Afghanistan Crisis : अफगानिस्तान में बिगड़े हालात तो दिल्ली के इस स्कूल पर मंडराए खतरे के बादल
स्कूल की प्रिंसिपल और निदेशक सानिया बताती हैं जनवरी 2021 से अफगान सरकार की ओर से स्कूल को दी जाने वाली वित्तीय सहायता नहीं दी गई है। इसके चलते स्कूल के लिए बिल्डिंग का किराया टीचर्स की फीस और अन्य खर्च का भार उठाना मुश्किल हो रहा है।
नई दिल्ली, विवेक तिवारी। अफगानिस्तान में तालिबान राज आते ही पूरी दुनिया में मौजूद अफगानिस्तानी सिरह उठे हैं। उन्होंने अफगानिस्तान से भाग कर जान तो बचा ली लेकिन तालिबान राज उनके सपनों को मारने पर तुला है। अफगानिस्तान में बदले राजनीतिक हालात का असर अब भारत में रह रहे अफगानी बच्चों की जिंदगी पर भी पड़ने लगा है। दिल्ली के भोगल इलाके में जमाल-अल-दीन अफगानी नामक एक अफगान स्कूल है। इस समय यहां कक्षा 1 से 12वीं तक के लगभग 550 से ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं। इस स्कूल में अफगानिस्तान बोर्ड के तहत ही पढ़ाई होती है। अब तक इस स्कूल को चलाने के लिए हर तरह की वित्तीय सहायता अफगानिस्तान सरकार देती थी। लेकिन अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद से इस स्कूल पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं। हालांकि स्कूल का प्रशासन इस स्कूल को किसी भी हालत में चलाना चाहता है।
स्कूल की प्रिंसिपल और निदेशक सानिया बताती हैं, जनवरी 2021 से अफगान सरकार की ओर से स्कूल को दी जाने वाली वित्तीय सहायता नहीं दी गई है। इसके चलते स्कूल के लिए बिल्डिंग का किराया, टीचर्स की फीस और अन्य खर्च का भार उठाना मुश्किल हो रहा है। उन्होंने बताया कि इस स्कूल में लगभग 550 बच्चे पढ़ते हैं। जो बेहद गरीब परिवारों से हैं। ऐसे में इन बच्चों से अच्छी फीस लेना भी संभव नहीं है। ऐसे में अगर ये स्कूल बंद होता है तो इन बच्चों का भविष्य भी मुश्किल में पड़ जाएगा।
सानिया के मुताबिक यहां टीचर्स और अन्य कर्मचारियों को मिला कर कुल 36 लोग काम कर रहे हैं। फिलहाल कोरोना को ध्यान में रखते हुए बच्चों की पढ़ाई ऑनलाइन कराई जा रही है। यहां बच्चों को फारसी में पढ़ाया जाता है ताकि उन्हें आसानी से समझ में आए।
(दिल्ली के भोगल में स्थित अफगानी बच्चों का स्कूल।)
अफगानिस्तान दूतावास से नहीं मिली राहत
सानिया कहती हैं, हम अफगानिस्तान दूतावास से भी लगातार संपर्क में हैं। पर वहां से कोई राहत पहुंचाने वाला जवाब अब तक नहीं मिला है। भारत सरकार या अन्य संस्थाओं से भी किसी तरह की सहायता के लिए कोशिश कर रहे हैं। हालात को देखते हुए बिल्डिंग के मालिक से भी किराया कुछ कम करने का अनुरोध किया गया है।
(दिल्ली के भोगल में स्थित अफगानी बच्चों का स्कूल।)
'पुरानी सरकार ने आठ महीने से नहीं दिया स्कूल का किराया और वेतन'
