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Arya Samaj Marriage Certificate: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- 'आर्य समाज' को विवाह प्रमाण पत्र जारी करने का कोई अधिकार नहीं, जानें पूरा मामला

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि आर्य समाज को विवाह प्रमाण पत्र जारी करने का कोई अधिकार नहीं है। इसके साथ ही सर्वोच्‍च अदालत ने नाबालिग लड़की के अपहरण और दुष्‍कर्म के आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Fri, 03 Jun 2022 06:59 PM (IST)Updated: Sat, 04 Jun 2022 01:26 AM (IST)
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि 'आर्य समाज' को विवाह प्रमाण पत्र जारी करने का कोई अधिकार नहीं है।

नई दिल्‍ली, पीटीआइ। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि आर्य समाज को विवाह प्रमाणपत्र जारी करने का अधिकार नहीं है और इसी के साथ उसने नाबालिग लड़की के अपहरण व दुष्कर्म के एक आरोपित की जमानत याचिका खारिज कर दी। जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की अवकाशकालीन पीठ ने आरोपित के वकील की इस दलील को खारिज कर दिया कि लड़की बालिग है और उन्होंने आर्य समाज मंदिर में शादी की थी व विवाह प्रमाणपत्र रिकार्ड पर है।

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पीठ ने कहा, 'विवाह प्रमाणपत्र जारी करना आर्य समाज का काम नहीं है। यह अधिकारियों का काम है।' शिकायतकर्ता लड़की की ओर से पेश अधिवक्ता ऋषि मतोलिया ने कहा कि पीडि़ता ने सीआरपीसी की धारा-164 के तहत दर्ज कराए गए अपने बयान में आरोपित के खिलाफ दुष्कर्म का स्पष्ट आरोप लगाया है। इसके बाद पीठ ने आरोपित की याचिका खारिज कर दी।

पांच मई, 2022 को राजस्थान हाई कोर्ट ने भी आरोपित की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। उसे नागौर के पादुकलां पुलिस स्टेशन में आइपीसी और पाक्सो एक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज एफआइआर के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था। हाई कोर्ट के समक्ष आरोपित के वकील का कहना था कि एफआइआर डेढ़ साल की देरी से दर्ज कराई गई है और शिकायतकर्ता ने इसका कारण भी नहीं बताया है।

आरोपित के वकील का कहना था कि पीडि़ता बालिग है और आरोपित के साथ आर्य समाज मंदिर में उसकी शादी हो चुकी है। उसका प्रमाणपत्र भी रिकार्ड पर उपलब्ध है। हाई कोर्ट ने भी पीडि़ता के सीआरपीसी की धारा-164 के तहत दर्ज बयान पर संज्ञान लिया था। हाई कोर्ट का कहना था कि पीडि़ता ने अपनी गवाही में कहा था कि आरोपित ने एक कोरे कागज पर उसके हस्ताक्षर लिए थे और घटना का एक वीडियो भी बनाया था।

इससे पहले चार अप्रैल को शीर्ष अदालत ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के एक आदेश पर रोक लगा दी थी जिसने आर्य समाज को विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के प्रविधानों का अनुपालन करने के निर्देश दिया था। शीर्ष अदालत ने यह स्थगनादेश मध्य भारत आर्य प्रतिनिधि सभा की ओर से दाखिल याचिका पर दिया था और मध्य प्रदेश सरकार से जवाब तलब किया था।

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने पिछले साल 17 दिसंबर को एकल पीठ के फैसले को बरकरार रखा था जिसमें संगठन को अपनी 2016 की गाइडलाइंस में संशोधन करके एक महीने के भीतर विशेष विवाह अधिनियम के प्रविधानों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए कहा गया था। हाई कोर्ट का कहना था कि विशेष विवाह अधिनियम के तहत सिर्फ सक्षम प्राधिकारी ही विवाह प्रमाणपत्र जारी कर सकता है। सभा का कहना था कि जहां तक आर्य समाज में विवाह का सवाल है तो ये हिंदू विवाह अधिनियम और आर्य विवाह अधिनियम, 1937 के तहत होते हैं, न कि विशेष विवाह अधिनियम के तहत।


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