Move to Jagran APP

देशभर में पांव पसार रहा स्वाइन फ्लू, सैकड़ों लोग बीमार, कई की मौत; ये हैं लक्षण और बचाव के तरीके

आम बोलचाल में स्वाइन फ्लू के नाम से जाना जाने वाला इंफ्लूजा एक विशेष प्रकार के वायरस इंफ्लूजा ‘ए’ एच1 एन1 के कारण फैल रहा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 30 Jan 2019 01:56 PM (IST)Updated: Thu, 31 Jan 2019 07:09 AM (IST)
देशभर में पांव पसार रहा स्वाइन फ्लू, सैकड़ों लोग बीमार, कई की मौत; ये हैं लक्षण और बचाव के तरीके
देशभर में पांव पसार रहा स्वाइन फ्लू, सैकड़ों लोग बीमार, कई की मौत; ये हैं लक्षण और बचाव के तरीके

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। इन दिनों उत्तर भारत के अनेक क्षेत्रों में स्वाइन फ्लू के मामले बढ़त पर हैं। वायरस से होने वाली यह बीमारी लापरवाही बरतने पर गंभीर रूप अख्तियार कर सकती है, लेकिन सुखद बात यह है कि इसका समय रहते कारगर इलाज संभव है। कुछ सजगताएं बरतकर स्वाइन फ्लू से बचा जा सकता है...

loksabha election banner

आम बोलचाल में स्वाइन फ्लू के नाम से जाना जाने वाला इंफ्लूजा एक विशेष प्रकार के वायरस इंफ्लूजा ‘ए’ एच1 एन1 के कारण फैल रहा है। यह वायरस सुअर में पाए जाने वाले कई प्रकार के वायरस में से एक है। सुअर के शरीर में इस वायरस के रहने के कारण ही इसे स्वाइन फ्लू कहते हैं। वायरस के ‘जीन्स’ में स्वाभाविक तौर पर परिवर्तन होते रहते हैं।

फलस्वरूप इनके आवरण की संरचना में भी परिवर्तन होते रहते हैं। 2009 में फैले स्वाइन फ्लू के कारण इंफ्लूजा ‘ए’ टाइप के एक नए वायरस एच1 एन 1 के कारण यह बीमारी फैल रही है। 1918 की फ्लू महामारी में वायरस का स्रोत सुअर थे। इस फ्लू को स्पेनिश फ्लू के नाम से जाना जाता है। जीन परिवर्तन से बनी यह किस्म ही मैक्सिको, अमेरिका और पूरे विश्व में स्वाइन फ्लू के प्रसार का कारण बन रही है।

ऐसे फैलता है यह मर्ज
स्वाइन फ्लू का संक्रमण व्यक्ति को स्वाइन फ्लू के रोगी के संपर्क में आने पर होता है। इस रोग से प्रभावित व्यक्ति को स्पर्श करने (जैसे हाथ मिलाना), उसके छींकने, खांसने या पीड़ित व्यक्ति की वस्तुओं के संपर्क में आने से स्वाइन फ्लू से कोई व्यक्ति ग्रस्त होता है। खांसने, छींकने या आमने-सामने निकट से बातचीत करते समय रोगी से स्वाइन फ्लू के वायरस दूसरे व्यक्ति के श्वसन तंत्र (नाक, कान, मुंह, सांस मार्ग, फेफड़े) में प्रवेश कर जाते हैं। अनेक लोगों में यह संक्रमण बीमारी का रूप नहीं ले पाता या कई बार सर्दी, जुकाम और गले में खराश तक ही सीमित रहता है।

इन्हें है ज्यादा खतरा

  • ऐसे लोग जिनका प्रतिरक्षा तंत्र (इम्यून सिस्टम) कमजोर होता है। जैसे बच्चे,वृद्ध, डायबिटीज या एच.आई.वी से ग्रस्त व्यक्ति।
  • दमा और ब्रॉन्काइटिस के मरीज।
  • नशा करने वाले व्यक्ति।
  • कुपोषण, एनीमिया या अन्य क्रोनिक बीमारियों से प्रभावित लोग।
  • गर्भवती महिलाएं इस संक्रमण की चपेट में जल्दी आती हैं। गर्भवती महिलाओं में संक्रमण के कारण मृत्यु दर तुलनात्मक रूप से अधिक होती है। ऐसी
  • महिलाओं को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत अन्य लोगों की तुलना में ज्यादा हो सकती है।

जटिलताएं
स्वाइन फ्लू के सामान्य लक्षणों के जटिल होने से रोगी को लोअर रेस्पाइरेटरी ट्रैक्ट इंफेक्शन, डीहाइड्रेशन और निमोनिया हो सकता है। ऐसी स्थितियों में रोगी की जान खतरे में पड़ सकती है। गले का खराब होना और कभी-कभी छाती में तकलीफ आदि जटिलताएं संभव हैं। इसके अलावा पुरानी गंभीर बीमारी का बिगड़ना जैसे अपर रेस्पाइरेटरी ट्रैक्ट की बीमारियां (साइनोसाइटिस आदि) और लोअर रेस्पाइरेटरी ट्रैक्ट की बीमारियां (निमोनिया, ब्रॉन्काइटिस और दमा) होने की आशंकाएं ज्यादा होती हैं। इसी तरह हृदय संबंधी कुछ बीमारियों के होने का जोखिम भी बढ़ जाता है। वहीं स्वाइन फ्लू की गंभीर स्थिति में न्यूरोलॉजिकल डिस्ऑर्डर भी उत्पन्न हो सकते हैं।

