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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, महंगे इलाज के कारण कोरोना का कोई मरीज अस्पताल से नहीं लौटना चाहिए

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह विचार करे कि निजी अस्पतालों में खर्च रेगुलेट करने के लिए क्या किया जा सकता है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Tue, 14 Jul 2020 11:05 PM (IST)Updated: Tue, 14 Jul 2020 11:05 PM (IST)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, महंगे इलाज के कारण कोरोना का कोई मरीज अस्पताल से नहीं लौटना चाहिए
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, महंगे इलाज के कारण कोरोना का कोई मरीज अस्पताल से नहीं लौटना चाहिए

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सुप्रीम कोर्ट ने निजी अस्पतालों में कोरोना के इलाज का खर्च नियंत्रित किए जाने के मामले में मंगलवार को कहा कि इलाज का खर्च हर राज्य में भिन्न हो सकता है इसलिए कोर्ट इलाज का खर्च रेगुलेट नहीं कर सकता। हालांकि कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह विचार करे कि निजी अस्पतालों में खर्च रेगुलेट करने के लिए क्या किया जा सकता है। कोर्ट ने केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से इस बारे में सभी संबंधित पक्षों और याचिकाकर्ता के साथ बैठक कर गाइड लाइन या आदेश जारी करने की संभावनाओं पर विचार करने को भी कहा है। 

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निजी अस्पतालों में कोरोना इलाज का खर्च नियंत्रित करने का सुझाव

कोर्ट ने कहा कि कोरोना की मौजूदा स्थिति में इलाज महंगा नहीं होना चाहिए। किसी के अस्पातल पहुंचने में इलाज का खर्च बाधा नहीं बनना चाहिए। महंगे इलाज के कारण कोई अस्पताल से नहीं लौटना चाहिए।ये टिप्पणियां और निर्देश चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने निजी अस्पतालों में कोरोना इलाज के खर्च को रेगुलेट किए जाने की मांग वाली सचिन जैन की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिए।

कोर्ट ने सरकार से कहा कि वह सभी संबंधित पक्षों के साथ एक सप्ताह में बैठक करके इलाज खर्च नियंत्रित किये जाने की संभावनाएं तलाशे। बैठक में जो भी निर्णय हो उसे कोर्ट के सामने मंजूरी के लिए पेश किया जाए ताकि इस बारे में कोई आदेश जारी किया जा सके। 

केंद्र सरकार को गाइड लाइन की संभावना पर विचार करने को कहा

इससे पूर्व मामले पर बहस के दौरान निजी अस्पतालों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि अस्पतालों में इलाज खर्च के बारे में राज्यों के अपने अलग-अलग मॉडल हैं। उन्होंने कहा कि पूरे देश के लिए इलाज की एक समान सीमा नहीं तय की जा सकती। इस पर कोर्ट ने कहा कि पूरे देश के लिए समान आदेश देना मुश्किल होगा क्योंकि हर राज्य की स्थिति अलग है। उनके सामने गुजरात का मॉडल है जिसे काफी अच्छा माना गया है। हालांकि उसकी भी आलोचना हुई है और उसे महाराष्ट्र के लिए उपयुक्त नहीं माना जा रहा। कोर्ट ने कहा कि हम ऐसा नहीं सोचते कि केंद्र सरकार इलाज की कीमतें नियंत्रित करे लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि केंद्र सरकार कुछ भी न करे। 

एनडीएमए एक्ट के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करे केंद्र 

अगर गुजरात सरकार का मॉडल उपयुक्त है तो फिर इसका कोई कारण नहीं कि केन्द्र एनडीएमए एक्ट के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल न करे। तर्कसंगत खर्च जगह के मुताबिक अलग अलग हो सकता है। हम ऐसा नहीं कह रहे कि आपकी मंशा या जो आपने मांग रखी है वह गलत है। हम आपकी चिंता से सहमत हैं। केंद्र सरकार की ओर पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस मुद्दे पर विचार करने के लिए पहले ही उच्चस्तरीय समिति गठित की जा चुकी है। सरकार खुद इस बारे में चिंतित है और उपाय कर रही है।

गत पांच जून को पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार ने इस मामले में हलफनामा दाखिल कर कहा था कि उसके पास निजी और चैरिटेबल अस्पतालों को मुफ्त में कोरोना का इलाज करने का आदेश देने का विधिक अधिकार नहीं है। याचिकाकर्ता वकील सचिन जैन ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में मांग की है कि निजी और चैरिटेबल अस्पतालों में कोरोना का इलाज मुफ्त किया जाए या इलाज खर्च रेगुलेट किया जाए। याचिका में कहा गया है कि निजी अस्पताल मनमानी रकम वसूल रहे हैं। 


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