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स्कूली पाठ्यक्रम आधा तो नहीं, पर 20 फीसद तक जरूर हो जाएगा कम

शुरूआत नौवीं से 12वीं तक के पाठ्यक्रम की समीक्षा से होगी, जिसे दिसंबर तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Tue, 11 Sep 2018 08:25 PM (IST)Updated: Tue, 11 Sep 2018 08:27 PM (IST)
स्कूली पाठ्यक्रम आधा तो नहीं, पर 20 फीसद तक जरूर हो जाएगा कम
स्कूली पाठ्यक्रम आधा तो नहीं, पर 20 फीसद तक जरूर हो जाएगा कम

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। स्कूली पाठ्यक्रम को छोटा करने की योजना पर एनसीईआरटी ने काम शुरु कर दिया है। हालांकि उसने पाठ्यक्रम को आधा करने के सुझावों को खारिज कर दिया है। साथ ही उम्मीद जताई है कि यह अधिकतम 20 फीसद तक ही कम हो सकता है। शुरूआत नौवीं से 12वीं तक के पाठ्यक्रम की समीक्षा से होगी, जिसे दिसंबर तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। इनमें गणित, भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र और जीव विज्ञान जैसे विषयों को प्रमुखता से शामिल किया गया है।

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एनसीईआरटी (राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) ने पाठ्यक्रम को छोटा और सरल करने की दिशा में यह काम मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से पाठ्यक्रम को छोटा करने को लेकर मांगे गए सुझावों के बाद शुरू किया है। इसमें एक लाख से ज्यादा सुझाव आए है। मंत्रालय ने भी स्कूली पाठ्यक्रम को आधा करने का सुझाव एनसीईआरटी को दिया है, लेकिन विशेषज्ञों ने इससे असहमति जताते हुए सुझाव को खारिज कर दिया है।

सूत्रों की मानें तो विशेषज्ञों का कहना है कि इतने बड़े पैमाने पर बदलाव ठीक नहीं है। हालांकि इस सब के बावजूद एनसीईआरटी अगले शैक्षणिक सत्र से कुछ अहम विषयों के पाठ्यक्रम को छोटा करने की तैयारियों में जुटा है। यह तैयारियां इसलिए भी शुरु कर दी गई है, क्योंकि एनसीईआरटी की नई किताबों के प्रकाशन का काम दिसंबर अंत तक शुरु हो जाता है। ऐसे में यदि समय पर पाठ्यक्रम में बदलाव की प्रक्रिया को अंतिम रुप नहीं दिया गया, तो समय पर किताबें उपलब्ध नहीं हो पाएगी। जिसके चलते एक नई समस्या खड़ी हो सकती है।

एनसीईआरटी से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक योजना के तहत पाठ्यक्रम में यह बदलाव की यह प्रक्रिया दो से तीन सालों तक चलेगी। ऐसे में पहले चरण के बदलावों की शुरूआत स्कूलों की बड़ी कक्षाओं से होगी, जहां से छात्र स्कूल की पढ़ाई से बाहर हो जाएंगे। ऐसे में पाठ्यक्रम में होने वाले बदलावों से यह तुरंत लाभान्वित होंगे। समय की जरूरत के मुताबिक उन्हें कुछ और भी पढ़ने को मिल सकता है। बदलाव की इस प्रक्रिया में पाठ्यक्रम को छोटा करने के साथ उसमें समय की मांग को देखते हुए कुछ नया भी जोड़ा जाना है। हालांकि यह क्या होगा, इसका फैसला विशेषज्ञों के सुझाव अभी आने हैं।


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