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SC में आखिरी दौर में पहुंची आईपीएस एसोसिएशन और पैरामिलिट्री फोर्स की लड़ाई

आइपीएस एसोसिएशन और पैरा मिलिट्री फोर्स की उच्च वेतनमान को लेकर चल रही कानूनी लड़ाई सु्प्रीम कोर्ट में आखिरी चरण में पहुंच गई है।

By Arti YadavEdited By: Published: Thu, 16 Aug 2018 08:51 AM (IST)Updated: Thu, 16 Aug 2018 08:54 AM (IST)
SC में आखिरी दौर में पहुंची आईपीएस एसोसिएशन और पैरामिलिट्री फोर्स की लड़ाई
SC में आखिरी दौर में पहुंची आईपीएस एसोसिएशन और पैरामिलिट्री फोर्स की लड़ाई

नई दिल्ली (माला दीक्षित)। आइपीएस एसोसिएशन और पैरा मिलिट्री फोर्स (केन्द्रीय सशस्त्र बल) की उच्च वेतनमान को लेकर चल रही कानूनी लड़ाई सु्प्रीम कोर्ट में आखिरी चरण में पहुंच गई है। देश की सीमा की रक्षा और सरकारी संस्थानों की सुरक्षा में लगी सीमा सुरक्षाबल (बीएसएफ), केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ), केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआइएसएफ), और इंडो तिब्बत बार्डर पुलिस (आइटीबीपी) के जवान सब कुछ वही करते हैं, जो अन्य सुरक्षा बलों के जवान करते हैं लेकिन उन्हें ऑर्गनाइज्ड बल नहीं माना जाता। 

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चारों केन्द्रीय बलों के अधिकारियों को अन्य सेवाओं के अधिकारियों की तरह नॉन फंक्शनल फाइनेंसियल अपग्रेडेशन (एनएफएफयू) का लाभ नही मिलता। यानी हर तीन साल पर..ड्यू प्रमोशन के हिसाब से उच्च वेतनमान का लाभ। दिल्ली हाईकोर्ट उनके हक में फैसला भी दे चुका है लेकिन केन्द्र सरकार और आइपीएस एसोसिएशन ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर रखी है। जिस पर सुप्रीम कोर्ट में 11 सितंबर से फाइनल सुनवाई करेगा।

दिल्ली हाईकोर्ट ने करीब तीन साल पहले 3 सितंबर 2015 को दिए गए फैसले में केन्द्रीय बलों के अधिकारियों की याचिकाएं स्वीकार करते हुए केन्द्र सरकार को आठ सप्ताह में इन अधिकारियों को छठे केन्द्रीय वेतन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक एनएफएफयू का लाभ देने का आदेश दिया था। मुकदमें में पक्षकार केन्द्रीय बलों के आला अधिकारियों के वकील विष्णु शंकर जैन का कहना है कि हाईकोर्ट ने फैसले में माना था कि केन्द्रीय बल के अधिकारी आर्गनाइज्ड ग्रुप ए सर्विस श्रेणी में आते हैं।

हाईकोर्ट ने केन्द्र सरकार का 28 अक्टूबर 2010 का ऑफिस आदेश (ओएम) रद कर दिया था। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने सरकार के उन सभी पत्रों को भी निरस्त कर दिया था, जिनमें अधिकारियों की एनएफएफयू की मांग खारिज कर दी गई थी। विष्णु जैन ने कहा कि वास्तव में केन्द्रीय सशस्त्र बल के अधिकारियों को उच्च वेतननाम देने के खिलाफ ये लड़ाई आइपीएस लाबी की है। इसका कारण है कि इन चारों केन्द्रीय सशस्त्र बलों में टॉप रैंक पर आइपीएस अधिकारी डैपुटेशन पर (प्रतिनियुक्ति पर) आते हैं। ये प्रतिनियुक्तियां आइजी पद से शुरू होती हैं। इसके लिए इन केन्द्रीय बलों के अधिकारियों को डीआइजी पद पर ही रोक दिया जाता है। उन्हें डीआइजी के बाद प्रोन्नति नहीं मिलती। एक दो मामलों को छोड़कर कोई भी केन्द्रीय बल के अधिकारी टॉप पोस्ट पर नहीं पहुंचे।

विष्णु जैन कहते हैं कि आइपीएस एसोसिएशन की सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपीलों में केन्द्र सरकार की दलीलों के अलावा ये भी तर्क रखा है कि अगर ये अधिकारी उनके बराबर वेतनमान पाने लगेंगे तो वे लोग उन पर कमांड नही कर पाएंगे। प्रशासनिक दिक्कतें आएंगी। जैन का कहना है कि दस्तावेजों के मुताबिक उनका पक्ष पूरी तरह मजबूत है और उनके अधिकारियों को उच्च वेतनमान का कानूनी हक मिल कर रहेगा।

मामले में अगर केन्द्र सरकार का पक्ष देखा जाए तो केन्द्र सरकार की सीधी सी दलील है कि केन्द्रीय सशस्त्र बल की ये चारो सविर्सेज ए ग्रेड की ऑर्गनाइज्ड सर्विसेज में नहीं आती। ऑर्गनाइज्ड सर्विसेज के लिए छह मानक तय हैं और ये सशस्त्र बल उन सभी छह मानकों को पूरा नहीं करते । केन्द्र सरकार का कहना है कि एनएफएफयू यानी उच्च वेतनमान का लाभ देने के लिए कैडर रिव्यू करना पड़ता है और कैडर रिव्यू के लिए उस सर्विस का ऑर्गनाइज्ड ग्रुप ए सर्विस होना जरूरी है, जो कि ये सशस्त्र बल नहीं है। सवाल यहां सरकार पर आथिर्क बोझ पड़ने का भी है।


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