Subhas Chandra Bose: 74 साल पुरानी किताब, नेताजी के अवशेषों को वापस लाने की मांग और सरकार कर रही ये काम
सुभाष चंद्र बोस के जीवन से जुड़ी 74 साल पुरानी किताब सामने आई है। बताया जा रहा है कि 1949-50 में रक्षा मंत्रालयके लिए आईएनए के इतिहास पर किताब लिखी गई थी। जिसे आज तक गोपनीय रखा गया है। किताब से जुड़ा का एक नोट सामने आया है।
नई दिल्ली, एजेंसी। देश भर में नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Subhas Chandra Bose) की 126वीं जयंती मनाई गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने सोमवार को उन्हें श्रद्धांजलि दी। इस मौके पर पीएम मोदी ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में नेताजी पर बनने वाले राष्ट्रीय स्मारक के मॉडल का अनावरण किया। साथ ही उन्होंने पराक्रम दिवस के अवसर पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अंडमान और निकोबार में 21 द्वीपों का नामकरण भी किया। इनका नाम 21 परमवीर चक्र विजेताओं के नाम पर रखा गया है। इन वीरों में विक्रम बत्रा और अब्दुल हमीद जैसे नाम शामिल हैं। अब इन द्वीपों को परमवीर चक्र विजेताओं के नाम से जाना जाएगा।
आजाद हिंद फौज के पराक्रम की प्रशंसा
अपने वर्चुअल संबोधन में पीएम मोदी ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के महत्व को बताते हुए कहा कि अंडमान वो भूमि है जहां पहली बार तिरंगा फहराया गया था। जहां पहली बार स्वतंत्र भारत की सरकार बनी थी। आज सभी लोग आजाद हिंद फौज के पराक्रम की प्रशंसा कर रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती को देश पराक्रम दिवस के रूप में मनाता है। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में नेताजी का स्मारक अब लोगों के दिलों में और अधिक देशभक्ति का संचार करेगा।
अंडमान की भूमि में कई नायकों को किया गया था कैद
पीएम मोदी ने कहा कि वीर सावरकर और देश के लिए लड़ने वाले कई अन्य नायकों को अंडमान की इस भूमि में कैद किया गया था। उन्होंने बताया कि 4-5 साल पहले जब वो पोर्ट ब्लेयर गए, तब उन्होंने वहां के 3 मुख्य द्वीपों के लिए भारतीय नाम समर्पित किए थे। प्रधानमंत्री ने ये भी कहा कि बीते 8-9 सालों में नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़े ऐसे कितने काम देश में हुए हैं, जिन्हें आजादी के तुरंत बाद होना चाहिए था। पीएम मोदी ने दिल्ली में इंडिया गेट पर स्वतंत्रता सेनानी की होलोग्राम प्रतिमा का अनावरण किया था।
74 साल पुरानी किताब का जिक्र
इस बीच, सुभाष चंद्र बोस के जीवन से जुड़ी 74 साल पुरानी किताब सामने आई है। बताया जा रहा है कि 1949-50 में रक्षा मंत्रालयके लिए 'आईएनए के इतिहास' पर किताब लिखी गई थी। जिसे आज तक गोपनीय रखा गया है। इस किताब को दिवंगत प्रोफेसर प्रतुल चंद्र गुप्ता के नेतृत्व में इतिहासकारों की एक टीम ने संकलित किया था। शोधकर्ताओं ने जनता के लिए इसे जारी कराने का कई बार प्रयास किया। यहां तक कि केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय को आश्वासन भी दिया था कि वो इसे 2011 के जुलाई के अंततक प्रकाशित कर देगी। लेकिन ये संभव नहीं हो सका।
टीएमसी सांसद ने किया नोट का जिक्र
किताब से जुड़ा का एक नोट सामने आया, जिसे टीएमसी सांसद व नेताजी के जीवन पर रिसर्च करने वाले शोधकर्ता सुखेंदु शेखर रे ने साझा किया था। नोट में बताया गया कि इस किताब के प्रकाशन से किसी भी देश के साथ भारत के संबंधों पर असर नहीं पड़ेगा। लेकिन नेताजी की मृत्यु से संबंधित इस किताब का पेज (186-191) अधिक विवादास्पद होने की संभावना है। नोट में ये भी कहा गया कि किताब के इन पन्नों में इस बात का जिक्र है कि सुभाष चंद्र बोस विमान दुर्घटना से जीवित बच गए हों। हालांकि, इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है। रहस्य का खुलासा किताब के प्रकाशन के बाद ही हो सकेगा।
डीएनए के लिए अवशेषों को वापस लाने की मांग
टीएमसी सांसद ने आगे बताया कि नेताजी के साथी आबिद हसन सहित अन्य चश्मदीद गवाहों ने गवाही दी है कि बोस की मृत्यु 18 अगस्त, 1945 को ताइपे में एक हवाई दुर्घटना में हुई थी। हालांकि कुछ लोगों को इस पर संदेह है। दूसरी ओर, नेताजी के परिवार के अधिकांश सदस्य, उनकी बेटी अनीता बोस फाफ और परपोते व प्रख्यात इतिहासकार सुगातो बोस मानते हैं कि नेताजी की मृत्यु 1945 में ताइपे में दुर्घटना में हुई थी। वो मांग करते रहे हैं कि विमान दुर्घटना के बाद जापान में रखे अवशेषों को वापस लाया जाए और डीएनए परीक्षण किया जाए ताकि इस मुद्दे का हमेशा के लिए समाधान हो सके।
ये भी पढ़ें: