाड़ी के लिए संघर्षपूर्ण स्थितियां हैं, वहां बेटियों के लिए तो यह सफर और भी कठिन है। यही वजह है कि मीराबाई का सफर देश की लाडलियों को हिम्मत देने वाला है। साल 2016 के रियो ओलिंपिक खेलों में चानू हर कोशिश के बाद भी सही तरीके से वजन नहीं उठा पाई थीं। यह समझना मुश्किल नहीं कि कोई खिलाड़ी अपना खेल पूरा ही नहीं कर पाए तो कितना दुखद अनुभव होता है।

‘डिड नाट फिनिश’ पांच साल पहले मीराबाई के नाम के आगे यही शब्द लिखे गए थे। तब हार ही नहीं, मनोबल का टूटना भी उनके हिस्से आया था। उसके बाद चानू अवसाद का शिकार हो गई थीं। निराशा के उस दौर में देश की इस बेटी ने खेल तक छोड़ने का निर्णय कर लिया था। हालांकि बाद में वह हौसला जुटाकर खड़ी हुईं और आज खुद को साबित कर दिया।

चानू की जीत जीवन में वापसी का सबक भी सिखाती है। अपने आप में भरोसा रखने की सोच को एक सकारात्मक जिद बनाने की हिम्मत देती है। रियो ओलिंपिक के कटु अनुभव के बाद मीराबाई ने खेल के मोर्चे पर ही नहीं, मन के मोर्चे पर भी खुद को मजबूत किया तो उनकी मेहनत रंग लाई। जिजीविषा के ऐसे उदाहरण ही देश में बदलाव की बुनियाद बनते हैं। इसीलिए चानू की जीत युवाओं के लिए एक प्रेरक संदेश लिए है। यह जीवन के प्रति सकारात्मक रवैया और लक्ष्य को पाने की ललक रखने की सीख देती है। असफलता और पीड़ा के बाद खुद को थामने और कामयाबी को छूने का जज्बा बनाए रखने का पाठ पढ़ाती है।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.