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यूं ही नहीं बन गया इंदौर स्वच्छता का सिरमौर, ये कदम उठाएं तो अन्य शहर भी हो जाएंगे साफ

इंदौर के लोगों के लिए सफाई एक जन आंदोलन बन गई। स्वच्छता से जुड़े हर आदेश को जनता ने न केवल सिर-माथे पर बैठाया, बल्कि उस पर अमल भी किया।

By Arti YadavEdited By: Published: Thu, 17 May 2018 02:42 PM (IST)Updated: Thu, 17 May 2018 03:52 PM (IST)
यूं ही नहीं बन गया इंदौर स्वच्छता का सिरमौर, ये कदम उठाएं तो अन्य शहर भी हो जाएंगे साफ
यूं ही नहीं बन गया इंदौर स्वच्छता का सिरमौर, ये कदम उठाएं तो अन्य शहर भी हो जाएंगे साफ

नई दिल्ली (जेएनएन)। सरकार के स्वच्छता सर्वेक्षण में 4203 शहरों में सबको पछाड़ते हुए इंदौर एक बार फिर देश का सबसे स्वच्छ शहर बन गया। चार हजार से ज्यादा शहरों को पछाड़ते हुए इंदौर ने सफाई में अपनी बादशाहत बरकरार रखी। इंदौर के लिए इस बादशाहत को कायम रखना इतना भी आसान नहीं था। इसके लिए प्रशासन के साथ-साथ इंदौर के लोगों ने भी अपने कर्तव्यों को समझा और शहर को स्वच्छ बनाए रखने में पूरा सहयोग दिया। हर वो प्रयास किया गया, जिससे शहर की खूबसूरती को चार चांद लगाए जा सकें।

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इंदौर के लोगों के लिए सफाई एक जन आंदोलन बन गई। चाहे गीले और सूखे कचरे का अलग-अलग संग्रहण हो या पॉलिथीन का कम उपयोग। स्वच्छता से जुड़े निगम के हर आदेश को जनता ने न केवल सिर-माथे पर बैठाया, बल्कि उस पर अमल भी किया। देश के अन्य शहरों के लिए इंदौर मिसाल बनकर उभरा, लेकिन आखिर ऐसे क्या कदम उठाए गए, जिसके सहारे इंदौर पहले पायदान पर बना हुआ है और अन्य शहरों को भी उस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। आइए आपको बताते हैं कि देश का सबसे स्वच्छ शहर बनने के लिए आखिर इंदौर ने किन बातों पर ध्यान दिया और उन्हें अमल में लाया।

गीले और सूखे कचरे के साथ सेनेटरी वेस्ट के लिए अलग डस्टबिन
इंदौर की सफलता के पीछे शहर के नगर निगम की मजबूत रणनीति ने सबसे महत्वपूर्ण योगदान दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता अभियान को ध्यान में रखकर नगर निगम ने कई मुहिम चलाईं। शहर में गंदगी न हो इसके लिए प्रशासन की तरफ से विशेष ध्यान रखा गया। इसके लिए सड़कों पर जगह- जगह डस्टबीन रखे गए। शहर में एक जगह ही सूखे और गीले कचरे को इकट्ठा करने के लिए अलग-अलग दो डस्टबिन लगाए गए। गीले और सूखे कचरे को अलग करने के साथ सेनेटरी वेस्ट का तीसरा डस्टबिन भी इंदौर शहर ने ही लगाया। इंदौर में 100 प्रतिशत गीले और सूखे कचरे का निपटान होता है।

शहर से कचरा साफ करने के लिए एक विशेष रणनीति के तहत सफाई अभियान चलाया गया। यहां घर से कचरा उठाते वक्त ही सूखे और गीले दोनों तरह के कूड़े को पहले ही अलग कर लिया जाता है। इसके साथ ही शहर में रहवासी इलाकों में एक बार जबकि व्यावसायिक क्षेत्रों में दो बार कचरा उठाया जाता है।

इंदौर में देश का पहला ट्रेंचिंग ग्राउंड
इंदौर ने डेढ़ साल के प्रयासों से देश का पहला व्यवस्थित ट्रेंचिंग ग्राउंड तैयार किया। अन्य शहरों के ट्रेंचिंग ग्राउंड में जहां सर्वे टीम को कचरे के पहाड़ दिखे, वहीं इंदौर में कवर्ड शेड, बगीचे और उनमें लगे खूबसूरत फूलों के पौधे दिखाई दिए। इंदौर के ट्रेंचिंग ग्राउंड में आठ तरह का कचरा अलग-अलग किया जा रहा है। ट्रेंचिंग ग्राउंड में पुराने कचरे का निपटान करके उसके ऊपर बगीचे बनाए जा रहे हैं। इस तरह का काम कोई शहर नहीं कर रहा। देश में पहली बार किसी शहर के ट्रेंचिंग ग्राउंड को आईएसओ के तीन पत्र मिले हैं।

नाले की गाद से खाद
नाले की गाद से खाद बनाने वाला स्लज ट्रीटमेंट प्लांट इंदौर में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के सहयोग से बनाने की तैयारी हो रही है। अहमदाबाद के बाद नाले की गाद से खाद बनाने का इंतजाम करने वाला यह देश का दूसरा शहर है।

