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मरने के 18 साल बाद करेंगे शादी, बैंड-बाजे के साथ पहुंची बारात

यह परंपरा नहीं बल्कि रूढि़यों के प्रति अंधविश्वास भरा मोह है। आप इसे अज्ञानता भी कह सकते हैं। मंगलवार को गवाह बनने जा रहा है, गांव मीरपुर मोहनपुर। यहां नटबादी कुनबे का एक व्यक्ति 18 साल पहले परलोक सिधार चुकी अपनी बेटी का ब्याह रचाने जा रहा है।

By Test1 Test1Edited By: Published: Mon, 09 Nov 2015 09:44 PM (IST)Updated: Mon, 09 Nov 2015 10:47 PM (IST)
मरने के 18 साल बाद करेंगे शादी, बैंड-बाजे के साथ पहुंची बारात

सहारनपुर। यह परंपरा नहीं बल्कि रूढि़यों के प्रति अंधविश्वास भरा मोह है। आप इसे अज्ञानता भी कह सकते हैं।

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मंगलवार को गवाह बनने जा रहा है, गांव मीरपुर मोहनपुर। यहां नटबादी कुनबे का एक व्यक्ति 18 साल पहले परलोक सिधार चुकी अपनी बेटी का ब्याह रचाने जा रहा है।

तर्क है कि यह पीढि़यों से चली आ रही रस्म है। इसलिए इसे हर हाल में पूरा करना है। बहरहाल, मृत बेटी की शादी को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। विकास खंड क्षेत्र के ग्राम मीरपुर मोहनपुर में औरों के साथ नटबादी जाति के लोग भी रहते हैं। इसी बिरादरी के रामेश्वर की दो वर्षीय बेटी पूजा की करीब 18 वर्ष पहले मौत हो चुकी है। रामेश्वर अब इसी बेटी पूजा का मरणोपरांत ब्याह करने जा रहा है।

रामेश्वर ने मृतका पूजा की शादी उत्तराखंड के जनपद हरिद्वार के गांव गाधारोना निवासी तेजपाल के बेटे से तय की है। बताया गया है कि तेजपाल के बेटे की भी 18 साल पहले मौत हो चुकी है। दोनों पक्षों में शादी के लिए रजामंदी बताई गई है। कार्यक्रम तय हो चुका है। ग्रामीणों का कहना है कि मंगलवार 10 नवंबर को मृतका पूजा की बारात गांव मीरपुर मोहनपुर आएगी।

नटबादी समाज में वर्षो से यह रस्म चली आ रही है। नटबादी समुदाय में पूर्वज भी इसे निभाते रहे हैं। ग्रामीणों ने बताया कि समुदाय में अगर अविवाहित बालक-बालिका की अकाल मौत हो जाती है, तभी यह रस्म निभाई जाती है। शादी की रस्म पूरी करने के लिए प्रतीक के तौर पर गुड्डा-गुडि़या बनाए गए हैं। इन्हें दूल्हा-दुल्हन माना जाता है। बारात भी बकायदा बैंडबाजों के साथ आनी है। दिलचस्प यह है कि इसमें सामर्थ्य के अनुसार दानदहेज भी दिया जाएगा। बरातियों के लिए भोज का इंतजाम किया गया है।

इन्होंने कहा..

शादी को लेकर तैयारी पूरी कर ली गई है। यह हमारे समुदाय की परंपरा है। इसलिए हम इसे अवश्य निभाएंगे। इससे हमारे कुनबे में रिश्तेदारी कायम रहती है। हमारे पुरखे भी यह परंपरा निभाते आए हैं। रामेश्वर, मृतका, पूजा का पिता।


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