तब हो जाएं सचेत
जब पीड़ित व्यक्ति में स्वाइन फ्लू के लक्षण हों और उसे बुखार रहे। इंफ्लूजा ए के उप प्रकार एच1 और एन 3 के लिए की जाने वाली जांच पॉजिटिव हो। इंफ्लूजा ए के लिए रैपिड टेस्ट पॉजिटिव पाया जाए।

ऐसे लगेगा बीमारी का पता

  • किसी मरीज को स्वाइन फ्लू होने की पुष्टि तब मानी जा सकती है, जब नेजोफेरेनजियल स्वाब निम्न तीन में से किसी एक के लिए पॉजिटिव हो...
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला से पीड़ित की जांच में इंफ्लूजा ए एच1 एन1 एंटीबॉडीज की संख्या चार गुना अधिक पाई जाए।
  • रियल टाइम पी.सी.आर. जांच पॉजिटिव हो।
  • वायरल कल्चर की जांच पॉजिटिव हो।

इलाज के बारे में
स्वाइन फ्लू का इलाज डॉक्टर की सलाह पर रोगी के लक्षणों के आधार पर किया जाता है। इलाज की इस प्रक्रिया में बुखार के लिए पैरासीटामोल, खांसी के लिए कफ सीरप, सर्दी-जुकाम व छींकों के लिए एंटी एलर्जिक दवाएं दी जाती हैं। इसी तरह वायरस रोधी दवाएं भी दी जाती हैं। ए एच1 एन1 के नियंत्रण में वायरस रोधी दवा ओसेल्टामिवीर फॉस्फेट खांसी में कारगर है। इसके अलावा जेनामिवीर नामक वायरस रोधी दवा भी स्वाइन फ्लू के इलाज में प्रयुक्त हो रही है।

लक्षण

  • तेज बुखार होना।
  • खांसी आना।
  • गले में तकलीफ होना।
  • शरीर में दर्द होना।
  • सिर दर्द और कंपकंपी महसूस होना।
  • कमजोरी का अहसास।
  • कुछ लोगों में दस्त और उल्टी की भी समस्या हो सकती है।

स्वाइन फ्लू का उपचार

  • स्वाइन फ्लू का उपचार सामान्य फ्लू के जैसे ही किया जाता और ठंड, कफ, बुखार से बचने के लिए पैरासिटामाल या एंटीरेट्रोवायरल जैसी विषाणुरोधक दवाएं भी दी जाती हैं।
  • युवाओं में बुखार और ठंड से बचने के लिए पैरासिटामाल दिया जाता है।
  • बच्चों को कभी कभी अतिरिक्त उपचार की आवश्यकता होती है ।
  • 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को एस्पिरिन जैसी दवाएं नहीं देनी चाहिए।
  • स्वाइन फ्लू से बचने के लिए सुरक्षा के उपाय अपनायें। ऐसी जगह जहां संक्रमण होने की सम्‍भावना है वहां मास्क लगाना ना भूलें। ऐसे क्षेत्रो का दौरा करने से बचें जहां स्वाइन फ्लू फैला हो।

वैकल्पिक चिकित्सा व अन्य उपाय
बीमारी की अवस्था में पूरी तरह से आराम करना चाहिए। डीहाइड्रेशन (शरीर मे पानी की कमी) से बचने के लिए जरूरी है कि पेय पदार्थों का भरपूर मात्रा में सेवन किया जाए। इससे बीमारी के लक्षणों में सुधार होता है। इन सुझावों पर भी अमल करना चाहिए।
काढ़े का प्रयोग: तुलसी, अदरक, लौंग, काली मिर्च और गुरिच के काढ़े के सेवन से लाभ होता है।
पेय पदार्थ: गुनगुने पानी और अन्य पेय पदार्थ जैसे चाय के सेवन से भी राहत मिलती है।
खानपान: हल्का और सुपाच्य भोजन चंद घंटों के अंतराल पर कई बार लेना चाहिए। अत्यधिक चिकनाई युक्त वस्तुएं न खाएं।

कार्यस्थल को सुरक्षित और स्वच्छ रखने के लिए कुछ सुझाव

  • अपने हाथों को हमेशा साबुन और पानी से करीब 20 सेकड तक धोएं। ये कई तरह के सामान्य संक्रमणों को रोकने के लिए सबसे बढ़िया उपाय है। यदि ये उपलब्ध नहीं है, तो हाथों को धोने के लिए एक अल्कोहल युक्त सेनिटाइजर का प्रयोग किया जा सकता है।
  • खांसते या छींकते समय अपने मुंह और नाक को ढंकने के लिए रूमाल या टिश्यू पेपर का प्रयोग करना चाहिए। यदि टिश्यू पेपर नहीं है, तो अपनी कोहनी को मुंह के आगे रखकर खांसना या छींकना चाहिए ।
  • यदि संभव हो तो अपने सह्कर्मी या ग्राहक आदि से करीब 6 फीट की दूरी बनाए रखें।
  • अपने सह्कर्मी के साथ मेज या ऑफिस के सामान नहीं बांटना चाहिए।
     
  • [डॉ.सूर्यकांत त्रिपाठी, सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ]

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.