बबलू की पैरोल अर्जी पर केंद्र और उप्र को नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने अंडरवर्ल्ड डान बबलू श्रीवास्तव की पैरोल अर्जी पर केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। ओमप्रकाश श्रीवास्तव उर्फ बबलू श्रीवास्तव ने सुप्रीम कोर्ट से तीन महीने के लिए पैरोल पर रिहाई मांगी है। उसने लंबी अवधि से एकांत कारावास में रहने, एलएलएम की पढ़ाई करने और बीमारियों के आधार
माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अंडरवर्ल्ड डान बबलू श्रीवास्तव की पैरोल अर्जी पर केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। ओमप्रकाश श्रीवास्तव उर्फ बबलू श्रीवास्तव ने सुप्रीम कोर्ट से तीन महीने के लिए पैरोल पर रिहाई मांगी है। उसने लंबी अवधि से एकांत कारावास में रहने, एलएलएम की पढ़ाई करने और बीमारियों के आधार पर पैरोल की गुहार लगाई है।
बबलू फिलहाल कानपुर के कमिश्नर एलडी अरोड़ा की हत्या के जुर्म में उम्रकैद काट रहा है। इसके अलावा भी उस पर कई मामले चल रहे हैं। उसे अगस्त, 1995 में सिंगापुर से प्रत्यार्पित कर भारत लाया गया था। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा व न्यायमूर्ति वी.गोपाला गौड़ा की पीठ ने बबलू के वकील दीपक मसीह की दलीलें सुनने के बाद उसकी पैरोल अर्जी और प्रत्यार्पण शर्तो का उल्लंघन कर दाखिल किए जा रहे मुकदमों को चुनौती देने वाली रिट याचिका पर केंद्र, उत्तर प्रदेश व गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया है। सरकारों को छह सप्ताह में जवाब देना है। इससे पहले मसीह ने बबलू के लिए तीन महीने की पैरोल मांगते हुए कहा कि वह 19 साल चार महीने से जेल में एकांत कारावास काट रहा है। इतनी लंबी अवधि से एकांत कारावास में रहने के आधार पर उसे पैरोल दी जानी चाहिए। उसे पारिवारिक संबंध पुनर्जीवित करने हैं और वह एलएलएम की पढ़ाई भी करना चाहता है। बबलू ने बीमारियों को भी आधार बनाया है। कहा है कि वह मधुमेह, उच्च रक्तचाप और दिल की बीमारी से ग्रसित है। उसे पीठ के दर्द की भी गंभीर समस्या है जिसका इलाज कराना है।
अर्जी में कहा गया है कि उसे सिर्फ एक मामले में उम्रकैद की सजा हुई है। सीआरपीसी की धारा 432 व 433 में राज्य सरकार को दोषियों को माफी देने का अधिकार है। बबलू ने राज्य सरकार के समक्ष माफी अर्जी दे रखी है जो कि लंबे समय से लंबित है। मालूम हो कि बबलू श्रीवास्तव 19 सालों से जेल में है। इस दौरान उसे कभी जमानत नहीं मिली। सिर्फ तीन बार 3-4 घंटे के लिए हिरासत में पैरोल मिली है। एक बार 2004 में चुनाव का पर्चा दाखिल करने के लिए। दूसरी बार 2005 में बहन की शादी में शामिल होने के लिए और तीसरी बार उसकी किताब 'अधूरा ख्वाब' की रिलीज पर कुछ घंटे की हिरासत में पैरोल मिली थी। पैरोल अर्जी के अलावा बबलू की रिट याचिका में सरकारों को उसके खिलाफ नए केस दर्ज करने और उनमें आगे की कार्रवाई से रोकने की मांग की गई है। गुजरात में फंट्टा केस में उसके खिलाफ मामला दर्ज किए जाने का भी विरोध किया। उसका कहना है कि ये प्रत्यार्पण शर्तो का उल्लंघन है।
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