सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति को दहेज हत्या के आरोपों से किया बरी, HC ने सुनाई थी 10 साल की सजा
सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति को अपनी पत्नी की दहेज हत्या के आरोपों से बरी कर दिया है। ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट ने इसी मामले में उस व्यक्ति को दस साल जेल की सजा सुनाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को पलट दिया।
नई दिल्ली, एएनआइ। सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति को अपनी पत्नी की दहेज हत्या के आरोपों से बरी कर दिया। ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट ने इस मामले में उसे 10 वर्ष जेल की सजा सुनाई थी। न्यायमूर्ति यूयू ललित, विनीत शरण और एस रवींद्र भट्ट की पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष आइपीसी की धारा 304-बी (दहेज हत्या) और 498-ए (दहेज विरोधी कानून) के तहत आरोप साबित करने में विफल रहा है।
याचिकाकर्ता संदेह के लाभ का हकदार है। सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के नौ दिसंबर, 2019 के आदेश को रद कर दिया। अभियोजन पक्ष के अनुसार, पति-पत्नी डेढ़ साल तक साथ रहे। पत्नी ने दो अक्टूबर, 1998 को आग लगाकर आत्महत्या कर ली। मौत के समय पत्नी ने बताया कि आग लगाने का तात्कालिक कारण पति के साथ घरेलू कलह था। बचाव पक्ष के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि पत्नी ने खुद को ही आग लगाई थी। कुछ गवाहों के अस्पष्ट बयानों के आधार पर इसे दहेज हत्या का मामला नहीं माना जा सकता।
मप्र- हाई कोर्ट से वित्त सचिव सहित अन्य को अवमानना नोटिस
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने पूर्व आदेश की नाफरमानी के रवैये को आ़़डे हाथों लिया। इसी के साथ वित्त सचिव अनुराग जैन सहित अन्य को अवमानना नोटिस जारी कर जवाब-तलब कर लिया। इसके लिए चार सप्ताह का समय दिया गया है। न्यायमूर्ति नंदिता दुबे की एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान अवमानना याचिकाकर्ता अधारताल, जबलपुर निवासी आरके श्रीवास्तव की ओर से अधिवक्ता अनिरद्घ पांडे ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि अवमानना याचिकाकर्ता जवाहरलाल नेहरू कृषिषॉ विश्वविद्यालय, जबलपुर में कार्यरत था। उसे नियमानुसार सातवें वेतनमान का लाभ नहीं दिया गया।
कायदे से यह लाभ एक जनवरी, 2016 से दिया जाना था। 2017 में सेवानिवृत्ति हो गई। लिहाजा, सेवानिवृत्ति के बाद भी इंसाफ की ल़़डाई जारी रही। हाई कोर्ट ने पूर्व में याचिका का इस निर्देश के साथ निराकरण किया था कि नियमानुसार शिकायत दूर करते हुए अपेक्षित लाभ प्रदान किया जाए। इसके बावजूद निर्धारित समयावधि निकल गई और सातवें वेतनमान का लाभ नहीं दिया गया। इसीलिए अवमानना याचिका के जरिये नए सिरे से हाई कोर्ट आना पड़ा।