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जानिए भारत के किस इलाके में दुल्हन नहीं दूल्हे की होती है विदाई!

मेघालय के इस हिस्से में समाज का वह रूप मिलता है जिसमें संपत्तियों पर अधिकार स्त्री के हाथ में होता है यानी मां के बाद संपत्ति बेटी के हाथ में जाती है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 28 Mar 2019 02:14 PM (IST)Updated: Fri, 29 Mar 2019 08:44 AM (IST)
जानिए भारत के किस इलाके में दुल्हन नहीं दूल्हे की होती है विदाई!

[आलोक रंजन]। जरा कल्पना करें ऐसे स्थान की, जहां की नदी का पानी इतना साफ हो कि उसके गहरे तल को भी साफ-साफ देखा जा सकता हो। उसमें चलने वाली नाव हवा में लटके रहने का एहसास कराती हो। जहां मौजूद पत्थरों पर प्रकृति द्वारा की गई चित्रकारी नजर आती हो। जहां हिमालय भी झुककर धरती से मिलना चाहता हो...। चौंक गए न! पर यह संभव है।

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आज के समय में, जब हम हर तरफ प्रदूषण और गंदगी का साम्राज्य देख रहे हैं, हो सकता है कि ऐसी बातें आपको कपोल-कल्पित लगें, लेकिन उत्तर-पूर्व में ऐसी जगहों की कमी नहीं, जहां ऐसी कल्पनाएं साकार नजर आती हैं। उत्तर-पूर्वी राज्य मेघालय की सीमा पर स्थित डाउकी और श्नोंगपेडेंग ऐसे ही इलाके हैं। यहां की सबसे खास बात यह है कि आप यहां ऊपर भारत और नीचे बांग्लादेश का दीदार कर सकते हैं।

कुदरत का समृद्ध रूप

पश्चिमी जयंतिया की पहाड़ियों में बसे ये इलाके प्रकृति के अद्भुत उपहार हैं। इसका अंदाजा आप यहां शिलांग से बाहर निकलते ही लगा सकते हैं। ऊंची-ऊंची पहाड़ियों के बीच बलखाती सड़क और पेड़- पौधों की कच्ची गंध इस अनछुए इलाके में आपका स्वागत करती है। पक्षी प्रेमी हैं तो यहां आना और सार्थक लगेगा। रंग-बिरंगे पक्षी अपने मधुर कलरव से आपका मन मोह लेते हैं। थोड़ा ठहरकर आप यहां का सौंदर्य निहारना चाहते हैं तो दूर तक लहरदार पहाड़ियों को निहारने में ही घंटों लग सकते हैं। उन रास्तों पर बसे गांव पहाड़ों के सलोने बच्चों के समान लगते हैं, जहां से पूर्वोत्तर की आम जिंदगी चमकती दिखती है। रास्ते के दोनों ओर पहाड़ियों की ऊंची-नीची शृंखलाएं हैं। जहां-जहां वे नीची होती हैं, वहां-वहां रंग-बिरंगे फूल खिले मिलते हैं। दूर-दूर तक घास वाली पहाड़ियां बहुत आकर्षक लगती हैं। यदि शाम को डाउकी पहुंचते हैं तो ऊपर से नीचे देखने पर अद्भुत दृश्य उपस्थित होता है। नीचे स्थित घरों से आने वाली रोशनी छोटे-छोटे तारों-सी छिटकी हुई लगती है।

अंतिम छोर पर पहुंचने का रोमांच

अपने देश के अंतिम छोर पर पहुंचने का रोमांच अलग ही होता है। जब अपनी सीमा में रहते हुए दूसरे देश का जनजीवन दिखे तो यह बात और खास होती है। इस रोमांच को अनुभव करने के लिए डाउकी मुफीद जगह है। डाउकी बॉर्डर भारत और बांग्लादेश के बीच के कुछेक सड़क संपर्कों में से एक है। भारत में डाउकी और बांग्लादेश में तमाबील के बीच भारत-बांग्लादेश की यह दूरी शून्य हो जाती है। भारत से बांग्लादेश को कोयले की आपूर्ति के लिए इसी सीमा का प्रयोग किया जाता है। श्नोंगपेडेंग के झूलते हुए पुल से लेकर डाउकी की ऊंचाई से बांग्लादेश दिखता है। यह शांत अंतरराष्ट्रीय सीमा है, जहां से एक-दूसरे देश की समानता और अंतर को महसूस करना एक रोचक अनुभव हो सकता है।

स्वच्छता की सामूहिक जिम्मेदारी

इन इलाकों को भले ही एशिया के सबसे स्वच्छ गांव का प्रमाणपत्र न मिला हो, लेकिन यहां की स्वच्छता किसी का भी ध्यान आकर्षित कर सकती है। साफ-सफाई सामूहिक जिम्मेदारी है, इसे सचमुच यहां देख सकते हैं। यहां के लोग अपने घर और आसपास को ही साफ नहीं रखते, बल्कि घरों से निकले कूड़े के निपटान की व्यवस्था भी रखते हैं। सामूहिक साफ-सफाई का बेमिसाल उदाहरण है डाउकी नदी और इसका खूबसूरत तट। स्वच्छता को लेकर यहां के लोग स्व-अनुशासित और स्व-प्रेरित हैं।

