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सुप्रीम कोर्ट को फैसले की गलत प्रति दिखाकर राहत की कोशिश, नाराज अदालत ने पूछा- कैद से छूट का आदेश क्यों न ले लिया जाए वापस

सुप्रीम कोर्ट ने एक अभियुक्त को अनुकूल आदेश पाने के लिए निचली अदालत के फैसले की गलत प्रति पेश करने और ऐसा कर उसे गुमराह करने को लेकर कारण बताओ नोटिस जारी किया है। शीर्ष अदालत ने उसे छोड़ देने की अनुमति दी थी।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sat, 26 Dec 2020 07:26 PM (IST)Updated: Sat, 26 Dec 2020 07:34 PM (IST)
सुप्रीम कोर्ट ने एक अभियुक्त को अनुकूल आदेश पाने के लिए गुमराह करने पर कारण बताओ नोटिस जारी किया है।

नई दिल्ली, पीटीआइ। सुप्रीम कोर्ट ने एक अभियुक्त को अनुकूल आदेश पाने के लिए निचली अदालत के फैसले की गलत प्रति पेश करने और ऐसा कर उसे गुमराह करने को लेकर कारण बताओ नोटिस जारी किया है। शीर्ष अदालत ने रिश्वत के मामले में बस जुर्माना भरने पर उसे छोड़ देने की अनुमति दी थी। अदालत ने अभियुक्त एस शंकर को नोटिस जारी करते हुए उससे पूछा कि कैद से छूट संबंधी आदेश को वह क्यों न वापस ले ले और अदालत को गुमराह करने पर उपयुक्त कार्रवाई करे।

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सुप्रीम कोर्ट ने 23 जुलाई, 2019 को शंकर को 1000 रुपये का जुर्माना भरने पर रिश्वत के मामले में छोड़ दिया था। उसके वकील ने कहा था कि आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने 2000 में निचली अदालत द्वारा दिए गए फैसले के क्रियान्वयन योग्य हिस्से का गलत अभिप्राय निकाला था। यह दलील दी गई थी कि निचली अदालत ने आपराधिक विश्वासघात एवं साजिश तथा भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के अन्य आरोपों में शंकर को एक साल की कैद की सजा नहीं सुनाई थी।

यही नहीं उस पर सिर्फ 1000 रुपये का जुर्माना ही लगाया था। शीर्ष अदालत ने अभियुक्त को राहत देते हुए अपने आदेश में कहा था, चूंकि हम पाते हैं कि निचली अदालत ने अपील करने वाले पर सिर्फ 1,000 रुपये का जुर्माना ही लगाया था, इसलिए उच्च न्यायालय के फैसले के उसके हिसाब से स्पष्ट किया गया। इसे देखते हुए अपील का निस्तारण किया गया और स्पष्ट किया गया कि आरोपित को निचली अदालत और उच्च न्यायालय द्वारा कैद की कोई सजा नहीं सुनाई गई।

हालांकि, बाद की जांच और शीर्ष अदालत के महासचिव की रिपोर्ट से सामने आया कि प्रथम दृष्टया अभियुक्त ने कैद से बचने के लिए पीठ को गुमराह किया। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस अनिरूद्ध बोस की पीठ ने कहा कि सर्वोच्‍च न्यायालय के महासचिव की रिपोर्ट पर गौर करने के बाद हमने पाया कि याचिकाकर्ता एस शंकर ने हैदराबाद की सीबीआई अदालत के विशेष अदालत के 31 दिसंबर 2000 को सुनाए गए फैसले की गलत प्रति पेश करके अदालत को गुमराह करने की कोशिश की। 


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