अवमानना पर जल्द सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इन्कार
सुप्रीम कोर्ट में मंदिर के मुख्य पुजारी व अन्य के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरु करने की मांग की गई है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का विरोध और मंदिर के शुद्धीकरण का मसला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट में मंदिर के मुख्य पुजारी व अन्य के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरु करने की मांग की गई है। गुरुवार को कोर्ट से याचिका पर शीघ्र सुनवाई की मांग हुई लेकिन कोर्ट ने जल्द सुनवाई से इन्कार कर दिया।
वकील ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की पीठ के समक्ष याचिका का जिक्र करते हुए शीघ्र सुनवाई की गुहार लगाई। कोर्ट ने कहा कि सबरीमाला मामला पहले से ही 22 जनवरी को सुनवाई पर लगा हुआ है। वकील ने कहा कि यह मामला उससे भिन्न है। यह अवमानना का मामला है। वकील ने बुधवार को दो महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश के बाद मुख्य पुजारी द्वारा मंदिर बंद करके उसका शुद्धीकरण कराए जाने की घटना का जिक्र किया। लेकिन पीठ शीघ्र सुनवाई के लिए राजी नहीं हुई। कोर्ट ने कहा कि वह बार बार इस मामले पर सुनवाई पीठ का गठन नहीं कर सकते।
सुप्रीम कोर्ट ने गत 28 सितंबर को सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को गलत ठहराते हुए कहा था कि हर आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश का अधिकार है। इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में करीब दो दर्जन पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल हुई जिसमें कोर्ट से फैसले पर फिर विचार करने की मांग की गई है। कोर्ट ने इन पुनर्विचार याचिकाओं पर 22 जनवरी को खुली अदालत में सुनवाई की तिथि तय कर रखी है।
हालांकि कोर्ट ने फैसले पर अंतरिम रोक नहीं लगाई थी जिसके चलते फिलहाल हर आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश का अधिकार है। फैसले के बाद से केरल में लगातार मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर प्रदर्शन और विरोध हो रहा है। इस क्रम में पुजारी ने मंदिर बंद भी कर दिया था। बुधवार को 50 वर्ष से कम आयु की दो महिलाओं ने सुबह तड़के मंदिर में प्रवेश कर पूजा अर्चना की। इसकी सूचना सार्वजनिक होने के बाद केरल में विरोध प्रदर्शन बढ़ गए। मुख्य पुजारी ने मंदिर बंद करके मंदिर का शुद्धीकरण किया।
मूल अवमानना याचिका नवंबर में ही सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुई थी लेकिन नियम के मुताबिक उसमें अटार्नी जनरल से इजाजत लेनी थी। अटार्नी ने जब मामले से स्वयं को अलग कर लिया तो इजाजत के लिए मामला सालिसिटर जनरल तुषार मेहता के पास पहुंचा। मेहता ने भी याचिका को मंजूर करने से मना कर दिया। इसके बाद संविधान के अनुच्छेद 129 के तहत यह अवमानना याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुई है।