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विदेश में रह रहे गुजरातियों में हिलोरें मार रही 'इंडियन प्राइड'

विजय पहले मुंबई में रहते थे। अब अटलांटा में तीन पेट्रोल पंपों के मालिक हैं।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Sat, 09 Dec 2017 12:16 AM (IST)Updated: Sat, 09 Dec 2017 12:16 AM (IST)
विदेश में रह रहे गुजरातियों में हिलोरें मार रही 'इंडियन प्राइड'
विदेश में रह रहे गुजरातियों में हिलोरें मार रही 'इंडियन प्राइड'

ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे पंडित कमलापति त्रिपाठी मुंबई आकर यहां रहने वाले हिंदीभाषी लोगों से उत्तर प्रदेश में अपने गांव-घर को चिट्ठी लिखकर पार्टी को वोट देने की अपील कराते थे। अब अमेरिका के अटलांटा में रह रहे विजय कोटक गुजरात के सुरेंद्र नगर में रह रहे अपने संबंधियों को फोन करके भाजपा को वोट देने की अपील कर रहे हैं।

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विजय पहले मुंबई में रहते थे। अब अटलांटा में तीन पेट्रोल पंपों के मालिक हैं। उन्होंने वह समय भी देखा है, जब भारत का कोई प्रधानमंत्री अमेरिका आकर कब लौट गया, इसका किसी को पता ही नहीं चलता था। लेकिन करीब साढ़े तीन साल पहले प्रधानमंत्री के रूप में पहली बार नरेंद्र मोदी आए तो पूरे अमेरिका को पता चल गया। अमेरिका ही नहीं, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के खचाखच भरे स्टेडियमों में हुई प्रधानमंत्री की सभाओं ने वहां रहने वाले लोगों को गर्व का अहसास कराया है। वहां रह रहा गुजराती समाज भी इससे अछूता नहीं है।

विजय कोटक कहते हैं, इस अहसास ने विदेश में रह रहे उन गुजरातियों के मन में भी भाजपा के प्रति प्रेम जगाया है, जो 2014 से पहले तक कट्टर कांग्रेसी हुआ करते थे। यही कारण है कि 2012 तक गुजरात चुनाव में रुचि न लेने वाले अप्रवासी गुजराती भी इस बार वहां के चुनाव में न सिर्फ रुचि ले रहे हैं, बल्कि अपने गांव, घरों में फोन करके भाजपा को वोट देने की अपील भी कर रहे हैं।

कुछ समय पहले ही अमेरिका से लौटे भरत पारिख बताते हैं कि न्यूयॉर्क का जैक्सन हाइट क्षेत्र एक बड़ा बाजार है। यहां भी कारोबार की बागडोर ज्यादातर गुजरातियों ने ही संभाल रखी है। लेकिन जैक्सन हाइट पर बोल-चाल की भाषा हिंदी है, क्योंकि यहां भारत के सभी प्रांतों के लोग खरीदारी करने आते हैं। जैक्सन हाइट में भी इन दिनों गुजरात चुनाव चर्चा का केंद्र बना हुआ है। यहां का गुजराती समाज भी फिलहाल अपने प्रदेश में कोई बदलाव नहीं चाहता। दरअसल, पिछले दस साल में अपने गांव-घर आने पर उसने वह विकास बखूबी देखा है, जिसे इन दिनों पागल करार दिया जा रहा है।

विदेश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का काम देखते रहे रामचंद्र पांडेय बताते हैं कि जब 1970 में युगांडा के शासक ईदी अमीन ने हमारे लोगों को भगाना शुरू किया तो तत्कालीन सरकार ने भारतीयों की कोई चिंता नहीं की। यही हाल उन्हीं दिनों तंजानिया में भी हुआ था। वहां से शरणार्थी होकर भागने वालों में बहुत बड़ी संख्या गुजरात व पंजाब के लोगों की थी, जो बाद में कनाडा, अमेरिका और ब्रिटेन में जाकर बस गए।

दूसरी ओर, जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, कितने ही लोगों को संकटकाल में अन्य देशों से सुरक्षित निकालकर भारत लाया जा चुका है। यह फर्क विदेश में रह रहे लोगों की समझ में आने लगा है।

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