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सुप्रीम कोर्ट का फैसला, बड़ी बेंच को नहीं भेजा जाएगा मस्जिद में नमाज का मामला

जस्टिस नजीर बाकी दोनों जजों की राय से सहमत नजर नहीं आए। जस्टिस नजीर ने कहा कि मैं साथी जजों की बात से सहमत नहीं हूं।

By Vikas JangraEdited By: Published: Wed, 26 Sep 2018 07:31 PM (IST)Updated: Thu, 27 Sep 2018 03:08 PM (IST)
सुप्रीम कोर्ट का फैसला, बड़ी बेंच को नहीं भेजा जाएगा मस्जिद में नमाज का मामला
सुप्रीम कोर्ट का फैसला, बड़ी बेंच को नहीं भेजा जाएगा मस्जिद में नमाज का मामला

नई दिल्ली [जेएनएन]। अयोध्या विवाद से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि मस्जिद में नमाज का मामला पांच जजों वाली बेंच को नहीं भेजा जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के जजों ने 2-1 के बहुमत से कहा कि मामला बड़ी बेंच को नहीं सौंपा जाएगा। तीन जजों में से दो जज (चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस अशोक भूषण) मामले को बड़ी बेंच के पास नहीं भेजने पर राजी हुए।

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हालांकि, जस्टिस नजीर बाकी दोनों जजों की राय से सहमत नजर नहीं आए। जस्टिस नजीर ने कहा कि मैं साथी जजों की बात से सहमत नहीं हूं। कोर्ट ने कहा कि फारुकी मामले में टिप्पणी से अयोध्या केस की सुनवाई पर असर नहीं पड़ेगा। अदालत ने कहा कि 29 अक्टूबर से सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की सुनवाई होगी।

बतादें कि मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने मुस्लिम पक्ष की इस्माइल फारुकी फैसले के उस अंश पर पुनर्विचार की मांग पर अपना फैसला सुनाया जिसमें कहा गया है कि नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है। इस मामले में कोर्ट ने गत 20 जुलाई को सभी पक्षों की बहस सुनकर फैसला सुरक्षित रख लिया था।

क्या है 1994 इस्माइल फारुकी का मामला
सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 1994 में अयोध्या मे भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाली इस्माइल फारुकी की याचिका पर फैसला दिया था। उस फैसले में एक जगह कोर्ट ने कहा है कि नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है।

वैसे तो वह फैसला बहुत पुराना है, लेकिन अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मालिकाना हक से जुड़ी अपीलों पर सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष ने फारुकी के फैसले में दी गई व्यवस्था को मुख्य मामले पर असर डालने वाला बताते हुए फैसले के उस अंश को पुनर्विचार के लिए सात न्यायाधीशों की पीठ को भेजे जाने की मांग की थी।

मुस्लिम पक्षकार की थी ये मांग
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, अशोक भूषण और एस अब्दुल नजीर की पीठ ने फारुकी फैसले के उस अंश पर पुनर्विचार की जरूरत पर सभी पक्षों की लंबी बहस सुनकर गत 20 जुलाई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने मांग की थी इस मामले को संविधान पीठ को भेजा जाना चाहिए क्योंकि फैसले में दी गई व्यवस्था गलत है और ये अयोध्या जन्मभूमि मामले के मालिकाना हक मुकदमे पर असर डालता है। उनका कहना था कि जिस पहलू पर बहस ही नहीं सुनी कोर्ट ने उस पर अपना नजरिया प्रकट कर दिया है। कोर्ट धर्म के अभिन्न हिस्से के मुद्दे पर साक्ष्यों को देखे और सुने बगैर यह नहीं कह सकता कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है।

हिंदू पक्ष ने किया था विरोध
हालांकि हिन्दू पक्ष ने मांग का विरोध किया था और कहा था कि फैसले के इतने वर्षों बाद इस पर पुनर्विचार की मांग करके मुस्लिम पक्ष अयोध्या विवाद के मुख्य मामले की सुनवाई में देरी करना चाहता है। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी मांग का विरोध करते हुए इसे देरी की रणनीति कहा था।

बतातें चलें कि अयोध्या में राम जन्मभूमि मालिकाना हक के मुख्य मुकदमें पर अभी तक सुनवाई शुरू नहीं हुई है। जबकि हाईकोर्ट का फैसला 2010 में आ गया था जिसमें राम जन्मभूमि को तीन बराबर के हिस्सों में बांटने का आदेश दिया गया था। तभी से सुप्रीम कोर्ट में फैसले के खिलाफ अपीलें लंबित हैं और सुप्रीम कोर्ट ने मामले में यथास्थिति कायम रखने के आदेश दे रखे हैं। इस मामले में भगवान रामलला विराजमान सहित सभी पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की हैं।


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