चोइथराम मंडी में 14 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया बायोमिथनाइजेशन प्लांट देश में अनूठा है जहां एक ही जगह कचरे से खाद, बिजली और सीएनजी पैदा की जा रही है। सीएनजी से सिटी बस चलाने की तैयारी है। इस प्लांट पर रोजाना 1000 किलोग्राम गैस, दो टन खाद और 100 केवीए बिजली पैदा हो रही है और रोज 20 टन कचरा प्रोसेस हो रहा है। विदेश में इस तरह का प्लांट 30 से 35 करोड़ रुपये में बनता है।

जगह-जगह टॉयलेट्स की व्यवस्था
खुले में शौच से शहर को मुक्त करवाने के लिए शहर में जगह-जगह टॉयलेट्स की व्यवस्था की गई। शहर में 172 पब्लिक और 125 कम्युनिटी टॉयलेट बनाए गए हैं। वहां दिन में चार बार सफाई करने के साथ लाइट, पानी, साइन बोर्ड और पब्लिक फीडबैक आदि के इंतजाम किए गए हैं। टॉयलेट में सैनिटरी नेपकिन वेंडिंग मशीन और उपयोग के बाद उसे नष्ट करने वाली मशीन लगाई गई। दिव्यांगों के लिए रैंप बनाने और हैंडल लगाने के साथ बच्चों के लिए छोटी सीटें लगाई गई हैं। इसके साथ ही सफाई पर जोर देने के लिए नगर निगम ने मशीनों का सहारा भी लिया। इस वक्त इंदौर का शहरी और ग्रामीण इलाका दोनों ही खुले में शौच से मुक्त हैं।

निगम के टॉयलेट के अलावा पेट्रोल पंप, मॉल और कमर्शियल कॉम्प्लेक्स को स्वच्छ टॉयलेट लोकेटर से लिंक कर दिया गया है। संबंधित संस्थानों के लिए यह अनिवार्य किया गया है कि वे जनता को टॉयलेट में प्रवेश दें। देश का पहला शहर है जहां 12500 टॉयलेट में नल का पानी उपलब्ध है। यह इंतजाम और किसी शहर में नहीं है।

पांच जगहों पर ट्रांसपोर्टेशन हब
शहर को साफ शहर बनाने के लिए कुल पांच जगहों पर ट्रांसपोर्टेशन हब बनाए गए हैं। जिसमें सारे शहर का कचरा इकट्ठा होता है। गीला और सूखा कचरा इकट्ठा होने की वजह से इसे तुरंत प्रोसेस किया जाता है जिससे खाद बनाई जाती है। वहीं प्लास्टिक सामग्री को प्रोसेस कर उसे सड़क बनाने में काम में लाया जाता है।

सात हजार सफाईकर्मी दिन-रात करते हैं काम
शहर में सात हजार सफाईकर्मी हैं जो दिन-रात सफाई में जुटे रहते हैं। इनमें से 60 प्रतिशत महिलाकर्मी हैं। कुल कर्मियों में से 60 प्रतिशत कर्मचारी दिन में और 40 प्रतिशत रात में सफाई करते हैं। इसके अलावा इंटरनेशनल वेस्ट मैनेजमेंट के 200 कर्मी गाड़ियों से सड़कें साफ करते हैं। हर सफाईकर्मी को 500 से 800 मीटर लंबे हिस्से में सफाई का जिम्मा दिया गया है। 2016 में निगम के पास डोर टू डोर कचरा कलेक्शन के लिए 365 गाड़ियां थीं। अब इनकी संख्या 525 हो गई है।

गंदगी फैलाने पर एक लाख रुपये तक जुर्माना
गंदगी फैलाने वालों पर एक लाख रुपये तक जबकि थूकने, खुले में शौच या पेशाब करने वालों पर 100 से 500 रुपये तक का स्पॉट फाइन किया जाता है।

देश में लोगों के पास सिर्फ अधिकार, कोई जिम्मेदारी नहीं: हाईकोर्ट
एक शहर को साफ रखने की जिम्मेदारी केवल प्रशासन की नहीं, बल्कि वहां के लोगों की भी होती है। बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सवाल उठाते हुए पूछा कि जो कूड़ा जनता के घर से निकलता है, उसे जनता ही अलग-अलग करे, इसमें गलत क्या है। यह पूरे विश्व में किया जा रहा है। यह आम नागरिक की जिम्मेदारी होनी चाहिए। एक नागरिक के तौर पर अपनी जिम्मेदारी निभाने का यह बेहतर समय है। हमारे देश में लोगों के पास सिर्फ अधिकार ही नहीं, जिम्मेदारी भी होनी चाहिए।

याचिकाकर्ता ने याचिका में दावा किया कि नगर पालिका ठोस अपशिष्ट 2000 के नियम के तहत कूड़े को अलग-अलग करने की जिम्मेदारी नगर पालिका परिषद व राज्य सरकार की होती है। वहीं नगर पालिका ठोस अपशिष्ट 2016 के नवीनतम नियमों के तहत यह जिम्मेदारी आम नागरिकों पर डाल दी गई है और स्थानीय अधिकारियों को प्रावधानों के कार्यान्वयन से छूट दी गई है।


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