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दो देशों के लिए राष्ट्रगान लिखने वाले लेखक की आज ही के दिन हुई थी मृत्यु, जानें क्या है नाम

रवींद्रनाथ टैगोर ने दो देशों के लिए राष्ट्रगान लिखा था। वो अकेले ऐसे लेखक थे जिनको हर विद्या में लिखना आता था।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Tue, 06 Aug 2019 07:50 PM (IST)Updated: Wed, 07 Aug 2019 12:30 AM (IST)
दो देशों के लिए राष्ट्रगान लिखने वाले लेखक की आज ही के दिन हुई थी मृत्यु, जानें क्या है नाम

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। क्या आप जानते हैं कि दो देशों के लिए राष्ट्रगान लिखने वाले लेखक का क्या नाम था? नाम जानने के लिए शायद आपको अपने दिमाग पर जोर डालना पड़ेगा। आप दिमाग पर अधिक जोर न डालें, हम आपको ऐसे विरले लेखक का नाम बता रहे हैं। उनका नाम रवींद्रनाथ टैगोर है। टैगोर को लेखन के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार दिया गया था। आज ही के दिन यानि 7 अगस्त को उनकी मौत हुई थी। उन्होंने अपने जीवनकाल में लगभग 2,230 गीतों की रचना की। रवींद्र संगीत बांग्ला संस्कृति का अभिन्न अंग है। टैगोर के संगीत को उनके साहित्य से अलग नहीं किया जा सकता। उनकी अधिकतर रचनाएं तो अब उनके गीतों में शामिल हो चुकी हैं।

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बचपन से ही लोगों को मिल गया था आभास

रवींद्रनाथ टैगोर को जानने वाले बताते हैं कि उनको बचपन से ही कविता, छन्द और भाषा को समझने की अद्भुत प्रतिभा थी। उन्होंने पहली कविता आठ साल की उम्र में लिखी थी और सन् 1877 में केवल सोलह साल की उम्र में उनकी पहली लघुकथा भी प्रकाशित हो गई थी। उनके लेखन में गीतांजलि, पूरबी प्रवाहिनी, शिशु भोलानाथ, महुआ, वनवाणी, वीथिका शेषलेखा, चोखेरबाली, कणिका, नैवेद्य मायेर खेला और क्षणिका आदि शामिल हैं। देश और विदेश के सारे साहित्य, दर्शन, संस्कृति आदि उन्होंने अपने अन्दर समेट लिए थे। पिता के ब्रह्म-समाजी के होने के कारण वे भी ब्रह्म-समाजी थे। पर अपनी रचनाओं व कर्म के द्वारा उन्होंने सनातन धर्म को भी आगे बढ़ाया। 

हर क्षेत्र में लिखने की थी कला 

साहित्य की शायद ही ऐसी कोई शाखा हो, जिनमें उनकी रचना न हो, कविता, गान, कथा, उपन्यास, नाटक, प्रबन्ध, शिल्पकला जैसी सभी विधाओं में उन्होंने रचना की। उनकी प्रकाशित कृतियों में गीतांजली, गीताली, गीतिमाल्य, कथा ओ कहानी, शिशु, शिशु भोलानाथ, कणिका, क्षणिका, खेया आदि प्रमुख हैं। उन्होंने कुछ पुस्तकों का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया। जब उनकी प्रतियों का अंग्रेज़ी में अनुवाद हो गया उसके बाद वो पूरे विश्व में फैली।

पढ़ाई के लिए ही वो डलहौजी के हिमालयी पर्वतीय स्थल तक चले गए थे। वहां जीवनी, इतिहास, खगोल विज्ञान, आधुनिक विज्ञान और संस्कृत का अध्ययन किया था और कालिदास की शास्त्रीय कविताओं के बारे में भी पढ़ाई की थी। 1873 में अमृतसर में अपने एक महीने के प्रवास के दौरान, वह सुप्रभात गुरबानी और नानक बनी से बहुत प्रभावित हुए थे, इनको स्वर्ण मंदिर में गाया जाता था जिसके लिए रवींद्रनाथ अपने पिता के साथ जाया करते थे। उन्होंने इसके बारे में अपनी पुस्तक मेरी यादों में उल्लेख किया।

