स्व संचालित ट्रस्टों के फैसलों में दखल नहीं दे सकती सरकार, एमपी में पारसी संस्था की संपत्ति बेचने के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि स्व संचालित सामाजिक और धार्मिक ट्रस्टों में सरकारी दखल की जरूरत नहीं है। अगर ऐसा करने का प्रयास किया जाता है तो वह स्वायत्तता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया से लिए जाने वाले फैसलों के महत्व को कम करने वाला होगा।
नई दिल्ली, पीटीआइ। स्व संचालित सामाजिक और धार्मिक ट्रस्टों में सरकारी दखल की जरूरत नहीं है। अगर ऐसा करने का प्रयास किया जाता है तो वह स्वायत्तता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया से लिए जाने वाले फैसलों के महत्व को कम करने वाला होगा। इस तरह के हस्तक्षेप से संस्था की स्वतंत्रता का मूलभूत अधिकार भी प्रभावित होगा। पारसी संस्था से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए सरकारी कामकाज पर यह कड़ी टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने की है।
मामला महो की पारसी जोरास्ट्रियन अंजुमन से जुड़ा हुआ है। संस्था को मध्य प्रदेश में स्थित पांच संपत्तियों को बेचने की रजिस्ट्रार ने अनुमति देने से इन्कार कर दिया था। संस्था इसी के खिलाफ शीर्ष न्यायालय में आई थी। संस्था एक पंजीकृत सामाजिक-धार्मिक ट्रस्ट है। शीर्ष न्यायालय में उससे जुडे़ मामले की सुनवाई जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस आर रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने की।
पीठ ने पारसी ट्रस्ट को मध्य प्रदेश की अपनी उल्लिखित पांच संपत्तियों को बेचने की अनुमति दे दी है। जस्टिस भट ने अपने आदेश में लिखा है कि सरकार की जिम्मेदारी उन पंजीकृत संस्थाओं की संपत्ति पर नजर रखना और उनके दुरुपयोग या उन्हें खत्म करने के प्रयास को रोकना है। लेकिन सरकार स्व संचालित संस्थाओं के फैसलों को नियंत्रित नहीं कर सकती है। यह लोगों की खुद जिम्मेदारी है कि उनका बनाया ट्रस्ट सही तरीके से चले और लोगों की सेवा करे।
एक साल के लिए विधायकों का निलंबन असंवैधानिक
इससे इतर एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसले में कहा है कि सदन के सदस्यों को सत्र से ज्यादा अवधि के लिए निलंबित नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने महाराष्ट्र विधानसभा से 12 भाजपा सदस्यों को एक साल के लिए निलंबित करने के प्रस्ताव को असंवैधानिक, अतार्किक और गैर कानूनी ठहराया है। कोर्ट ने कहा कि सदस्यों का निलंबन जुलाई 2021 के मानसून सत्र तक ही सीमित रहना चाहिए था। एक सत्र से ज्यादा के निलंबन का प्रस्ताव असंवैधानिक और मनमाना है।