जज लोया मौत केसः नहीं होगी SIT जांच, SC ने कहा राजनीति से प्रेरित लगती है याचिका
जज लोया मामले एसआइटी जांच नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने स्वतंत्र जांच की मांग की याचिका खारिज कर दी है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सोहराबुद्दीन केस की सुनवाई कर रहे मुंबई के विशेष सीबीआई जज बी.एच. लोया की मौत को लेकर चल रहे विवाद पर विराम लग गया है। सुप्रीम कोर्ट ने जज लोया की मौत की स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराने की मांग गुरुवार को खारिज कर दी। व्यक्तिगत दुश्मनी निपटाने के लिए कोर्ट को मंच न बनाने की सलाह देते हुए सख्त शब्दों में यह भी याद दिला दिया कि जिस तरह न्यायपालिका को बदनाम करने की कोशिश हुई है उसे अवमानना माना जा सकता था, लेकिन छोड़ रहे हैं। पूरी लड़ाई में राजनीतिक बू को पहचानते हुए कोर्ट ने यह भी आगाह किया कि राजनीतिक जंग लड़ने के लिए कोर्ट नहीं चुनावी मैदान है।
जज लोया की मौत का विवाद राजनीतिक और हाल के दिनों में तो न्यायिक अखाड़ा भी बन गया था। इसके बहाने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को घेरने की कवायद थी। राजनीतिक मंच पर जहां इसे खुलकर खेला जा रहा था वहीं कोर्ट के अंदर भी एक खेमा मजबूती से जुटा था। सुप्रीम कोर्ट ने जब गुरुवार को फैसला सुनाया तो हर मुद्दे पर क्षोभ और थोड़ा गुस्सा भी दिखा। कोर्ट ने जनहित याचिका के जरिये न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए याचिकाकर्ताओं की ओर से बहस करने वाले वकील प्रशांत भूषण व अन्य वकीलों के तौर तरीके पर तीखी टिप्पणियां भी कीं और आगाह भी किया।
ये फैसला मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा न्यायमूर्ति एएम खानविल्कर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कांग्रेसी नेता तहसीन पूनावाला व चार अन्य की याचिकाएं खारिज करते हुए सुनाया है। याचिकाओं में जज लोया की मौत पर सवाल उठाने वाले एक लेख को आधार बनाते हुए मामले की स्वतंत्र जांच कराए जाने की मांग की गई थी। मुंबई में विशेष सीबीआई जज बीएच लोया की नागपुर में दिल का दौरा पड़ने से 1 दिसंबर 2014 को मौत हो गई थी। वे एक सहयोगी के यहां शादी में शामिल होने के लिए नागपुर गये थे। जज लोया सोहराबुद्दीन मुठभेड़ कांड की सुनवाई कर रहे थे। पीठ की ओर से जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला लिखते हुए कहा है कि जज लोया ने जब छाती में दर्द की शिकायत की तो उनके साथी जज उन्हें अस्पताल लेकर गए। उनके साथ चार जज थे जिनके बयान पूरी घटना को सिलसिलेवार बयां करते हैं। उनमें सच्चाई है।
याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने उन चार साथी जजों के बयानों और व्यवहार पर सवाल उठाया है। जज लोया की मौत को स्वाभाविक के बजाए अस्वाभाविक कह रहे याचिकाकर्ताओं ने दलील दी है कि साथी जज उन्हें छाती में दर्द की शिकायत पर दिल के अस्पताल क्यों नहीं ले गए उन्हें दूसरे अस्पताल क्यों ले जाया गया। ये दलील अगर दुराग्रह से प्रेरित नहीं है तो भी पूरी तरह बकवास है। कोर्ट ने कहा कि उनके साथी जज अच्छे इरादे से तत्काल चिकित्सीय मदद के लिए उन्हें सबसे पास के अस्पताल ले गए। कोर्ट ने कहा कि इमरजेंसी की स्थिति में की गई मानवीय कार्यवाही की आलोचना करना बहुत आसान है। बाद में आराम से चीजों का विश्लेषण कर वैकल्पिक तरीका अपनाए जाने की टिप्पणी करना भी आसान है लेकिन मानवीय व्यवहार को परखने का ये तरीका नहीं हो सकता। कोर्ट ने कहा कि लोया के साथी जजों के व्यवहार पर सवाल नहीं उठता।
उन्होंने परिस्थितियों के हिसाब से अच्छे इरादे के साथ अपनी तरफ से सबसे बेहतर किया। कोर्ट ने लोया के साथी जिला जजों और साथ ही हाईकोर्ट के जजों पर सवाल उठाए जाने पर ऐतराज जताया है। मामले की गोपनीय ढंग से जांच कराए जाने के आरोपों को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि पेश दस्तावेजी सामग्री और डाक्टर राठी के 22 नवंबर 2017 को दर्ज किये गए बयानों को देखने के बाद गोपनीय जांच की सत्यता के बारे में कोई संदेह नहीं रह जाता।