पहले आक्रांताओ ने लूटा, अब इसे नागरिक और अधिकारी उजाड़ रहे हैं
दिल्ली की स्थिति पर ये टिप्पणियां न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर व न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने रिहायशी परिसर के दुरुपयोग पर सील की गई संपत्तियों को दोबारा खोले जाने की कुछ याचिकाओं पर दिये गए फैसले में शुक्रवार को कीं।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने भाई भतीजावाद और अधिकारियों की मिलीभगत से दिल्ली में करीब दो दशक से रिहायशी संपत्तियों के बढ़ रहे दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए तीखी टिप्पणियां की है। कोर्ट ने कहा कि दिल्ली को सैकड़ो वर्षो तक आक्रांताओं ने लूटा, लेकिन पिछले कुछ दशकों से इसे चलाने वाले अधिकारी और अपने ही नागरिक उजाड़ रहे हैं। स्थिति पर निराशा जताते हुए यहां तक कहा कि कोर्ट ने शहर की रिहायश को ठीकठाक रखने के लिए समय समय पर आदेश भी दिये लेकिन उसका ना के बराबर असर हुआ। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में सीलिंग और अवैध निर्माण पर रोक लगाने वाले दिल्ली के विशेष अधिनियम 2006 की वैधानिकता का चार साल से हाईकोर्ट में लंबित मामला अपने यहां वापस मंगा लिया है और 12 जनवरी को उस पर सुनवाई की तिथि भी तय कर दी है।
दिल्ली की स्थिति पर ये टिप्पणियां न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर व न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने रिहायशी परिसर के दुरुपयोग पर सील की गई संपत्तियों को दोबारा खोले जाने की कुछ याचिकाओं पर दिये गए फैसले में शुक्रवार को कीं। कोर्ट ने सीलिंग के दौरान गठित की गई केजे राव की अध्यक्षता वाली निगरानी समिति को संपत्ति की डीसीलिंग से संबंधित अर्जियों पर विचार करने का हक दिया है। कोर्ट ने कहा है कि अगर मानीटरिंग कमेटी संतुष्टि होती है तो जिम्मेदार अथारिटी उस संपत्ति को डीसील करेगी। निगरानी समिति के समक्ष डीसीलिंग की अर्जी डालने के साथ एक लाख रुपये भी जमा कराने होंगे। जो लोग पहले से ही सीलिंग के खिलाफ अपीलीय अथारिटी के समक्ष अर्जी दाखिल कर चुके हैं वे वहां से अपनी अर्जी वापस लेकर निगरानी समिति के समक्ष दाखिल कर सकते हैं।
निगरानी समिति के समक्ष डीसीलिंग की अर्जी वही लोग दाखिल कर सकते हैं जिनकी संपत्तियां निगरानी समिति के आदेश पर सील हुई हैं। कोर्ट ने साफ किया है कि निगरानी समिति के आदेश के खिलाफ अपील सिर्फ सुप्रीम कोर्ट में की जा सकेगी। कोर्ट ने कहा है कि डीसीलिंग की अर्जी दाखिल करने का मौका भी उन्हीं लोगों के पास होगा जिनकी रिहायशी संपत्तियां व्यवसायिक इस्तेमाल के कारण सील हुई हैं। औद्योगिक इस्तेमाल के कारण सील हुई संपत्तियों को डीसीलिंग की अर्जी देने का अधिकार नहीं होगा।
कोर्ट ने फैसले में वर्ष 2004 से लेकर अब तक दिल्ली में रिहायशी संपत्तियों का दुरुपयोग कर व्यवसायिक इस्तेमाल किये जाने के खिलाफ चली मुहिम और इसे रोकने के लिए 2006 में केन्द्र सरकार द्वारा लाए गए दिल्ली (विशेष प्रावधान) कानून 2006 का इतिहास दर्ज किया है। इस कानून को दिल्ली के पूर्व उप राज्यपाल पीके दवे और पूर्व मुख्य सचिव ओमेश सहगल सहित काफी लोगों ने चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने 30 अप्रैल 2013 को कानून की वैधानिकता को चुनौती देने वाली सारी याचिकाएं निपटारे के लिए हाईकोर्ट भेज दीं थीं। कोर्ट ने अपने आदेश में दर्ज किया है कि यह मामला जल्दी निपटारे विशेषतौर पर एक वर्ष के भीतर निपटारे के लिए हाईकोर्ट भेजा गया था लेकिन चार साल बाद भी फैसला नहीं हुआ। कोर्ट ने कहा कि निगरानी कमेटी की रिपोर्ट में बताई गई स्थिति को देखते हुए लगता है कि याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट को ही सुनवाई करनी चाहिए। पीठ ने हाईकोर्ट से याचिकाएं वापस मंगा ली हैं।
वेबबसाइट पर डालें रिपोर्ट
कोर्ट ने निगरानी समिति के काम की सराहना करते हुए उससे कहा है कि वो एक वेबसाइट बनाए और सारी रिपोर्टे उस वेबसाइट पर डाले ताकि दिल्ली के नागरिकों को वो उपलब्ध हों।
एसडीएमसी से मांगा हलफनामा
सुप्रीम कोर्ट ने अवैध निर्माण पर की गई कार्रवाई के बारे में दक्षिणी दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन (एसडीएमसी) से हलफनामा मांगा है। कोर्ट ने सख्त लहजे मे पूछा कि वह अवैध निर्माण रोकना चाहती है कि नहीं। एसडीएमसी को 15 फरवरी तक हलफनामा देना है।