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एससी एसटी कानून में संशोधन को परखेगा सुप्रीम कोर्ट, केन्द्र को नोटिस जारी कर मांगा जवाब

कोर्ट ने संशोधित कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर केन्द्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। हालांकि कोर्ट ने संशोधित कानून पर एकतरफा रोक लगाने से इन्कार कर दिया।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Fri, 07 Sep 2018 08:10 PM (IST)Updated: Fri, 07 Sep 2018 08:10 PM (IST)
एससी एसटी कानून में संशोधन को परखेगा सुप्रीम कोर्ट, केन्द्र को नोटिस जारी कर मांगा जवाब

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। एससी एसटी अत्याचार कानून में तत्काल एफआइआर और तुरंत गिरफ्तारी बहाल करने वाले संशोधित कानून को सुप्रीम कोर्ट परखेगा। कोर्ट ने संशोधित कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर केन्द्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। हालांकि कोर्ट ने संशोधित कानून पर एकतरफा रोक लगाने से इन्कार कर दिया। 

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सरकार को नोटिस
न्यायमूर्ति एके सीकरी व न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने शुक्रवार को एससी एसटी अत्याचार संशोधन कानून 2018 को निरस्त करने की मांग वाली प्रिया शर्मा, प्रथ्वी राज चौहान और एक गैरसरकारी संगठन की ओर से दाखिल तीन याचिकाओं पर सुनवाई का मन बनाते हुए सरकार को नोटिस जारी किये। सरकार को 6 सप्ताह में जवाब देना है।
सरकार के जवाब का इंतजार 
इससे पहले याचिकाकर्ता की ओर से संशोधित कानून का विरोध करते हुए कहा कि संशोधित कानून बराबरी, अभिव्यक्ति की आजादी और जीवन के मौलिक अधिकार के खिलाफ है। इसमें सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी कर ऐसी व्यवस्था की गई है कि एक निर्दोष व्यक्ति अग्रिम जमानत नही पा सकता। कोर्ट ने दलीलें सुनने के बाद नोटिस जारी किया लेकिन वकीलों ने कानून पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की। कोर्ट ने रोक से इन्कार करते कहा कि सरकार का पक्ष सुने बगैर रोक लगाना ठीक नहीं होगा पहले सरकार का जवाब आने दो।

कानून के दुरुपयोग पर चिंता 
सुप्रीम कोर्ट ने गत 20 मार्च को दिये गये फैसले में कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए कहा था कि एससी एसटी अत्याचार निरोधक कानून में शिकायत मिलने के बाद तुरंत मामला दर्ज नहीं होगा डीएसपी पहले शिकायत की प्रारंभिक जांच करके पता लगाएगा कि मामला झूठा या दुर्भावना से प्रेरित तो नहीं है। इसके अलावा एफआईआर के बाद तुरंत गिरफ्तारी नहीं होगी।

अग्रिम जमानत का रास्ता था खोला 
सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी से पहले सक्षम अधिकारी और सामान्य व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले एसएसपी की मंजूरी ली जाएगी। कोर्ट ने अभियुक्त की अग्रिम जमानत का भी रास्ता खोल दिया था। इस फैसले का देशव्यापी विरोध हुआ था। जिसके बाद सरकार ने कानून में संशोधन कर कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी करते हुए पूर्व व्यवस्था बहाल कर दी है। 

कानून में धारा 18 ए जोड़ी गई
संशोधन कानून के जरिये एससी एसटी अत्याचार निरोधक कानून में धारा 18 ए जोड़ी गई है जो कहती है कि कानून का उल्लंघन करने वाले के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच की जरूरत नहीं है और न ही गिरफ्तारी से पहले किसी से इजाजत लेने की जरूरत है। संशोधित कानून में ये भी कहा गया है कि इसके तहत अपराध करने वाले को अग्रिम जमानत का लाभ नहीं मिलेगा। 
पुनर्विचार याचिका दाखिल
याचिका मे कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्दोषों को बचाने वाले विस्तृत और तर्क संगत फैसले को सरकार ने विपक्षी दलों के दबाव और एक वर्ग को खुश करने के लिए पहले कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की। पुनर्विचार याचिका लंबित रहने के दौरान ही चुनावों को देखते हुए एससीएसटी वर्ग को संतुष्ट करने के उद्देश्य से कानून में संशोधन कर दिया है।
कहा गया है कि इस कानून के दुरुपयोग के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं ऐसे में अभियुक्त को अग्रिम जमानत के प्रावधान का लाभ न मिलना उसके बराबरी के हक का उल्लंघन है। इस कानून के कारण सरकारी अधिकारी किसी कर्मचारी के खिलाफ विपरीत टिप्पणी करने में डरता है। ये कानून व्यक्ति की व्यक्तिगत और पेशेगत प्रतिष्ठा खराब करता है। इससे झूठी शिकायत और मनमानी गिरफ्तारी की छूट मिलती है।


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