Move to Jagran APP

सुबूत की जगह नहीं ले सकता संदेह, सनसनीखेज डेथ मिस्‍ट्री में सुप्रीम कोर्ट बड़ा फैसला, जानें कैसे हुआ था वाकया

सुप्रीम कोर्ट ने सनसनीखेज डेथ मिस्‍ट्री के मामले में कहा है कि संदेह कभी सुबूत की जगह नहीं ले सकता चाहे वह कितना ही मजबूत क्यों न हो। दोषी साबित होने तक किसी भी आरोपित को निर्दोष माना जाना चाहिए। जानें कैसे हुई थी यह घटना...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sun, 21 Feb 2021 08:29 PM (IST)Updated: Mon, 22 Feb 2021 01:09 AM (IST)
सुबूत की जगह नहीं ले सकता संदेह, सनसनीखेज डेथ मिस्‍ट्री में सुप्रीम कोर्ट बड़ा फैसला, जानें कैसे हुआ था वाकया
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि संदेह कभी सुबूत की जगह नहीं ले सकता है।

नई दिल्ली, पीटीआइ। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि संदेह कभी सुबूत की जगह नहीं ले सकता, चाहे यह कितना ही मजबूत क्यों न हो। अदालत ने जोर देकर कहा कि यथोचित संदेह से परे दोषी साबित होने तक किसी भी आरोपित को निर्दोष माना जाता है। न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और हेमंत गुप्ता की पीठ ने उड़ीसा उच्च न्यायालय के एक फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि किसी भी आरोपित के खिलाफ सुबूतों की कड़ी इतनी पूर्ण होनी चाहिए कि उसके खिलाफ आरोप को साबित किया जा सके।

loksabha election banner

उड़ीसा उच्च न्यायालय ने बिजली का करंट देकर एक होमगार्ड की हत्या करने के दो आरोपितों को सुबूतों के अभाव में बरी कर दिया था। पीठ ने कहा, यह इस न्यायालय की न्यायिक घोषणा द्वारा अच्छी तरह स्थापित है कि संदेह, चाहे यह मजबूत ही क्यों न हो, सुबूत की जगह नहीं ले सकता।

गीतांजलि टाडू ने पुलिस से अपनी शिकायत में कहा था कि उनके पति बिजय कुमार टाडू चंदाबली थाने में तैनात थे। उनको बानाबिहारी महापात्र, उसके बेटे लूजा तथा अन्य ने कुछ जहरीला पदार्थ खिलाकर और फिर बिजली का करंट देकर मार डाला। शीर्ष अदालत ने कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चलता है कि मौत बिजली के करंट से हुई लेकिन इस बारे में कोई निष्कर्षात्मक सबूत नहीं है कि यह हत्या का मामला है।

पीठ ने कहा, महज इस तथ्य से कि मृतक आरोपित के कमरे में पड़ा था और प्रतिवादियों ने शिकायतकर्ता को सूचना दी कि उसका पति निष्क्रिय अवस्था में था तथा उसने आवाज लगाने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, यह साबित नहीं हो जाता कि प्रतिवादियों ने उनकी हत्या की थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपितों का दोष साबित करने में विफल रहा और अदालत ने आरोपितों को बरी कर सही फैसला किया।

अदालत ने कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य ऐसे होने चाहिए, जिन्हें साबित किया जा सके। सुबूतों की कड़ी ऐसी होनी चाहिए, जिनमें संदेह की कोई गुंजाइश न हो। पीठ ने कहा कि इस बात की काफी संभावना है कि आरोपितों ने शिकायतकर्ता के पति को शराब पिलाई हो, जैसा कि पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर का मानना है और सोते समय वह दुर्घटनावश बिजली के तार के संपर्क में आ गया हो।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.