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पूजा स्थल अधिनियम 1991 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने दाखिल की याचिका

स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 की कुछ धाराओं की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली नई याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुई है। इस याचिका के जरिये उन्होंने इन धाराओं को धर्मनिरपेक्षता और कानून के शासन के सिद्धांतों का खुला उल्लंघन बताया।

By Achyut KumarEdited By: Wed, 25 May 2022 12:36 PM (IST)
पूजा स्थल अधिनियम 1991 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने दाखिल की याचिका
सुप्रीम कोर्ट में पूजा स्थल अधिनियम की धाराओं को चुनौती देने वाली याचिका दाखिल (फोटो- ANI)

नई दिल्ली, एएनआइ। सुप्रीम कोर्ट में पूजा स्थल (विशेष प्रावधान ) अधिनियम 1991 की कुछ धाराओं की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए नई याचिका दाखिल की गई है। इस याचिका में कहा गया है कि ये धाराएं धर्मनिरपेक्षता और कानून के शासन के सिद्धांतों का खुला उल्लंघन हैं। यह याचिका स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने दाखिल की है।

इन अनुच्छेदों का किया जा रहा उल्लंघन

एक धार्मिक नेता स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती द्वारा दायर याचिका में पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 की धारा 2, 3, 4 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। याचिका में कहा गया है कि धाराएं न केवल अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26, 29 का उल्लंघन करती हैं, बल्कि धर्मनिरपेक्षता और कानून के शासन के सिद्धांतों का भी खुले तौर पर उल्लंघन करती हैं, जो संविधान की प्रस्तावना और बुनियादी ढांचे का एक अभिन्न अंग हैं।

याचिका में कहा गया है कि हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों को हुई चोट बहुत बड़ी है, क्योंकि अधिनियम की धारा 2, 3, 4 ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का अधिकार छीन लिया है और इस तरह न्यायिक उपचार का अधिकार बंद कर दिया गया है।

क्या है धारा तीन

पूजा स्थल अधिनियम 1991 की धारा तीन पूजा स्थलों के रूपांतरण पर रोक लगाती है। इसमें कहा गया है, कोई भी व्यक्ति किसी भी धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी भी वर्ग के पूजा स्थल को एक ही धार्मिक संप्रदाय के एक अलग वर्ग या एक अलग धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी भी वर्ग के पूजा स्थल में परिवर्तित नहीं करेगा।

क्या है धारा चार

धारा चार किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र (जैसा कि 15 अगस्त, 1947 को विद्यमान था) के रूपांतरण के लिए कोई मुकदमा दायर करने या कोई अन्य कानूनी कार्यवाही शुरू करने पर रोक लगाती है।

क्या है अनुच्छेद 25

अनुच्छेद 25 के अनुसार, पूजा स्थल अधिनियम 1991 कई कारणों से शून्य और असंवैधानिक है। याचिका में कहा गया है कि यह हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों, सिखों के प्रार्थना करने, मानने और धर्म का पालन करने के अधिकार का उल्लंघन करता है

क्या है अनुच्छेद 29

यह अधिनियम हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों के पूजा स्थलों और तीर्थस्थलों के प्रबंधन और प्रशासन के अधिकारों का उल्लंघन करता है। यह अधिनियम आगे हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों को देवताओं से संबंधित धार्मिक संपत्तियों (अन्य समुदायों द्वारा दुरूपयोग) के स्वामित्व/अधिग्रहण से वंचित करता है। याचिका में कहा गया है कि यह हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों के उनके पूजा स्थलों और तीर्थयात्रा और देवता की संपत्ति को वापस लेने के न्यायिक उपचार के अधिकार को भी छीन लेता है।

क्या है अनुच्छेद 29

यह अधिनियम आगे हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों को सांस्कृतिक विरासत से जुड़े अपने पूजा स्थलों और तीर्थयात्राओं को वापस लेने से वंचित करता है। यह हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों को पूजा स्थलों और तीर्थों के कब्जे को बहाल करने के लिए भी प्रतिबंधित करता है। लेकिन मुसलमानों को वक्फ अधिनियम की धारा 107 के तहत दावा करने की अनुमति देता है। ऐसा याचिका में कहा गया है।

याचिका में की गई यह मांग

याचिका में यह घोषित करने का निर्देश देने की मांग की गई है कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की धारा 2, 3 और 4 भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26, 29 का उल्लंघन करने के लिए असंवैधानिक है, क्योंकि यह विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा अवैध रूप से कब्जा किए गए 'प्राचीन ऐतिहासिक और पौराणिक पूजा स्थलों और तीर्थयात्राओं' को वैध बनाता है।