Move to Jagran APP

कचरा साफ करने वालों की भी हो कद्र, मिलनी चाहिए सामाजिक बीमा और स्वास्थ्य सुविधाएं

कचरे की समस्या से मुंह फेरने की बजाय हमें जीरो वेस्ट पैदा करने वाले इटली जैसे देशों से सीखना चाहिए। इस कड़ी में सबसे पहले हमें कचरा उत्पादन ही कम करना होगा।

By Arti YadavEdited By: Published: Sat, 15 Sep 2018 08:56 AM (IST)Updated: Sat, 15 Sep 2018 10:57 AM (IST)
कचरा साफ करने वालों की भी हो कद्र, मिलनी चाहिए सामाजिक बीमा और स्वास्थ्य सुविधाएं
कचरा साफ करने वालों की भी हो कद्र, मिलनी चाहिए सामाजिक बीमा और स्वास्थ्य सुविधाएं

नई दिल्ली (जेएनएन)। समस्या यह है कि हम कचरा तो पैदा करते हैं लेकिन हमें उसका निस्तारण करना नहीं आया। हम न तो कचरा कम पैदा करने की कोशिश करते हैं और न गीले-सूखे कचरे को अलग करते हैं। यह काम आता है कचरा बीनने वालों के जिम्मे। मगर अफसोस की बात यह है कि इन लोगों की मेहनत और इनके काम का मूल्य अभी तक हम समझे नहीं हैं। इनकी वजह से नगरपालिकाएं रोजाना मजदूरी के छह करोड़ रुपये बचा लेती हैं।

loksabha election banner

ये लोग ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन रोकने वाले प्रोजेक्ट के मुकाबले 3.6 गुना अधिक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन रोकते हैं। ये लोग फेंके गए एक छोटे से पेन को भी रिसाइकिल कर देते हैं। ऐसे में इन्हें देश का असली पर्यावरणविद कहना गलत नहीं होगा। अगर हम इन लोगों को और सक्षम कर दें तो कचरे की इस विकराल समस्या को खत्म किया जा सकता है।

इसके लिए सबसे पहले घर के दरवाजे से कचरा उठाकर ले जाने वाले रैग पिकर्स का रजिस्ट्रेशन किया जाना जरूरी है। उन्हें अपनी खुद की माइक्रो इंटरप्राइज कंपोस्ट बनाने और मटेरियल रिकवरी फैसिलिटी बनाने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। जो रैग पिकर्स घर के दरवाजे से कचरा नहीं उठा रहे, उन्हें भी कचरे को अलग करने के लिए जगह दी जानी चाहिए। सभी कचरा बीनने वालों को सामाजिक बीमा और स्वास्थ्य सुविधाएं दी जानी चाहिए।

कचरे की समस्या से मुंह फेरने की बजाय हमें जीरो वेस्ट पैदा करने वाले इटली जैसे देशों से सीखना चाहिए। इस कड़ी में सबसे पहले हमें कचरा उत्पादन ही कम करना होगा। पैकेजिंग में प्लास्टिक का इस्तेमाल बेहद कम करना होगा, अन्न की बर्बादी रोकनी होगी। लेकिन यह तब ही मुमकिन है जब सब लोग यह तय कर लें कि कचरा उत्पादन कम करना है। अफसोस की बात यह है कि यह आपसी सहमति ही नहीं बन पा रही है।

हमें यह भी समझना होगा कि हम लैंडफिल को डंपिंग ग्राउंड नहीं बना सकते। ऐसा कानून बना देना चाहिए जिसमें 30 जून, 2018 के बाद से रिसायकिल हो पाने वाले कचरे (पेपर, कार्डबोर्ड, मेटल, ग्लास, हार्ड प्लास्टिक और नॉन पैकेजिंग प्लास्टिक) को लैंडफिल में फेंका जाना प्रतिबंधित हो। इसके बाद जो कचरा बचेगा उसका निस्तारण ठीक से करना होगा। हमें विकेंद्रीकरण की तकनीक अपनानी होगी। हमारी नगरपालिकाओं को सख्ती बरतनी होगी और जनता के गुस्से से डरना बंद करना होगा। शुरुआत के लिए नगरपालिकाओं को मिश्रित कचरा उठाने से मना कर देना चाहिए।

चिंतन एनवायरमेंटल रिसर्च एंड एक्शन ग्रुप की संस्थापक व निदेशक भारती चतुर्वेदी ने कहा, 'कचरा साफ करने वाले ही देश के असली पर्यावरणविद् हैं। अगर हम इनको और सक्षम कर दें तो इस समस्या को खत्म किया जा सकता है।'


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.