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पूरी हुई आधार की लंबी सुनवाई फैसला सुरक्षित

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने आधार पर सुनवाई खत्म होने के बाद कोर्ट को धैर्यपूर्ण सुनवाई के लिए धन्यवाद दिया।

By Manish NegiEdited By: Published: Thu, 10 May 2018 06:18 PM (IST)Updated: Thu, 10 May 2018 09:48 PM (IST)
पूरी हुई आधार की लंबी सुनवाई फैसला सुरक्षित

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आधार कानून की वैधानिकता पर सुनवाई पूरी करके गुरुवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस मामले में साढ़े चार महीने सुनवाई की। अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने लंबी और धैर्यपूर्ण सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि सबसे लंबा चलने वाला ये दूसरा मामला है जिसमें उन्होंने बहस की। पहला मामला केशवानंद भारती का था जिसमें पांच महीने तक कोर्ट मे सुनवाई चली थी और इस आधार मामले की सुनवाई साढ़े चार महीने चली।

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सेवानिवृत जज पुत्तासामी और कई अन्य लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर आधार कानून की वैधानिकता को चुनौती दी है। याचिकाओं में विशेषतौर पर आधार के लिए एकत्र किये जाने वाले बायोमेट्रिक डाटा से निजता के अधिकार का हनन होने की दलील दी गई है। आधार की सुनवाई के दौरान ही कोर्ट मे निजता के अधिकार के मौलिक अधिकार होने का मुद्दा उठा था जिसके बाद कोर्ट ने आधार की सुनवाई बीच में रोक कर निजता के मौलिक अधिकार पर संविधान पीठ ने सुनवाई की और निजता को मौलिक अधिकार घोषित किया। इसके बाद पांच न्यायाधीशों ने आधार की वैधानिकता पर सुनवाई शुरु की थी। कुल साढ़े चार महीने में 38 दिनों तक आधार पर सुनवाई हुई। बात ये है कि नियमित सुनवाई सिर्फ मंगलवार, बुधवार और गुरुवार को ही होती है सोमवार और शुक्रवार नये मामलों की सुनवाई के दिन तय हैं इसलिए उन दिनों नियमित सुनवाई कर रही पीठ नहीं बैठती।

आधार की वैधानिकता को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील श्याम दीवान, अरविन्द दत्तार, गोपाल सुब्रमण्यम, पी. चिदंबरम, केवी विश्वनाथन, सहित आधा दर्जन से ज्यादा लोगों ने बहस की और आधार को निजता के अधिकार का हनन बताया। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि एकत्र किये जा रहे डाटा की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं।

इसके अलावा बायोमेट्रिक पहचान एकत्र करके किसी भी व्यक्ति को वास्तविकता से 12 अंकों की संख्या में तब्दील किया जा रहा है। याचिकाकर्ताओं ने आधार कानून को मौलिक अधिकारों का हनन बताते हुए इसे रद करने की मांग की है। ये भी आरोप लगाया है कि सरकार ने हर सुविधा और सर्विस से आधार को जोड़ दिया है जिसके कारण गरीब लोग आधार का डाटा मिलान न होने के कारण सुविधाओं का लाभ लेने से वंचित हो रहे हैं। उन्होंने ये भी कहा कि सरकार ने आधार बिल को मनी बिल के तौर पर पेश कर जल्दबाजी में पास करा लिया है।

आधार को मनी बिल नहीं कहा जा सकता। अगर इस तरह किसी भी बिल को मनी बिल माना जाएगा तो फिर सरकार को जो भी बिल असुविधाजनक लगेगा उसे मनी बिल के रूप में पास करा लेगी। पी. चिदंबरम ने कहा कि मनी बिल के आढ़ में इस कानून के पास होने में राज्यसभा के बिल में संशोधन के सुझाव के अधिकार और राष्ट्रपति के बिल विचार के लिए दोबारा वापस भेजे जाने का अधिकार नजरअंदाज हुआ है। उधर दूसरी ओर केन्द्र सरकार, यूएआईडी, गुजरात और महाराष्ट्र सरकार सहित कई संस्थाओं ने सुप्रीम कोर्ट में आधार कानून को सही ठहराते हुए याचिकाओं को खारिज करने की अपील की। सरकार की ओर से मुख्य बहस अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने की।

वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार आधार कानून को इसलिए लाई है ताकि सुविधाओं का लाभ वास्तविक जरूरतमंद तक पहुंचे। बीच में उसका लीकेज न हो। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पीपीटी प्रेजेन्टेशन के जरिये ये भी साबित करने की कोशिश की कि लोगों का एकत्र किया गया डेटा सरकार के पास चाक चौबंद व्यवस्था में सुरक्षित है और उसके लीक होने की कोई गंुजाइश नहीं है। ये भी कहा कि डेटा लीक होने के बारे में कानून बनाने और डेटा को सुरक्षित रखने के उपाय पर विचार हो रहा है सरकार ने इसके लिए एक विशेषज्ञ कमेटी बनाई है। 
 


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