प्रेमचंद की दीवानी है यह पुलिस
पुलिस की चर्चा होते ही अक्सर लोगों के मन में नकारात्मक भाव आने लगता है लेकिन वाराणसी की यह खबर पुलिस की प्रचलित छवि को तोड़ती है।
वाराणसी, [विवेक दुबे]। पुलिस की चर्चा होते ही अक्सर लोगों के मन में नकारात्मक भाव आने लगता है लेकिन वाराणसी की यह खबर पुलिस की प्रचलित छवि को तोड़ती है। सिनेमा और साहित्य ने खाकी को अक्सर ही शोषक चित्रित किया है लेकिन कोई पुलिस अधिकारी मुंशी प्रेमचंद के गांव को जाती सड़क के बेशुमार अवैध कब्जे हटाने की मुहिम छेड़ दे तो इसे क्या माना जाए। सफाई की दृष्टि से पुलिस ही उस सड़क को गोद ले ले तो इसे क्या कहा जाए। यह हो रहा है बनारस में। परिणाम आना बाकी है पर प्रयास सराहनीय है।
बनारस का बड़ा इलाका है पांडेयपुर। जहां से सीधी सड़क प्रेमचंद के गांव लमही जाती है। कुछ महीने पहले यहां चले अतिक्रमण विरोधी अभियान के बावजूद कब्जों के कारण सड़क अब भी संकरी है। यह सड़क और प्रेमचंद का गांव उनकी कहानी के पात्रों की तरह ही उपेक्षा का शिकार है। लमही के लिए समाजवादी पार्टी के पिछले कार्यकाल में शुरू हुआ प्रोजेक्ट भी बुरी हालत में हैं। हर साल प्रेमचंद जयंती पर लमही में रस्मी आयोजन के बाद सरकार और साहित्यकार उपन्यास सम्राट को भूल जाते हैं। ऐसे में इस क्षेत्र में आए क्षेत्राधिकारी, कैंट विनोद कुमार सिंह। पांडेयपुर चौराहे पर लगी मुंशीजी की प्रतिमा साफ की जा रही है, उस पर माला चढ़ रही हैं। जैसे यह कम हो तो पुलिस ने चौराहे से लमही को जाती सड़क को ही गोद ले लिया। उंद्देश्य है कब्जे हटाना और प्रेमचंद के गांव का उद्धार।
प्रश्न है कि पुलिस यह क्यों कर रही। कारण हैं सुलतानपुर निवासी व इलाहाबाद विश्वविद्यालय से लॉ कर चुके सीओ विनोद सिंह। साहित्य प्रेमी सीओ के अनुसार प्रेमचंद ने नमक का दारोगा जैसी कहानियों में पुलिस का जो चित्रण किया, उसने उन्हें हमेशा ही प्रभावित किया। इस क्षेत्र में तैनाती हुई तो लमही के विकास का विचार बना। शुरुआत प्रेमचंद की प्रतिमा धुलवाकर और उसकी स्वच्छता की जिम्मेदारी मातहतों को थमाकर की। अब प्रशासन और अन्य पुलिस अधिकारियों ने भी लमही मार्ग को अतिक्रमण मुक्त करने का निर्णय किया है। प्रतिमाओं की सफाई की जिम्मेदारी तो नगर निगम की है लेकिन यह काम पुलिस कर रही है। विनोद सिंह कहते हैं कि अतिक्रमण दोबारा न हो सके, यह भी पुलिस सुनिश्चित करेगी।