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    International Tea Day 2022: पत्ती तोड़ने से लेकर प्याली तक चाय के बारे में रोचक जानकारियां, जानें- क्या-क्या होती हैं प्रक्रियाएं

    By Sanjeev TiwariEdited By:
    Updated: Fri, 20 May 2022 09:48 PM (IST)

    International Tea Day 2022 चाय के बारे में पढ़ें रोचक जानकारी। पत्ती तोड़ने से लेकर प्याली तक का सफर पूरा करने में दो दिन का समय लगता? इन दो दिनों में क्या-क्या प्रक्रियाएं होती हैं? कितने तरह के चाय होते हैं और इसका बाजार कितना बड़ा है?

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    चाय पत्ती तोड़ने से लेकर चाय बनाने के तक की प्रक्रिया पर स्पेशल रिपोर्ठ (फाइल फोटो)

    नई दिल्ली, रुमनी घोष। चाय की एक चुस्की हमारे भीतर किस तरह से ताजगी भर देती है, इसका अनुभव हम रोज ही करते हैं। चाय के बाजार पर चल रही चर्चा के बीच यह जानना रोचक होगा कि भारत चाय उत्पादन में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। चीन पहले स्थान पर है। पत्ती तोड़ने से लेकर प्याली तक का सफर पूरा करने में दो दिन का समय लगता? इन दो दिनों में क्या-क्या प्रक्रियाएं होती हैं? कितने तरह के चाय होते हैं और इसका बाजार कितना बड़ा है?

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    मार्च से शुरू होता है पत्ती तोड़ने का काम

    चाय बागान में पत्ती तोड़ने का काम मार्च महीने से शुरू होता है। इस समय नई पत्तियां आना शुरू होती है। मई, जून, जुलाई, अगस्त और सिंतबर में सबसे ज्यादा तुड़ाई का काम होता है। सिंतबर और अक्टूबर से पत्ते आना कम होने लगते हैं। चाय बागानों में ठंड के समय रेस्टिंग पीरियड होता है।

    30-35 इंच ऊंचाई

    होती है चाय बागानों में लगे पेड़ों की। इससे ज्यादा ऊंचाई नहीं रखी जाती है, ताकि लोगों को चाय पत्तियां तोड़ने में मुश्किल न हो। पेड़ों की ऊंचाई एक जैसी होने की वजह से चाय बागान खूबसूरत दिखते हैं।

    दो दिन का समय लगता है

    टी बोर्ड के डेवलपमेंट आफिसर के अनुसार चाय बागान में पत्तियां तोड़ने से लेकर पैकिंग तक में लगभग दो दिन का समय लगता है। इसमें सबसे ज्यादा 12 से 14 घंटे का समय विदरिंग (नमी सुखाने) में लगता है।

    भारत में होने वाली चाय की किस्में

    दार्जिलिंग, असम, नीलगीरि, कांगड़ा, मुन्नार, डुअर्स-तराई, मसाला चाय, सिक्किम चाय टी बोर्ड आफ इंडिया द्वारा पंजीकृत है।

    चाय पत्ती बनाने की प्रक्रिया

    दुनिया में चाय पत्ती के तीन प्रकार जाती हैं। आर्थोडाक्स, सीटीसी (क्रश, टियस और कर्ल) और ग्रीन टी।

    सीटीसी: चाय पत्तियों को तोड़ने (प्लकिंग) के बाद इसकी नमी दूर (बिदरिंग) हटाई जाती है।

    सीटीसी: सीटीसी मशीन के जरिये चाय की पत्तियों को काटकर उसे बारीक दाने का आकार दिया जाता है। इस प्रक्रिया को क्रश, टियस और कर्ल करना कहते हैं।

    आक्सीडेशन हवा में मौजूद आक्सीजन के संपर्क में आकर चाय पत्ती के दाने काले या गहरे भूरे रंग में बदल जाते हैं। इस प्रक्रिया को आक्सीडेशन (फर्मेनटिंग) कहते हैं।

    शाटिंग एंड ड्राइंग: बेहतर दानों को छांटकर, सुखाकर फिर पैकिंग की जाती है।

    आर्थोडाक्स: आर्थोडाक्स यानी चाय की पत्तियों को तोड़ने से लेकर पैकिंग तक की पारंपरिक प्रक्रिया। इसमें सीटीसी मशीन का उपयोग नहीं होता है। इसमें प्लकिंग (पत्तियां तोड़ना), विदरिंग (नमी सुखाना) के बाद रोलिंग की जाती है। उसके बाद फर्मेनटिंग की जाती है। फिर सुखाने और छांटने की प्रक्रिया एक जैसी होती है।

    ग्रीन टी: रोस्टिंग: ग्रीन टी में पत्तियों को तोड़ने के बाद उसकी रोस्टिंग (धूप या निश्चित तापमान पर सेंकना) या स्टीमिंग (वाष्पीकरण) किया जाता है। इसमें विदरिंग (नमी सुखाने) की जरूरत नहीं होती है। उसके बाद आक्सीडेशन (हवा से रासायनिक क्रिया) और छंटाई की प्रक्रिया होती है।

    टी बोर्ड इंडिया द्वारा जारी आंकड़े

    चाय उन उद्योगों में से एक है, जो केंद्र सरकार के नियंत्रण में आता है। टी बोर्ड इंडिया की उत्पत्ति 1903 में हुई, जब भारतीय चाय उपकर विधेयक पारित किया गया था। इस उपकर से होने वाली आय का उपयोग भारत के भीतर और बाहर भारतीय चाय के प्रचार के लिए किया जाना था। चाय अधिनियम 1953 की धारा 4 के तहत स्थापित वर्तमान चाय बोर्ड का गठन 1 अप्रैल 1954 को किया गया था।

    01 हेक्टेयर चाय के बागान के रखरखाव के लिए दो से तीन लोगों की जरूरत होती है।

    1400 हेक्यटेयर में फैला मोनाबाड़ी में एशिया का सबसे बड़ा चाय बागान है। यह असम के विश्वनाथ जिले में है।

    1903 में बना टी बोर्ड आफ इंडिया

    64 प्रतिशत लोग भारत में चाय पीते हैं

    80 प्रतिशत लोग सुबह और नाश्ते के साथ चाय पीते हैं

    80 प्रतिशत कुल उत्पादन का भारत में ही हो जाती है खपत

    20 प्रतिशत चायपत्ती ही होता है आयात

    (टी बोर्ड आफ इंडिया द्वारा वर्ष 2007 में करवाए गए सर्वे के अनुसार। उसके बाद कोई सर्वे नहीं करवाया गया, इसलिए पैटर्न में आंशिक बदलाव संभव है)

    विशेष किस्म के चाय तैयार करने की ओर जाएंगे

    श्रीलंका संकट के कारण आर्थोडाक्स किस्म की मांग और कीमतें अब काफी बेहतर हैं। भारतीय पारंपरिक किस्म को निर्यात बाजार में मांग धीरे-धारे बढ़ रही है। उम्मीद है कि उत्पादक अब धीरे-धीरे इस विशेष किस्म के चाय तैयार करने की ओर जाएंगे। कमल किशोर तिवारी, चेयरमैन, सिलीगुड़ी टी आक्शन कमेटी