अफ़ग़ान एकजुटता समिति के सदस्य मोहम्मद क़ैस्मालिक ज़दा बताते हैं कि भोगल में जो अफगान स्कूल है, उसका किराया 8 महीने से हमारी पुरानी सरकार नहीं दिया। 8 महीने से वेतन नहीं दिया टीचर को। अब तालिबान की जो नई सरकार आई वो भी किराया नहीं दे रही है। तो उसे बंद करना पड़ेगा।
इंतजार के अलावा फिलहाल कोई रास्ता नहीं
जेएनयू में सेंटर ऑफ यूरोपियन स्टडीज में प्रोफेसर और अफगानिस्तान मामलों के विशेषज्ञ गुलशन सचदेवा के मुताबिक अफगानिस्तान में फिलहाल सत्ता परिवर्तन के चलते अस्थिरता का माहौल है। वहां नई सरकार के गठन में कुछ समय लगेगा। और नई सरकार के बनने के बाद भारत से उसके कैसे रिश्ते होंगे इस बात पर बहुत कुछ निर्भर करेगा। नई सरकार के क्या नियम होंगे ये तो समय ही बताएगा। अब तक जमाल-अल-दीन अफगानी स्कूल को अफगानिस्तान सरकार की सहायता से चलाया जा रहा था ऐसे में अफगानिस्तान का दूतावास ही इस स्कूल को मदद देने को लेकर आगे फैसला लेगा। अगर अफगानिस्तान की सरकार या दूतावास की ओर से भारत सरकार से इस स्कूल की मदद के लिए अनुरोध किया जाता है तो इस पर भारत सरकार फैसला ले सकती है। लेकिन फिलहाल अफगानिस्तान में नई सरकार के गठन तक इंतजार करना होगा।
(दिल्ली के भोगल में स्थित अफगानी बच्चों का स्कूल में क्लास में बैठे बच्चे।)
1994 में स्थापित हुआ स्कूल
जमाल-अल-दीन अफगानी स्कूल 1994 में शुरू किया गया था। शुरू में ये एक गैर सरकारी संगठन, महिला फेडरेशन फॉर वर्क से संबंधित था। बाद में 2000 के दशक की शुरुआत में इस एनजीओ ने स्कूल को बंद कर दिया। कुछ दिन तक यह स्कूल चंदे की राशि से भी चलाया गया हालांकि इसके बाद अफगान सरकार ने इसे आर्थिक सहायता देना शुरू कर दिया। तब से स्कूल की इमारत का किराया, शिक्षकों के लिए वेतन और यहां तक कि बच्चों की किताबों का खर्च भी अफगान सरकार की ओर से दिया जाता था।
(लाखों बच्चे अफगानिस्तान से विस्थापित हुए हैं।)
भटक रहे तीन लाख अफगानी बच्चे
यूनिसेफ अफगानिस्तान ने इस देश के बच्चों के भविष्य को लेकर गंभीर चिंता जताई है। रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान में मौजूद एक करोड़ बच्चों को मानवीय मदद की जरूरत है, जिसमें से 40 लाख लड़कियां हैं।
यूनिसेफ के मुताबिक अफगानिस्तान में अभी सिर्फ 10 में से एक बच्चा स्कूल जा पा रहा है। वहीं पांच साल से कम उम्र के 10 लाख बच्चे कुपोषण के शिकार हो गए हैं। बच्चों की जिंदगी पर भी खतरा है। पिछले एक साल में 550 से अधिक बच्चे मारे गए हैं, और 1400 से अधिक घायल हुए हैं।
एक आंकड़े के मुताबिक अफगानिस्तान संकट से कुल 50 लाख अफगानिस्तानी शरणार्थी बन गए हैं, जिसमें से ज्यादातर अपने ही देश में हैं। लेकिन करीब 22 से 25 लाख लोगों को अपना देश छोड़ना पड़ा है, जिसमें से बड़ी संख्या महिलाओं और बच्चों की हैं। यूनिसेफ के मुताबिक तीन लाख अफगानिस्तानी बच्चे अपना घर और देश छोड़ने को मजबूर हुए हैं।
(इटपुट-अनुराग मिश्र, विनीत शरण और मनीष कुमार)