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चीफ जस्टिस ही 'मास्टर ऑफ रोस्टर', सुप्रीम कोर्ट में शांति भूषण की याचिका खारिज

शांति भूषण की याचिका में चीफ जस्टिस की कार्य आवंटन प्रक्रिया बदलने और पीठों को कार्य आवंटन मे चीफ जस्टिस के कॉलेजियम से मशविरा किए जाने की मांग की गई थी।

By Tilak RajEdited By: Published: Fri, 06 Jul 2018 11:15 AM (IST)Updated: Fri, 06 Jul 2018 11:31 AM (IST)
चीफ जस्टिस ही 'मास्टर ऑफ रोस्टर', सुप्रीम कोर्ट में शांति भूषण की याचिका खारिज
चीफ जस्टिस ही 'मास्टर ऑफ रोस्टर', सुप्रीम कोर्ट में शांति भूषण की याचिका खारिज

नई दिल्‍ली, जेएनएन। सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर अपने फ़ैसले में कहा है कि चीफ जस्टिस ही मास्टर ऑफ रोस्टर हैं। वह ही सुप्रीम कोर्ट की अन्य पीठों को काम आवंटित करते है। कोर्ट ने पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण की चीफ जस्टिस का रोस्टर तय करने के अधिकार के लिए नियम बनाने की मांग ठुकरा दी है।

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बता दें कि शांति भूषण की याचिका में चीफ जस्टिस की कार्य आवंटन प्रक्रिया बदलने और पीठों को कार्य आवंटन मे चीफ जस्टिस के कॉलेजियम से मशविरा किए जाने की मांग की गई थी। शांति भूषण की याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा, पहले के कई फैसलों में यह साफ किया जा चुका है कि चीफ जस्टिस 'मास्टर ऑफ रोस्टर' हैं। उन्हें ही जजों को केस आवंटित करने का अधिकार है। याचिका में रखी गई मांग अव्यवहारिक है।'

दरअसल, कौन-सी पीठ किस मामले को सुनेगी ये तय करना प्रधान न्यायाधीश के क्षेत्राधिकार में आता है। लेकिन शांति भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर भारत के प्रधान न्यायाधीश के सुनवाई पीठ तय करने के अधिकार को चुनौती दी थी। शांति भूषण ने कहा था कि इस प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाए और रेगुलेट किये जाने की जरूरत है। याचिका में कहा गया है कि मामले आवंटित करने का फैसला अकेले प्रधान न्यायाधीश न करें, बल्कि कोलीजियम के सदस्य वरिष्ठ न्यायाधीश भी इसमें शामिल किये जाएं।

मालूम हो कि पिछले महीनों सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम चार न्यायाधीशों ने प्रेस कान्फ्रेंस कर प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की कार्यप्रणाली पर जो सवाल उठाए थे, उसमें एक मुद्दा पीठों को कार्य आवंटन का भी था। उन न्यायाधीशों ने प्रधान न्यायाधीश पर अपनी पसंद के जज को पसंद के केस सुनवाई के लिए आवंटित करने का आरोप लगाया था। इन आरोपों के बाद उठे बवंडर को शांत करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पहली बार न्यायाधीशों को कार्य आवंटन का रोस्टर वेबसाइट पर डाल कर आम जनता के लिए सार्वजनिक किया गया।

हालांकि मामले में भी विवाद तब उठा था, जब दूसरे नंबर के वरिष्ठतम जज जे. चेलमेश्वर ने उड़ीसा के सेवानिवृत जज पर लगे मेडिकल कालेज रिश्वत कांड के मामले की जांच कोर्ट की निगरानी में एसआइटी से कराने की मांग वाली कामिनी जायसवाल की याचिका पर सुनवाई की पीठ तय कर दी थी। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने जिसकी अगुवाई स्वयं मुख्य न्यायाधीश ने की थी, जस्टिस चेलमेश्वर का सुनवाई पीठ तय करने का आदेश रद किया था और कहा था कि पीठ को मुकदमें आवंटित करना सिर्फ प्रधान न्यायाधीश के कार्यक्षेत्र में आता है। इन सब पहलुओं को देखते हुए शांति भूषण की ये याचिका महत्वपूर्ण हो गई थी।

दाखिल याचिका में सुप्रीम कोर्ट के अलावा भारत के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा को भी पक्षकार बनाया गया था। याचिका में कहा गया कि यह मामला प्रधान न्यायाधीश के प्रशासनिक अधिकारों से जुड़ा हुआ है। रोस्टर तय करने (पीठों को मुकदमों का आवंटन) की प्रधान न्यायाधीश की शक्ति अनियंत्रित और मनमानी नहीं हो सकती। वे मनमाने ढंग से सुनवाई पीठों का चयन नहीं कर सकते, क्योंकि ये लोकतंत्र और कानून के शासन को कम करती है। याचिका में कहा गया है कि प्रधान न्यायाधीश को पीठों को मुकदमें आवंटित करने का काम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीशों यानी कोलीजियम के न्यायाधीशो के परामर्श से करना चाहिए। हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि चीफ जस्टिस ही मास्टर ऑफ रोस्टर हैं।


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