रवींद्रनाथ टैगोर के काम

रवीन्द्रनाथ टैगोर ज्यादातर अपनी पद्य कविताओं के लिए ही जाने जाते है। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई उपन्यास, निबंध, लघु कथाएं, नाटक और हजारों गाने लिखे हैं। उनकी छोटी कहानियों को सबसे अधिक लोकप्रिय माना जाता है। उन्होंने इतिहास, भाषा विज्ञान और आध्यात्मिकता से जुड़ी कई किताबें लिखी थी। अल्बर्ट आइंस्टीन के साथ उनकी संक्षिप्त बातचीत, "वास्तविकता की प्रकृति पर नोट", एक परिशिष्ट के रूप में शामिल किया गया है। 150 वें जन्मदिन के मौके पर उनके कार्यों का एक संकलन वर्तमान में प्रकाशित किया गया। इसमें प्रत्येक कार्य के सभी संस्करण शामिल हैं और लगभग अस्सी संस्करण है। 

शान्ति निकेतन

टैगोर को बचपन से ही प्रकृतिक चीजें पसंद थी। वो हमेशा सोचा करते थे कि प्रकृति के सानिध्य में ही विद्यार्थियों को अध्ययन करना चाहिए। इसी सोच को मूर्तरूप देने के लिए वह 1901 में सियालदह छोड़कर आश्रम की स्थापना करने के लिए शान्तिनिकेतन आ गए। प्रकृति के सान्निध्य में पेड़ों, बगीचों और एक पुस्तकालय के साथ टैगोर ने शान्तिनिकेतन की स्थापना की।

जीवन का अंतिम समय

जीवन के अन्तिम समय 7 अगस्त 1941 से कुछ समय पहले इलाज के लिए उन्हें शान्तिनिकेतन से कोलकाता ले जाया जा रहा था तो उनकी नातिन ने कहा कि आपको मालूम है हमारे यहाँ नया पावर हाउस बन रहा है। इसके जवाब में उन्होंने कहा कि हां पुराना आलोक चला जाएगा और नए का आगमन होगा। उसी के बाद उनकी मृत्यु हो गई थी।

सम्मान

उनकी काव्य रचना गीतांजलि के लिए उन्हें सन् 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। सन् 1915 में उन्हें राजा जॉर्ज पंचम ने नाइटहुड की पदवी से सम्मानित किया जिसे उन्होंने सन् 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में वापस कर दिया था।

बांग्ला साहित्य को नई दिशा दी

गुरुदेव के नाम से रबीन्द्र नाथ टैगोर ने बांग्ला साहित्य को एक नई दिशा दी। उन्होंने बंगाली साहित्य में नए तरह के पद्य और गद्य के साथ बोलचाल की भाषा का भी प्रयोग किया। इससे बंगाली साहित्य क्लासिकल संस्कृत के प्रभाव से मुक्त हो गया। टैगोर की रचनायें बांग्ला साहित्य में एक नई ऊर्जा ले कर आई। उन्होंने एक दर्जन से अधिक उपन्यास लिखे। 1913 ईस्वी में गीतांजलि के लिए इन्हें साहित्य का नोबल पुरस्कार मिला जो कि एशिया मे प्रथम विजेता साहित्य में है। मात्र आठ वर्ष की उम्र मे पहली कविता और केवल 16 वर्ष की उम्र मे पहली लघुकथा प्रकाशित कर बांग्ला साहित्य मे एक नए युग की शुरुआत की रूपरेखा तैयार की।

जीवन परिचय 

नाम- रवींद्रनाथ टैगोर 

जन्म-07 मई 1861

जन्म स्थान- कलकत्ता (अब कोलकाता)

मृत्यु- 07 अगस्त 1941

कलकत्ता, ब्रिटिश भारत

व्यवसाय- लेखक, कवि, नाटककार, संगीतकार, चित्रकार

भाषा-बांग्ला, अंग्रेजी

उल्लेखनीय कार्य- गीतांजलि, गोरा, घरे बाइरे, जन गण मन, रबीन्द्र संगीत, आमार सोनार बांग्ला, नौका डूबी

उल्लेखनीय सम्मान- साहित्य के लिए नोबल पुरस्कार 

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