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उम्र कैद की सजा काट रहे 23 कैदियों के अपराध के वक्त किशोर होने के दावे की जांच का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने आगरा सेंट्रल जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे 23 कैदियों के अपराध के वक्त किशोर होने के दावे की जांच करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने संबंधित सत्र अदालतों को दावे की जांच एक महीने में करने का निर्देश दिया।

By TaniskEdited By: Published: Sat, 23 Oct 2021 06:40 PM (IST)Updated: Sat, 23 Oct 2021 06:40 PM (IST)
उम्र कैद की सजा काट रहे 23 कैदियों के अपराध के वक्त किशोर होने के दावे की जांच का आदेश
23 उम्र कैदियों के अपराध के समय किशोर होने की जांच का आदेश।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आगरा सेंट्रल जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे 23 कैदियों के अपराध के वक्त किशोर होने के दावे की जांच करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान टिप्पणी में कहा कि यह तय हो चुका है कि कैदी अपराध के वक्त किशोर होने का दावा कभी भी कर सकता है। यहां तक कि सजा होने के बाद भी ऐसा दावा किया जा सकता है। न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और जेके महेश्वरी की पीठ ने इसके साथ ही कैदियों के किशोर होने के दावे की जांच करने की मांग वाली याचिका निपटा दी।

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अपराध के वक्त किशोर होने का दावा करने वाले ये 23 कैदी आगरा सेंट्रल जेल में बंद हैं और छह वर्ष से लेकर 26 वर्ष तक की सजा काट चुके हैं। कैदियों ने वकील ऋषि मल्होत्रा के जरिये सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर अपराध के वक्त किशोर होने का दावा करते हुए उनके द्वारा उम्र के बारे में दिए गए दस्तावेज की जांच कराने की मांग की थी। ऋषि मल्होत्रा ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि अपराध के वक्त किशोर होने का दावा कभी भी किया जा सकता है। हालांकि प्रदेश सरकार की ओर से पेश वकील का कहना था कि याचिकाकर्ता कैदियों ने मामले की सुनवाई के दौरान कभी भी किशोर होने का दावा नहीं किया था। कोर्ट ने कहा कि किशोर होने का दावा करने में देरी याचिका खारिज करने का आधार नहीं हो सकती। यह तय हो चुका है कि किशोर होने का दावा कभी भी किया जा सकता है। इस कोर्ट में भी ऐसा दावा किया जा सकता है।

पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वे अपराध के वक्त 18 वर्ष से कम आयु के थे। किशोर न्याय अधिनियम में अधिकतम तीन वर्ष की सजा का प्रविधान है और वह भी स्पेशल होम में। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने अपनी आयु से संबंधित दस्तावेज दिए हैं, जिनके आधार पर वे अपराध के वक्त किशोर होने का दावा कर रहे हैं। कोर्ट ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं के दावे की जांच संबंधित सत्र अदालत जहां उनका मुकदमा चला था, एक महीने में करे और अपराध के समय किशोर पाए जाने पर उन्हें तत्काल रिहा किया जाए।


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