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फांसी के मामले में अंतहीन मुकदमेबाजी की इजाजत नहीं दी जा सकती: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि फांसी की सजा में फाइनेलिटी (सजा का अंतिम होना) बेहद जरूरी है। दोषी को यह नहीं समझना चाहिए कि वह इस पर कभी भी सवाल उठा सकता है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Thu, 23 Jan 2020 10:00 PM (IST)Updated: Thu, 23 Jan 2020 10:38 PM (IST)
फांसी के मामले में अंतहीन मुकदमेबाजी की इजाजत नहीं दी जा सकती: सुप्रीम कोर्ट
फांसी के मामले में अंतहीन मुकदमेबाजी की इजाजत नहीं दी जा सकती: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा के मामले में गुरुवार को अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि फांसी की सजा में फाइनेलिटी (सजा का अंतिम होना) बेहद जरूरी है। दोषी को यह नहीं समझना चाहिए कि वह इस पर कभी भी सवाल उठा सकता है। अंतहीन मुकदमेबाजी की इजाजत नहीं दी जा सकती। मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने ये टिप्पणी फांसी की सजा पाए अमरोहा कांड के दोषी शबनम और सलीम की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के दौरान कीं। कोर्ट ने दोनों दोषियों की पुनर्विचार याचिका पर बहस सुनकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

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भले ही कोर्ट ने टिप्पणी अमरोहा कांड के दोषियों को मामले में सुनवाई के दौरान की हो लेकिन दिल्ली दुष्कर्म कांड के दोषियों के मृत्युदंड टालने के लिए अपनाए जा रहे रवैये को देखते हुए टिप्पणी महत्वपूर्ण हो जाती है। दिल्ली दुष्कर्म कांड के मामले में कुल चार दोषी हैं जिन्हें फांसी की सजा सुनाई गई है और निचली अदालत उन्हें फांसी देने के लिए एक फरवरी की तिथि भी तय कर चुकी है लेकिन दोषी मामले में देरी करने के लिए एक एक कर अर्जी दाखिल कर रहे हैं। कुख्यात रंगा- बिल्ला, उजागर-करतार सिंह, मकबूल भट्ट समेत कई मामलों में फांसी को टालने के लिए कोई न कोई तरीका अपनाया जाता रहा है।

उत्तर प्रदेश के अमरोहा के बावन खेड़ी गांव की रहने वाली शबनम ने 2008 में अपने प्रेमी सलीम के साथ मिल कर अपने माता पिता सहित परिवार के सात लोगों की हत्या कर दी थी। मारे गए लोगों में दस महीने का बच्चा भी शामिल था। निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक से शबनम और सलीम को फांसी की सजा सुनवाई जा चुकी है। दोनों ने पुनर्विचार याचिका दाखिल कर फांसी माफ करने की गुहार लगाई है जिस पर कोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई की।

दोषियों के वकील ने गरीबी और जेल में उनके अच्छे आचरण का हवाला देते हुए फांसी की सजा माफ करने की अपील की। वकील मिनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि कोर्ट को शबनम के जेल में व्यवहार को देखते हुए उसमे सुधार होने की गुंजाइश के मद्देनजर मौत की सजा माफ करनी चाहिए। यह भी कहा कि उसका एक बच्चा है। इन दलीलों पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मृत्युदंड की सजा सुनाए जाने के बाद दोषी का जेल का व्यवहार पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के लिए कैसे महत्वपूर्ण हो सकता है। वकील ने कहा कि वह जेल के स्कूल में पढ़ाती है। सामाजिक कार्यक्रम में शामिल होती है। कोर्ट ने कहा कि क्या इससे दस महीने के बच्चे की हत्या का जुर्म खत्म हो गया।

जज अपराधी को माफी नहीं दे सकता वह समाज और पीड़ित को न्याय देता है

कोर्ट ने कहा कि कोर्ट माफी के मुद्दे पर विचार नहीं कर रहा कोर्ट कानून के मुताबिक चलता है और कानून अपराधी के लिए होता है। न्यायाधीश के पास अपराधी को माफ करने का अधिकार नहीं होता। न्यायाधीश पीडि़त और समाज को न्याय देने के लिए है।

मां बाप को मारने वाला अनाथ होने के आधार पर दया की गुहार लगा रहा है

उत्तर प्रदेश सरकार ने दोषियों की याचिका का विरोध किया। सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह तो उसी तरह की बात है कि मां बाप को मारने वाला अनाथ होने की दुहाई देकर दया की भीख मांगे। प्रदेश सरकार ने कहा कि कोर्ट ने हर पहलू पर विचार करने के बाद मौत की सजा दी थी और उसे रद करने का कोई कारण नहीं है।

सरकार ने कहा कि कोर्ट फांसी के बारे में तय करे टाइम लाइन

तुषार मेहता ने गृह मंत्रालय की बुधवार को दाखिल की गई अर्जी का जिक्र करते हुए कोर्ट से कहा कि कोर्ट फांसी के मामले में टाइम लाइन तय करे। कोर्ट समाज और पीडि़त को ध्यान में रखते हुए दिशानिर्देश जारी करे। हालांकि कोर्ट ने कहा कि ये दलीलें वे उस अर्जी पर सुनवाई के दौरान रखें अभी मौजूदा मामले पर बहस करें।


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