यहां की महिलाओं ने साबुन से धो डाले गरीबी के दुख
जमशेदपुर के हुरलुंग गांव की 12 महिलाओं ने समूह बनाकर गरीबी को दी मात
जमशेदपुर (मुजतबा हैदर रिजवी)। जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर हुरलुंग गांव की महिलाएं अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और स्वावलंबन के जरिये आर्थिक समृद्धि की राह पर चल पड़ी हैं। ये देश भर की उन ग्रामीण महिलाओं के लिए एक मिसाल हैं जो सरकारी योजनाओं की बाट जोहती रह जाती हैं। एक समय था जब ये महिलाएं आर्थिक तंगी से त्रस्त थीं, लेकिन उन्होंने हिम्मत जुटाई और गरीबी को पछाड़ दिया। घर पर ही प्राकृतिक सामग्री से हर्बल साबुन बनाकर इन्होंने न सिर्फ गरीबी के दुख को धो डाला, बल्कि अच्छी खासी पूंजी जुटाकर अन्य महिलाओं को प्रेरणा दे रही हैं।
उड़ान जज्बे की : गांव की ये अशिक्षित महिलाएं, जो पगडंडियों पर नंगे पांव चलने की आदी थीं, आज कारोबार के सिलसिले में विमान से भी उड़ान भरती हैं। गांव की ही मीनू रक्षित ने प्रगति महिला समिति नामक समूह बनाकर 2008 में स्टार्टअप शुरू किया था। वह इस स्वयं सहायता समूह की टीम लीडर हैं। मात्र 12 महिलाओं का यह समूह त्वचा संबंधी दस प्रकार का हर्बल साबुन बनाता है। बीस से सौ रुपये तक में बिकने वाले ये हर्बल साबुन दिल्ली, मुंबई समेत कई बड़े शहरों में भेजा जा रहा है।
कम लागत-अधिक फायदा : इस समूह की महिलाओं ने घर व दालान को ही कारखाना बना लिया है। यहां ये महिलाएं हाथ से और देसी तकनीक से साबुन बनाती हैं। दावा है कि इसमें किसी रसायन का इस्तेमाल नहीं किया जाता। रोज 400 से 500 पीस साबुन का उत्पादन करती हैं।
डिमांड में उत्पाद : समूह के इको हर्बल साबुन का प्रचार दिल्ली में इंटरनेशनल ट्रेड फेयर में भी हो चुका है। इसकी वेबसाइट भी है। दिल्ली की कई कंपनियां इन्हें नियमित रूप से महीने में दो से तीन हजार पीस साबुन का आर्डर भेजती रहती हैं। रेलवे के पार्सल और कूरियर के जरिये साबुन की आपूर्ति अन्य शहरों में होती है। इसी वर्ष 15 अक्टूबर को राष्ट्रीय महिला किसान दिवस पर दिल्ली में इस समूह को सम्मानित किया गया। टीम लीडर मीनू ने महिला उद्यमिता सम्मान ग्रहण किया। वह सम्मान लेने प्लेन से गई थीं। अब उद्योग विभाग के बुलावे पर 14 नवंबर को प्रगति मैदान दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में भी यह समूह भाग लेगा।
-झारखंड में उपलब्ध प्राकृतिक सामग्री से बना रहीं दस प्रकार का साबुन
-बीस से सौ रुपये तक में बिकने वाले हर्बल साबुन का कर रहीं निर्यात
मिसाल समूह की महिलाएं बेहद गरीब परिवार से आती हैं। गरीबी से परेशान थीं, कुछ नया करने के लिए सोचा। ग्रुप बनाया और रास्ता भी निकल आया। आज हम सब खुश हैं। -मीनू रक्षित, टीम लीडर
यह भी पढ़ें : झारखंड के इस गांव में अब रक्तदान से नहीं डरते ग्रामीण