अक्षय तृतीया संजोए हैं बेहद शुभ संयोग, इस तरह करें पूजा होगा धन का लाभ
इस बार की अक्षय तृतीया बेहद शुभ संयोग संजोए है। इस दिन सिद्धि योग होने से व्रत-पर्व-दान फलकारी होगा।
वाराणसी, (प्रमोद यादव)। सनातन धर्म में वैशाख शुक्ल तृतीया को अक्षय तृतीया कहते हैं। इस दिन स्नान-दान व व्रत का विशेष महत्व होता है। अक्षय तृतीया इस बार 18 अप्रैल को मनाई जा रही है। तृतीया भोर 4.47 बजे लग गई है जो 19 की भोर 3.03 बजे तक रहेगी। इस बार की अक्षय तृतीया बेहद शुभ संयोग संजोए है। इस दिन सिद्धि योग होने से व्रत-पर्व-दान फलकारी होगा।
श्रीकाशी विद्वत परिषद के संगठन मंत्री ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी ने बताया कि अक्षय तृतीया सनातनियों का प्रधान पर्व है। इस दिन हुए दान व किए हुए स्नान, होम व जप आदि सभी कर्मो का फल अक्षय होता है। इसी से इस व्रत का नाम अक्षय पड़ा। अक्षय तृतीया बड़ी पवित्र व महान फल देने वाली तिथि है।
शास्त्रीय पक्ष
धर्मशास्त्रों में अक्षय तृतीया सनातनियों का प्रधान पर्व बताया गया है। इस दिन दान, स्नान, होम-जप आदि समस्त कर्मो का फल अक्षय होता है। इससे ही इस व्रत को अक्षय कहा गया। किसी भी क्षेत्र में सफलता की आशा से व्रत के अतिरिक्त दान में जलकुंभ, शर्करा समेत व्यंजन पुरोहित या पात्र जरूरतमंद को देना चाहिए।
लोक मान्यता
लोक मान्यता के अनुसार, इस तिथि पर स्वर्णादि खरीदने का प्रचलन बढ़ा है। कहा जाता है कि इस दिन कोई शुभ कार्य, दान के साथ स्वर्णादि खरीदने पर वह भी अक्षय हो जाता है।
अवतार दिवस
वैशाख शुक्ल तृतीया को नर नारायण परशुराम व हयग्रीव अवतरित हुए थे। ऐसे में इस तिथि को उनकी जयंती मनाई जाती है। इस दिन ही त्रेता युग भी आरंभ हुआ। वहीं उत्तराखंड के अधिष्ठाता बद्रीनाथ का ग्रीष्मकालीन पट इस दिन खुलता है। काशी में गंगा स्नान के साथ त्रिलोचन महादेव की यात्रा, पूजन-वंदन का महत्व है।
अपुच्छ मुहूर्त
अक्षय तृतीया तिथि विशेष पर किसी भी शुभ कार्य को किया जा सकता है। ज्योतिषी आगामी वर्ष की तेजी मंदी जानने के लिए भी इस तिथि का उपयोग करते हैं।
पूजन विधान
तिथि विशेष पर व्रतियों को तीनों जयंतियों के निमित्त प्रात: स्नानादि कर हाथ में जल अक्षत लेकर श्रीहरि के पितृर्थ संकल्प लेना चाहिए। भगवान का यथा विधि पंचोपचार पूजन कर पंचामृत से स्नान, सुगंधित फूल-माला अर्पित करना चाहिए। नैवेद्य में नर नारायण के निमित्त सेंके हुए जौ व गेहूं का सत्तू, परशुराम के निमित्त कोमल ककड़ी व हयग्रीव के निमित्त भीगे चने की दाल अर्पित कर उपवास-व्रत आरंभ करना चाहिए।