भीमा-कोरेगांव: जस्टिस चंद्रचूड़ ने रखी अलग राय, बोले- पुलिस कार्रवाई पर संदेह के बादल
भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में जस्टिस चंद्रचूड़ ने बहुमत से विपरीत पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि किसी अनुमान के आधार पर आज़ादी का हनन नहीं किया जा सकता है।
नई दिल्ली, एएनआइ। भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में नक्सलियों से संबंध के आरोप में नजरबंद वामपंथी विचारकों की हिरासत को सुप्रीम कोर्ट ने चार हफ्ते और बढ़ा दिया है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने एसआइटी गठित करने की मांग ठुकराते हुए पुणे पुलिस से आगे की जांच जारी रखने को कहा है। इन पांच वामपंथी विचारकों में वरवरा राव, अरुण फरेरा, वरनान गोन्साल्विज, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा शामिल हैं। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस खानविलकर के बहुमत के फैसले में कहा गया कि इस मामले में गिरफ्तारी सिर्फ इसलिए नहीं हुई है, क्योंकि असहमति थी। मामले की एसआइटी जांच नहीं कराई जाएगी। वहीं जस्टिस चंद्रचूड़ ने बहुमत से विपरीत पक्ष रखा।
भीमा-कोरेगांव केस में बहुमत से विपरीत पक्ष सुनाते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, 'पांच नागरिकों ने असाधारण तरीके से याचिका दाखिल की गई। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दो घंटे बाद ही पुलिस ऑफिसर मीडिया के सामने आ गए, सुधा भारद्वाज के खत को न्यूज चैनलों पर सनसनीखेज़ तरीके से दिखाया गया। इस मामले में पुलिस कार्रवाई पर संदेह के बादल हैं। पुलिस मीडिया ट्रायल में मदद कर रही है।'
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, '14 सितंबर को ही इस कोर्ट ने एक व्यक्ति को 50 लाख रुपये का मुआवज़ा देने के आदेश दिए, जिसे 25 साल पहले फंसाया गया था। यह कोर्ट की निगरानी में एसआइटी से जांच कराए जाने के लिए एकदम उपयुक्त मामला है।'
उन्होंने कहा कि गिरफ्तार आरोपियों का नक्सलियों से कोई लिंक नहीं पाया गया है। किसी अनुमान के आधार पर आज़ादी का हनन नहीं किया जा सकता है। कोर्ट को इसे लेकर सावधान रहना चाहिए। पुणे पुलिस का बर्ताव इस मामले में सही नहीं रहा है।
इतिहासकार रोमिला थापर तथा कुछ अन्य प्रमुख हस्तियों ने उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए तत्काल रिहाई और गिरफ्तारी की एसआइटी से जांच कराने की मांग की थी। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचू़ड की पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 20 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था।