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सुप्रीमकोर्ट ने लंबित मामलों और बड़े देनदारों की मांगी सूची

यह आदेश मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने बैंकों और वित्तीय संस्थानों के फंसे कर्ज का मुद्दा उठाने वाली गैर सरकारी संस्था सेन्टर फार पब्लिक इंटरेस्ट लिटीगेशन की याचिका पर दिये हैं।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Tue, 03 Jan 2017 08:06 PM (IST)Updated: Tue, 03 Jan 2017 09:11 PM (IST)

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। बैंको के फंसे कर्ज की वसूली पर सुप्रीमकोर्ट सख्त है। मंगलवार को कोर्ट ने कर्ज वसूली ट्रिब्युनल (डीआरटी) में ढंचागत संसाधनों की कमी पर सरकार से सवाल करते हुए पूछा है कि क्या मौजूदा संसाधनों में तय सीमा में कर्ज वसूली का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। कोर्ट ने सरकार से कर्ज वसूली के समूचे तंत्र की जानकारी मांगते हुए कर्ज वसूली के पुराने लंबित मामलों और 500 करोड़ से ज्यादा की देनदारी वाली कंपनियों की सूची पेश करने को कहा है।

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यह आदेश मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने बैंकों और वित्तीय संस्थानों के फंसे कर्ज का मुद्दा उठाने वाली गैर सरकारी संस्था सेन्टर फार पब्लिक इंटरेस्ट लिटीगेशन की याचिका पर दिये हैं। कोर्ट ने केंद्र सरकार को चार सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल कर पांच बिन्दुओं पर जवाब मांगा है। कोर्ट ने पूछा है कि क्या डीआरटी और डीआरटी अपीलीय ट्रिब्युनल के मौजूदा ढांचागत संसाधनों और उपलब्ध स्टाफ के साथ संशोधित कानून में तय की गई समय सीमा में कर्ज वसूली का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। क्या नये कानून में कर्ज वसूली की जो नयी समयसीमा तय की गयी है उसके पहले मौजूदा ढांचागत संसाधनों के बारे में कोई वैज्ञानिक अध्ययन किया गया था। क्या सरकार की मंशा ट्रिब्युनल्स में न्यायिक और गैर न्यायिक स्टाफ तथा अन्य ढांचागत संसाधन बढ़ाने की है अगर हां तो ट्रिब्युनल के कामकाज को प्रभावी करने के लिए संसाधन बढ़ाने की दिशा में क्या उपाय किये जाएंगे। संशोधित कानून में तय की गयी समयसीमा में ट्रिब्युनल के लंबित मुकदमें निपटाने का लक्ष्य हासिल करने के लिए संसाधन बढ़ाए जाने की समयबद्ध कार्ययोजना पेश की जाये। इसके अलावा कोर्ट ने सरकार से कहा है कि वह कर्ज वसूली ट्रिब्युनल में लंबित दस साल से ज्यादा पुराने मामलों और 500 करोड़ से ज्यादा की देनदारी वाली कंपनियों के नामों की सूची पेश करे।

कोर्ट ने कहा है कि हलफनामा दाखिल करने के इस निर्देश का कर्ज वसूली के मामलों का आंकलन कर रही सरकार द्वारा गठित समिति का कामकाज प्रभावित नहीं होना चाहिए।

कोर्ट ने कर्ज वसूली के मुकदमों के जल्दी निपटारे के लिए डीआरटी ट्रिब्युनल गठित किये जाने के बावजूद मुकदमों के वर्षो लंबित होने पर चिंता जताई। कोर्ट ने कहा कि डीआरटी गठित होने के पहले सितंबर 1990 तक विभिन्न अदालतों में कर्ज वसूली के 15 लाख से ज्यादा मुकदमें लंबित थे। इनमें बैंको का 5622 करोड़ और वित्तीय संस्थानों का 391 करोड़ रुपया फंसा था। 1993 में डीआरटी एक्ट बना ट्रिब्युनल गठित हुईं। अभी देश भर में 34 डीआरटी और 5 अपीलीय ट्रिब्युनल हैं। 2015-16 में यहां करीब 16000 मामले निपटे जिसमें 34000 करोड़ शामिल थे। सरकार ने कोर्ट में बताया था कि पांच लाख करोड़ की राशि से संबंधित करीब 70000 मुकदमें डीआरटी में लंबित हैं जिसमें ज्यादातर दस साल से ज्यादा पुराने हैं। कोर्ट ने कहा कि 1993 के कानून में 180 दिन की सीमा तय है फिर भी मामले वर्षो से लंबित हैं। अगस्त 2016 में ट्रिब्युनल के मुकदमें जल्दी निपटाने के लिए कानून में संशोधन किया गया।

कोर्ट ने कहा है कि जल्दी निपटारे का संशोधित कानून अपने आप लक्ष्य नहीं प्राप्त कर सकता क्योंकि काम के अनुपात में ट्रिब्युनल में संसाधन कम हैं। इलाहाबाद के डीआरटी अध्यक्ष ने गत 9 दिसंबर को मुख्य न्यायाधीश को चिट्ठी लिख कर कहा है कि मौजूदा संसाधनों में उनका काम करना असंभव है। कोर्ट ने कहा कि ये डीआरटी में संसाधनों की कमी का सूचक है। ट्रिब्युनलों के सुचारु काम करने और कानून का लक्ष्य पाने के लिए इन्हें संसाधन मुहैया कराने के उपाय होने चाहिये।


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