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'समलैंगिकता सामाजिक बुराई, गुजराती फिल्‍म को टैक्‍स छूट नहीं'

सुप्रीम कोर्ट ने गुजराती फिल्‍म मेघधनुष - द कलर ऑफ लाइफ को टैक्‍स फ्री करने से इंकार कर दिया है। दो न्‍यायाधीशों की पीठ ने कहा कि समलैंगिकता कुछ लोगों के लिए सामाजिक बुराई की तरह है। यह फिल्‍म सत्‍य घटना पर आधारित है, जिसमें राजपिपला के गे राजकुमार मानवेंद्र

By Manoj YadavEdited By: Published: Sat, 19 Sep 2015 03:43 PM (IST)Updated: Sat, 19 Sep 2015 03:45 PM (IST)

अहमदाबाद। सुप्रीम कोर्ट ने गुजराती फिल्म मेघधनुष - द कलर ऑफ लाइफ को टैक्स फ्री करने से इंकार कर दिया है। दो न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि समलैंगिकता कुछ लोगों के लिए सामाजिक बुराई की तरह है। यह फिल्म सत्य घटना पर आधारित है, जिसमें राजपिपला के गे राजकुमार मानवेंद्र सिंह गोहिल की कहानी दिखाई गई है।

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केआर देवमणि ने इस फिल्म को बनाया है, जिसमें समलैंगिक की पीड़ा को दर्शाया गया है। मूवी को सेंसर बोर्ड की ओर से पास कर दिया गया है, लेकिन फिल्म को गुजरात सरकार ने यह कहते हुए टैक्स फ्री करने से इंकार कर दिया है कि यह समलैंगिकता को बढ़ावा देती है। इसके कारण समाज में वैमनस्य फैल सकता है और कोई भी सभ्य परिवार इसे नहीं देखना चाहेगा।

राज्य के कानून के मुताबिक ऐसी टैक्स राहत 1 अप्रैल 1997 के बाद गुजराती भाषा में बनी फिल्मों को दी जाती है। इसके अलावा बुरी प्रथाओं, अंधभक्ित, सती प्रथा, दहेज और अन्य सामाजिक बुराइयों आदि का चित्रण करने वाली फिल्मों को टैक्स फ्री नहीं किया जाता है। गुजरात हाई कोर्ट ने फिल्म को टैक्स छूट दिए जाने का फैसला सुनाते हुए कहा था कि किसी फिल्म को इसलिए नहीं रोका जा सकता, कयोंकि वह विवादास्पद मुद्दे पर बनी है।

हाईकोर्ट ने कहा कि गुजरात सरकार ने देवमणि को अभिव्यक्ित की स्वतंत्रता देने से इंकार किया है। राज्य सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए कहा कि यह फिल्म सामाजिक बुराई की सीमा में आती है। सुप्रीम कोट र्ने अप्रैल 2014 में दिए गए हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे दे दिया है।

जस्टिस अनिल आर दवे और आदर्श के गोयल ने गुजरात सरकार की अपील को स्वीकार कर लिया। बेंच ने कहा कि फिल्म को टैक्स छूट नहीं दिए जाने का अंतरिम आदेश जारी रहेगा और इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया।

वर्ष 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक सेक्स पर प्रतिबंध लगाने वाले औपनिवेशिक कालीन कानून को देश में बहाल रहने दिया और इसके लिए कानून बनाने के लिए संसद को कहा। अदालत के इस फैसले से मानव अधिकार समूह चकित रह गए।


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