छुट्टियों के बाद सुप्रीम कोर्ट खुला अब फैसलों का इंतजार
जल्दी ही कोर्ट सरकार की महत्वाकांक्षी योजना आधार की वैधानिकता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और दिल्ली के उपराज्यपाल के बीच चल रही अधिकारों की जंग मुकदमें में तय करेगा कि दिल्ली का बॉस कौन है।
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। करीब डेढ़ महीने की गर्मी की छुट्टियों के बाद सोमवार को सुप्रीम कोर्ट सामान्य तौर पर खुल रहा है। अब सबकी निगाहें बहुप्रतीक्षित दो फैसलों पर हैं। जल्दी ही कोर्ट सरकार की महत्वाकांक्षी योजना आधार की वैधानिकता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और दिल्ली के उपराज्यपाल के बीच चल रही अधिकारों की जंग मुकदमें में तय करेगा कि दिल्ली का बॉस कौन है। कोर्ट ने छुट्टियों के पहले दोनों मामलों पर सुनवाई पूरी कर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
दोनों ही मामलों की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधानपीठ ने की है। कोर्ट ने आधार कानून की वैधानिकता पर गत 10 मई को सुनवाई पूरी करके फैसला सुरक्षित रखा था। सेवानिवृत जज पुत्तासामी और कई अन्य लोगों ने आधार कानून की वैधानिकता को चुनौती देते हुए एकत्र किये जाने वाले बायोमेट्रिक डाटा से निजता के अधिकार का हनन होने की दलील दी है।
आधार की सुनवाई के दौरान ही कोर्ट मे निजता के अधिकार के मौलिक अधिकार होने का मुद्दा उठा था जिसके बाद कोर्ट ने आधार की सुनवाई बीच में रोक कर निजता के मौलिक अधिकार पर नौै जजों की संविधान पीठ ने सुनवाई की और निजता को मौलिक अधिकार घोषित किया। इसके बाद पांच न्यायाधीशों ने आधार की वैधानिकता पर सुनवाई शुरु की थी।
आधार को चुनौती देने वालों का कहना था कि एकत्र किये जा रहे डाटा की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। जबकि दूसरी ओर केन्द्र सरकार, यूएआईडी, गुजरात और महाराष्ट्र सरकार सहित कई संस्थाओं ने आधार कानून को सही ठहराते हुए याचिकाओं को खारिज करने की अपील की है। सरकार ने पीपीटी प्रेजेन्टेशन के जरिये ये भी साबित करने की कोशिश की थी कि एकत्र किया गया डेटा सुरक्षित है। डेटा सुरक्षित रखने के कानून पर विचार के लिए विशेषज्ञ कमेटी बनाए जाने की भी बात कही गई थी।
गत छह दिसंबर को कोर्ट ने दिल्ली और केन्द्र के बीच चल रही अधिकारों की लड़ाई पर बहस सुनकर फैसला सुरक्षित रखा था। दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने उप राज्यपाल को दिल्ली का प्रशासनिक मुखिया घोषित करने के हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। जिसमें दिल्ली की चुनी हुई सरकार और उप राज्यपाल के अधिकार स्पष्ट करने का आग्रह किया गया है।
दिल्ली सरकार का आरोप था कि उप राज्यपाल चुनी हुई सरकार को कोई काम नहीं करने देते और हर एक फाइल व सरकार का प्रत्येक निर्णय रोक लेते हैं। जबकि दूसरी ओर केन्द्र की दलील थी कि भले ही दिल्ली में चुनी हुई सरकार हो लेकिन दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है। दिल्ली विशेष अधिकारों के साथ केन्द्र शासित प्रदेश है उसके बारे में फैसले लेने और कार्यकारी आदेश जारी करने का अधिकार केन्द्र को है।