सुप्रीम कोर्ट में अब भी कुछ ठीक नहीं, फिर दिखा जजों में मतभेद; अनुशासन पर उठे सवाल
सुप्रीम कोर्ट में उठा तूफान फिलहाल थमा नहीं है। एक बार फिर जजों में मतभेद देखने को मिला है। SC ने भूमि अधिग्रहण मामले को चीफ जस्टिस के पास भेजा।
नई दिल्ली (जागरण ब्यूरो)। सुप्रीम कोर्ट में अभी पुराने विवाद का तूफान थमा नहीं था कि एक नए विवाद ने करवट ले ली है। पहले न्यायिक सुचिता का सवाल उठा था, अब न्यायिक अनुशासन के सवाल पर सर्वोच्च अदालत की दो पीठें आमने-सामने हैं। गत बुधवार को तीन न्यायाधीशों की एक पीठ ने समान क्षमता वाली पीठ का फैसला रद किये जाने को न्यायिक अनुशासन की अनदेखी बताते हुए सवाल उठाया था। साथ ही मामला बड़ी पीठ को भेजने पर विचार का मन बनाते हुए हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट की पीठों से आग्रह किया था कि वे फिलहाल भूमि अधिग्रहण के मामलों की सुनवाई टाल दें। लेकिन गुरुवार को जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस अमिताव राय की पीठ ने न्यायिक अनुशासन के विवाद से जुड़ा पूरा प्रकरण मुख्य न्यायाधीश को भेज दिया।
इस प्रकरण की खास बात यह भी है कि न्यायिक अनुशासन के फेर में आई पीठों के न्यायाधीशों में वे न्यायाधीश भी शामिल हैं, जो पिछले विवाद के केंद्र में थे। जिन पीठों के फैसले और आदेश विचार के घेरे में आए हैं, उनमें जस्टिस मदन बी लोकूर, जस्टिस कुरियन जोसेफ व जस्टिस अरुण मिश्रा शामिल थे। जबकि कुछ दिन पहले मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ विद्रोह करने वाले चार वरिष्ठ न्यायाधीशों में जस्टिस लोकूर और जस्टिस जोसेफ शामिल थे और मुख्य न्यायाधीश पर जिस मनपसंद पीठ के समक्ष केस लगाने का उन लोगों ने आरोप लगाया था वो जस्टिस अरुण मिश्रा की पीठ थी।
मौजूदा विवाद भूमि अधिग्रहण के मामलों में मुआवजे की व्यवस्था को लेकर दिए गए दो फैसलों से संबंधित है। गत आठ फरवरी को तीन न्यायाधीशों की पीठ ने दूसरी तीन न्यायाधीशों की पीठ के करीब चार साल पुराने 2014 के फैसले को गलत घोषित कर दिया था। 2014 में जस्टिस आरएम लोढा, मदन लोकूर व कुरियन जोसेफ ने व्यवस्था दी थी कि मुआवजे का भुगतान नहीं होना, भूमि अधिग्रहण रद होने का आधार बनाता है। जबकि गत 8 फरवरी को जस्टिस अरुण मिश्रा, आदर्श कुमार गोयल व एम शांतनगौडर की पीठ ने दो/एक के बहुमत से 2014 का फैसला रद कर नयी व्यवस्था दी। जिसमें कहा कि अगर सरकारी एजेंसी बिना शर्त भूमि अधिग्रहण का मुआवजा देती है लेकिन भूस्वामी उसे ठुकरा देता है तो उस भुगतान को लेकर सरकारी एजेंसी पर कोई जिम्मेदारी नहीं रहेगी। मुआवजा ठुकराने वाला यह कहने का हकदार नहीं होगा कि मुआवजा न तो उसे दिया गया और न ही कोर्ट में जमा कराया गया, इसलिए अधिग्रहण रद समझा जाए। इस फैसले में जस्टिस शांतनगौडर की सहमति नहीं थी।
गत बुधवार को भू अधिग्रहण का एक मामला जब जस्टिस मदन बी लोकूर, कुरियन जोसेफ और दीपक गुप्ता के सामने आया तो पक्षकारों ने उन्हें 8 फरवरी के फैसले की जानकारी दी। इस पर पीठ ने न्यायिक अनुशासन का सवाल उठाते हुए कहा कि समान क्षमता वाली पीठ का फैसला कैसे रद किया जा सकता है। अगर कोई मतभेद था तो उसे बड़ी पीठ को भेजा जाना चाहिए। कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी में यह भी कहा था कि न्यायिक अनुशासन और औचित्य कायम नहीं रखा गया तो न्यायपालिका का अस्तित्व संकट में होगा। विवाद को बड़ी पीठ को भेजने पर सुनवाई 7 मार्च तक टालते हुए अंतरिम आदेश में अदालतों से भूमि अधिग्रहण पर फिलहाल सुनवाई टालने का आग्रह किया था।
गुरुवार को ऐसा एक मामला जस्टिस अरुण मिश्रा व अमिताव राय के सामने आया। उन्हें बुधवार के आदेश की जानकारी दी गई। इस पर जस्टिस मिश्रा की पीठ ने मामला विचार और उचित पीठ के गठन के लिए उसे मुख्य न्यायाधीश को भेज दिया।