ट्रिपल तलाक और निजता के अधिकार पर इसी हफ्ते आएगा फैसला
सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक की वैधानिकता पर 6 दिन सुनवाई चली, 18 मई को फैसला सुरक्षित हुआ। निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है कि नहीं ये मुद्दा 'आधार' योजना को चुनौती देने पर उठा।
नई दिल्ली, माला दीक्षित। सुप्रीम कोर्ट इसी हफ्ते दो अहम फैसले सुनाएगा। कोर्ट तय करेगा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है कि नहीं। इसके अलावा मुस्लिमों में प्रचलित एक बार में तीन तलाक की वैधानिकता पर भी फैसला आएगा। इन दोनों मुद्दों पर नौ और पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठों ने सुनवाई करके अपना फैसला सुरक्षित रखा हुआ है। दोनों पीठों की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर ने की थी। जस्टिस खेहर 27 अगस्त को सेवानिवृत हो रहे हैं, ऐसे में दोनों फैसले 27 अगस्त के पहले आने की उम्मीद है।
नियम के मुताबिक, जो पीठ सुनवाई करती है वही फैसला देती है। इसीलिए प्रत्येक न्यायाधीश सेवानिवृति से पहले उन सभी मामलों में फैसला दे देता है, जिनकी उसने सुनवाई की होती है। अगर सुनवाई करने वाली पीठ का कोई भी न्यायाधीश फैसला देने से पहले सेवानिवृत हो गया तो उस मामले में दोबारा नये सिरे से सुनवाई होगी और तब फैसला दिया जाएगा। ऐसे में माना जा रहा है कि जस्टिस खेहर की सेवानिवृति से पहले दोनों मामलों में फैसला आएगा।
निजता का अधिकार
निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है कि नहीं ये मुद्दा 'आधार' योजना को चुनौती देने के मामले में उठा। याचिकाकर्ताओं की दलील है कि आधार के लिए बायोमैट्रिक डाटा और सूचनाएं एकत्र करने से उनके निजता के अधिकार का हनन होता है। चूंकि छह और आठ जजों की पीठ दो पूर्व फैसलों में कह चुकी है कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है, इसलिए इस बार मामले पर नौ न्यायाधीशों की पीठ ने सुनवाई की। गत 2 अगस्त को बहस पूरी होकर फैसला सुरक्षित हुआ।
बहस के दौरान सरकार ने निजता को मौलिक अधिकार घोषित करने का विरोध किया। कहा कि ये सन्निहित अधिकार है लेकिन ये कामन ला में आता है। निजता हर मामले की परिस्थितियों पर तय होती है, जबकि याचिकाकर्ताओं का कहना था कि निजता सम्मान से जीवन जीने के मौलिक अधिकार का ही एक हिस्सा है। मुख्य अधिकार मौलिक अधिकार है तो उसका हिस्सा भी मौलिक अधिकार ही माना जाएगा। निजता को स्वतंत्रता और जीवन के अधिकार से अलग करके नहीं देखा जा सकता।
एक बार में तीन तलाक
सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक की वैधानिकता पर छह दिन सुनवाई चली। गत 18 मई को फैसला सुरक्षित हुआ। शुरुआत में कोर्ट ने स्वयं संज्ञान लिया, लेकिन बाद में तीन तलाक पीडि़त महिलाओं ने भी याचिकाएं डालीं और इसे असंवैधानिक घोषित करने की मांग की।
याचिकाकर्ताओं की दलील
1- ये महिलाओं के साथ भेदभाव है।
2- महिलाओं को तलाक लेने के लिए कोर्ट जाना पड़ता है, जबकि पुरुषों को मनमाना हक है।
3- कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है।
4- ये गैर कानूनी और असंवैधानिक है।
मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड और जमीतय की दलील
1- ये अवांछित है, लेकिन वैध
2- ये पर्सनल ला का हिस्सा है कोर्ट दखल नहीं दे सकता
3- 1400 साल से चल रही प्रथा है ये आस्था का विषय है संवैधानिक नैतिकता और बराबरी का सिद्धांत इस पर लागू नहीं होगा
4- पर्सनल ला को मौलिक अधिकारों की कसौटी पर नहीं परखा जा सकता
सरकार की दलील
1- ये महिलाओं को संविधान मे मिले बराबरी और गरिमा से जीवनजीने के हक का हनन है
2- ये धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है इसलिए इसे धार्मिक आजादी के तहत संरक्षण नहीं मिल सकता
3- पाकिस्तान सहित 22 मुस्लिम देश इसे खत्म कर चुके हैं
4- धार्मिक आजादी का अधिकार बराबरी और सम्मान से जीवन जीने के अधिकार के आधीन है
5- अगर कोर्ट ने हर तरह का तलाक खत्म कर दिया तो सरकार नया कानून लाएगी।