कर्नाटक के अध्यादेश पर सुप्रीम कोर्ट ने उठाया सवाल
कोर्ट ने जानवरों पर क्रूरता न होना सुनिश्चित करने का निर्देश देते हुए मामले की सुनवाई सोमवार तक टाल दी।
नई दिल्ली, माला दीक्षित। बैलों की दौड़ के खेल कंबला को इजाजत देने के लिए लाए गए कर्नाटक सरकार के अध्यादेश पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक सवाल उठाए। कोर्ट ने पूछा कि जब राष्ट्रपति ने राज्य सरकार के विधेयक को बिना मंजूरी दिये वापस कर दिया था तो फिर राज्य सरकार ठीक वैसा ही अध्यादेश कैसे ला सकती है। आखिर ऐसे में संवैधानिक स्थिति क्या होगी। कोर्ट ने जानवरों पर क्रूरता न होना सुनिश्चित करने का निर्देश देते हुए मामले की सुनवाई सोमवार तक टाल दी।
बात ये है कि जानवरों से क्रूरता की मनाही वाले केन्द्रीय कानून के तहत सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व में ही बैलों की दौड़ के खेल पर रोक लगा दी थी। कर्नाटक सरकार ने इसे इजाजत देने के लिए पहले विधानसभा से विधेयक पास किया लेकिन मामला केन्द्रीय कानून से जुड़ा था इसलिए उस विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा गया। राष्ट्रपति ने विधेयक को मंजूरी दिये बगैर वापस कर दिया था। बाद में सरकार ने विधेयक वापस ले लिया लेकिन राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी लेकर ठीक वैसा ही अध्यादेश ले आयी। पिपुल फार एथिकल ट्रीटमेंट (पेटा) संस्था ने कर्नाटक के विधेयक को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की पीठ में सुनवाई हुई। कोर्ट ने कर्नाटक के वकील से सवाल किया कि जब राष्ट्रपति उनके विधेयक को बिना मंजूरी दिये वापस भेज चुके है तो राज्य सरकार वैसा ही अध्यादेश कैसे ला सकती है। इस पर कर्नाटक के वकील देवदत्त कामत ने कहा कि संविधान में विधेयक लाने और अध्यादेश लाने की प्रक्रिया अलग अलग है। सरकार ने अध्यादेश के लिए राष्ट्रपति से 3 जुलाई को पूर्व मंजूरी ले ली थी। सरकार को संविधान में ऐसा अध्यादेश लाने का अधिकार है। पर पीठ इस तर्क से संतुष्ट नहीं दिखी। पर इसके समर्थक की ओर से संस्कृति का हवाला दिया गया। उनकी ओर से कहा गया कि बैलों के साथ क्रूरता न हो इसके लिए कड़े नियम बनाए गये हैं।
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