सुप्रीम कोर्ट परखेगा अपराधी भीड़ का हिस्सा रहने पर सजा का कानून
अगर कोई अपराध के समान उद्देश्य से हथियार के साथ दंगाई भीड़ में शामिल था और उस भीड़ में से किसी ने किसी की हत्या कर दी तो भीड़ में शामिल हर व्यक्ति हत्या का दोषी माना जाएगा।
नई दिल्ली, माला दीक्षित। अपराध के समान उद्देश्य से एकत्रित गैर कानूनी भीड़ का हिस्सा रहे हर व्यक्ति को उस अपराध का दोषी मानने का कानून, भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धारा 149 सुप्रीम कोर्ट के स्कैनर पर है। कोर्ट इस कानून की वैधानिकता परखेगा। कोर्ट ने धारा 149 को चुनौती देने वाली याचिका पर अटार्नी जनरल को नोटिस जारी किया है। मामले पर गर्मी की छुट्टियों के बाद फिर सुनवाई होगी।
सरल भाषा में इस धारा का मतलब है कि अगर कोई अपराध के समान उद्देश्य से हथियार के साथ दंगाई भीड़ में शामिल था और उस भीड़ में से किसी ने किसी की हत्या कर दी तो भीड़ में शामिल हर व्यक्ति हत्या का दोषी माना जाएगा।
याचिकाकर्ता का कहना है कि हो सकता है कि भीड़ में शामिल हर व्यक्ति उतना गंभीर अपराध न करना चाहता हो जितना दूसरे ने कर दिया इसलिए हर व्यक्ति को उसकी भूमिका के मुताबिक सजा होनी चाहिए।
याचिका में कहा गया है कि यह कानून ब्रिटिश राज के खिलाफ भारतीयों के स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए 1857 की क्रांति के समय लाया गया था। मूल कानून में इस धारा की अवधारणा नहीं थी। अब आजादी के बाद भी इस कानून के तहत अदालतें बिना सोचे समझे सजा दे रही हैं जो कि संविधान के तहत प्राप्त बराबरी, स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी के मौलिक अधिकारों का हनन है।
कानून की वैधानिकता को चुनौती देने वाली यह रिट याचिका मध्य प्रदेश के गुना जिले के रहने वाले हजारी और नाथूलाल ने दाखिल की है जिन्हें इसी धारा के तहत अन्य 21 लोगों के साथ हत्या के जुर्म में दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई गई है।
न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी व न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की अवकाशकालीन पीठ ने वरिष्ठ वकील सुशील कुमार जैन की दलीलें सुनने के बाद मामले पर विचार का मन बनाते हुए अटार्नी जनरल को नोटिस जारी किया है।
धारा 149 को चुनौती देते हुए कहा गया है कि यह धारा आइपीसी के चेप्टर आठ का भाग है जो शांति भंग के अपराधों की बात करता है। इसमें धारा 141 से लेकर 149 तक के प्रावधान दिये गये हैं। जिसमें गैर कानूनी भीड़ किसे कहा जाएगा किसे ऐसी भीड़ का सदस्य माना जाएगा, इसका उल्लेख है। हथियार व बिना हथियार के उस भीड़ का हिस्सा रहने पर छह महीने से लेकर तीन साल तक की सजा की बात धारा 141 से लेकर 148 तक की गई है। जबकि धारा 149 अलग तरह के अपराध की बात करती है।
याचिका में कहा गया है कि धारा 149 का अदालतें मनमाना उपयोग कर रही हैं। क्योंकि अगर कोई व्यक्ति हथियार के साथ दंगाई भीड़ का हिस्सा रहता है लेकिन आगे बढ़कर अपराध में हिस्सा नहीं लेता है तो उसे धारा 149 के तहत सजा नहीं सुनाई जानी चाहिए। याचिकाकर्ता ने स्वयं के केस का उदाहरण देते हुए कहा है कि उसे धारा 149 के साथ धारा 302 में उम्रकैद की सजा दी गई है जबकि उसने क्या अपराध किया था यह स्पष्ट नहीं है। सिर्फ इतना स्पष्ट है कि वह हमला करने वाली भीड़ में शामिल था और उसके हाथ में लाठी थी।
याचिका में यह भी कहा गया है कि विधि आयोग ने इस धारा में संशोधन से यह कहते हुए मना कर दिया था कि इसमें सजा आइपीसी की धारा 38 के मुताबिक होगी यानी जिसने जितना अपराध में हिस्सा लिया उसे उतनी सजा मिलेगी। याचिकाकर्ता का कहना है कि वास्तव में अदालतें ऐसा नहीं करती इसलिए धारा 149 को असंवैधानिक घोषित किया जाए।
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