जवान का बोझ कम करेगी नई दूरबीन
देहरादून [सुमन सेमवाल]। युद्ध के समय जवान के पास कम से कम भार वाले हथियार व उपकरण हों तो मोर्चा लेना आसान हो जाता है। अमेरिकी सैनिकों के मुकाबले भारतीय जवान अधिक भारी युद्धक साजो-सामान से लैस होते हैं। अब अपने देश में जवान का बोझ कम करने की दिशा में अहम शुरुआत हो गई है। बहुत जल्द जवानों के हाथों में 50 के दशक से चली अ
देहरादून [सुमन सेमवाल]। युद्ध के समय जवान के पास कम से कम भार वाले हथियार व उपकरण हों तो मोर्चा लेना आसान हो जाता है। अमेरिकी सैनिकों के मुकाबले भारतीय जवान अधिक भारी युद्धक साजो-सामान से लैस होते हैं। अब अपने देश में जवान का बोझ कम करने की दिशा में अहम शुरुआत हो गई है। बहुत जल्द जवानों के हाथों में 50 के दशक से चली आ रही धातु की पारंपरिक दूरबीन की जगह फाइबर निर्मित बेहद हल्की और अधिक कुशल दूरबीन होगी। देहरादून की ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में इसका उत्पादन शुरू भी कर दिया गया है।
'हाई रिज्योल्यूशन बाइनोकुलर मिलिट्री- 8गुणा30आर' नाम की इस दूरबीन का उत्पादन तकनीक हस्तांतरण के अंतर्गत किया जा रहा है। इसकी तकनीक जर्मनी से ली गई है। इसका भार 610 ग्राम है और बॉडी फाइबर युक्त है। भारतीय सेना अभी तक जिस दूरबीन का इस्तेमाल कर रही है, वह 800 ग्राम की धातु निर्मित [बाइनो-8गुणा30] है। इससे महज 100 मीटर तक ही बेहद दुरुस्त देखा जा सकता है। जबकि नई दूरबीन से 130 मीटर तक बिलकुल स्पष्ट दिखाई देगा। सेना ने इस नई दूरबीन का फील्ड ट्रायल भी कर लिया है। सेना की मांग पर फैक्ट्री 1500 बाइनोकुलर का उत्पादन कर रही है।
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