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लॉकडाउन के चलते लाभ पर भारी पड़ सकती है टीबी, कालरा जैसी बीमारियों की अनदेखी

एक विशेषज्ञ ने आगाह किया है कि लॉकडाउन से जितना लाभ नहीं होगा उससे ज्यादा नुकसान... उन्‍होंने कहा है कि लॉकडाउन से टीबी और कालरा जैसी बीमारियों की अनदेखी से हो सकती है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sun, 24 May 2020 07:43 PM (IST)Updated: Sun, 24 May 2020 08:07 PM (IST)
लॉकडाउन के चलते लाभ पर भारी पड़ सकती है टीबी, कालरा जैसी बीमारियों की अनदेखी
लॉकडाउन के चलते लाभ पर भारी पड़ सकती है टीबी, कालरा जैसी बीमारियों की अनदेखी

बेंगलुरु, पीटीआइ। कोरोना महामारी से लोगों के जीवन को बचाने के लिए जद्दोजहद चल रही है। महामारी को फैलने से रोकने के लिए सख्त लॉकडाउन लागू किया गया है। लेकिन स्वास्थ्य से जुड़े एक विशेषज्ञ ने आगाह किया है कि लॉकडाउन से जितना लाभ नहीं होगा, उससे ज्यादा नुकसान इस दौरान टीबी और कालरा जैसी बीमारियों की अनदेखी से हो सकता है।

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इन बीमारियों की हो सकती है अनदेखी

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के हैदराबाद स्थित भारतीय लोक स्वास्थ्य संस्थान में प्रोफेसर वी. रमना धारा ने कहा कि लॉकडाउन जारी रहने से टीबी, कुपोषण और कालरा जैसी गरीबी से जुड़ी बीमारियों की अनदेखी हो सकती है। इसके चलते इन बीमारियों से होने वाली जनहानि को भी हमें ध्यान में रखना होगा, भले ही यह नुकसान नजर नहीं आ रहा हो।

इंसान ने पहुंचाई प्रकृति को चोट

रविवार को पीटीआइ के साथ खास बातचीत में प्रोफेसर धारा ने कहा कि ऐसा न हो कि लॉकडाउन लगाकर हम जितनी जिंदगियों को बचाएं, इन बीमारियों से होने वाली मौतें उसके मायने ही खत्म कर दें। हमें इस महामारी को इस रूप में देखना चाहिए कि इसके जरिए प्रकृति हमसे बदला ले रही है। हमने प्रकृति को भारी नुकसान पहुंचाया है। जानवरों की बस्तियां उजाड़ दी है, जिसके परिणाम स्वरूप जानवर मनुष्य के ज्यादा करीब आ गए।

तेजी से बढ़ रहा संक्रमण

भारत में कोरोना महामारी के हालात का आकलन करते हुए उन्होंने कहा कि मई के अंत तक देश में एक लाख संक्रमितों की आशंका व्यक्त की गई थी, जो संख्या अभी ही पीछे छूट गई है। संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़ भी रही है। प्रोफेसर धारा ने कहा कि मृत्यु दर स्थिर बनी हुई है, लेकिन कुल मौतें ज्यादा अहम हैं। कोरोना के कई मरीज ऐसे भी हो सकते हैं, जिनकी घर में ही मौत हो गई हो और उनकी कोरोना की जांच ही न कराई गई हो।

इसलिए कम है मृत्‍युदर

प्रोफेसर धारा ने कहा कि ऐसी मौतों की गणना कोरोना से होने वाले मौतों में नहीं होगी। भारत में बुजुर्गों की आबादी 10 फीसद से भी कम है। ऐसे में हो सकता है कि इसकी वजह से भी कोरोना से मृत्यु दर कम है। प्रोफेसर धारा एक पेशेवर/पर्यावरण औषधि चिकित्सक बोर्ड से जुड़े वैद्य हैं। यह बोर्ड अमेरिकन बोर्ड ऑफ प्रिवेंटिव मेडिसिन इन ऑकुपेशनल मेडिसिन एवं अमेरिकन बोर्ड ऑफ इंडिपेंडेंट मेडिकल इग्जामिनर्स द्वारा मान्यता प्राप्त है।

चरम पर नहीं पहुंची महामारी

प्रोफेसर धारा ने कहा कि देश में अभी कोरोना अपनी चरम पर नहीं पहुंचा है, इसके बावजूद संक्रमण के मामलों में तेजी से वृद्धि हो रही है। अगर संक्रमण के मामलों में कमी आती है तो हमें 1918 के स्पेनिश फ्लू की तरह कोरोना की तेजी के साथ संभावित वापसी के लिए भी तैयार रहना होगा। हालांकि, अभी ऐसी कोई वजह नजर नहीं आ रहा ही, जिससे यह कहा जा सके कि कोरोना तेजी के साथ लौटेगा। रमना धारा भोपाल त्रासदी पर गठित इंटरनेशनल मेडिकल कमीशन के सदस्य भी हैं।


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