उन्मुक्त और खुशनुमा जीवन

डाउकीश्नोंगपेडेंग के गांवों के बीच ट्रेकिंग के लिए काफी मुफीद जगहें हैं। ट्रेकिंग करते हुए प्राकृतिक छटा के अतिरिक्त जो बात ध्यान खींचती है, वह है यहां के स्थानीय निवासियों का उन्मुक्त-खुशनुमा जीवन। पान से लाल होठों पर मुस्कान होती है और पर्यटकों के स्वागत के लिए खुला दिल। अपने खेतों में, सड़क पर कठिन श्रम करते हुए भी उनको इस तरह खुश देखकर बाकी लोग भी खुश हो जाते हैं। स्थानीय नागरिक लामिकी बताते हैं कि डाउकी ही नहीं, बल्कि समूचे मेघालय में लोग यह मानते हैं कि जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य खुशी होता है। खुश होने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहिए।

कैंपिंग व कयाकिंग का लुत्फ

डाउकी व श्नोंगपेडेंग में नदी के किनारे कैंपिंग का आनंद उठाया जा सकता है। यहां स्थानीय लोगों द्वारा कैंपिंग करवाई जाती है। आप अपने साथ टेंट आदि ले जाकर भी कैंपिंग कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए स्थानीय ग्राम समिति से अनुमति लेनी होगी। यहां कयाकिंग भी कर सकते हैं।

यहां दुल्हन नहीं, दूल्हे की होती है विदाई! 

मेघालय के इस हिस्से में समाज का वह रूप मिलता है, जिसमें संपत्तियों पर अधिकार स्त्री के हाथ में होता है यानी मां के बाद संपत्ति बेटी के हाथ में जाती है। इससे निर्णय लेने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। गारो, खासी और जयंतिया जनजातियों में स्त्री की यह भूमिका देश के अन्य भागों से उसे विशेष बनाती है। इसलिए वहां की स्त्रियों को अपने परिवार के पुरुषों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। यहां की स्त्रियां अपनी रुचि और अपने कौशल के आधार पर अपने पेशे चुनती हैं। उन पर यह नहीं थोपा जा सकता कि वे घर के काम ही करेंगी।

यहां से बाहर के भारत की कल्पना कीजिए, जहां रात के दस बजे किसी पान की दुकान पर कोई लड़की काम करते हुए नहीं मिल सकती, लेकिन डाउकी की छोटी-छोटी दुकानें चलाने वाली लड़कियों को देखकर स्त्री को लेकर इस समाज की सहजता का पता लगता है। शेष भारत के लोगों के लिए यह कौतूहल का विषय हो सकता है कि विवाह के बाद पुरुष अपने घर नहीं, बल्कि अपनी पत्नी के घर रहे। यहां दुल्हन के बजाय दूल्हे की विदाई होती है। उसका घर छूटता है। पुरुष यदि कोई पारिवारिक व्यवसाय कर रहे हैं तो अपनी बहन के बड़ी होने पर वह व्यवसाय उसे सौंपकर अपनी पत्नी के काम में हाथ बंटाते हैं। डाउकी के समाज का यह अद्भुत रूप केवल पर्यटक की भांति देखने लायक ही नहीं है, बल्कि बहुत कुछ सीखने लायक भी है कि कैसे देश के अन्य हिस्सों के पुरुष स्त्रियों के प्रति सहज होना सीख सकते हैं। मातृसत्तात्मक समाज होने के कारण वहां स्त्रियों के प्रति हिंसा लगभग नगण्य है।

ऐसा नजारा जैसे प्रकृति का हो कोई चमत्कार!

डाउकी और उन्मगोट, दोनों एक ही नदी के नाम हैं। इस नदी के बिना यहां की बात पूरी नहीं होती। दो पहाड़ों के बीच बहती नदी की यह धारा एशिया की सबसे स्वच्छ नदी की धारा है। इसकी सबसे बड़ी खासियत है इसका साफ पारदर्शी पानी। पानी भी ऐसा शीशे की तरह कि नदी की तली बिल्कुल स्पष्ट दिखती है। इससे इस नदी के विभिन्न भागों पर तैर रही नावें हवा में लटकी हुई प्रतीत होती हैं। यह अनुभव भारत के लिए बिल्कुल अनूठी बात है। यही कारण है कि यहां आने वाले लोग नदी के इस रूप का आनंद उठाना नहीं भूलते। स्थानीय लोग भी अपनी नावों में पर्यटकों और यात्रियों को यह अविस्मरणीय अनुभव प्रदान कराने के लिए तैयार रहते हैं। नदी उनकी आजीविका के मुख्य साधन के रूप में भी है। वे न सिर्फ पर्यटन से होने वाली आय के लिए इस नदी पर निर्भर हैं, बल्कि वे इसमें मछली भी पकड़ते हैं और इसके पानी का उपयोग अपनी फसलों की सिंचाई के लिए भी करते हैं।

यह नदी खासी और जयंतिया की पहाड़ियों की प्राकृतिक विभाजक रेखा है। यहां मार्च-अप्रैल में नौकादौड़ का आयोजन भी होता है। पहाड़ियों के बीच यह नदी पारदर्शी हरे रंग की विशाल नागिन की भांति बलखाती हुई मालूम होती है। इसका सौंदर्य न सिर्फ पहाड़ को बांधे रखता है, बल्कि भारत और बांग्लादेश के लोगों के जीवन के खूबसूरत हिस्सों को जोड़े रखता है। जब आप नाव पर सवार होकर नदी की सतह पर उतरते हैं तो ऐसा लगता है, जैसे प्रकृति का कोई चमत्कार देख रहे हों। नदी तल से पंद्रह-बीस फीट की दूरी के बावजूद आप तली को साफसाफ देख सकते हैं। ऐसा लगता है कि नदी के तल और नाव के बीच कोई तरल पारदर्शी शीशा लगा हो।

नदी की सतह पर सूरज की छाया!

एक नाव में एक बार में अधिकतम चार लोगों को बिठाया जाता है। एक घंटे की इस यात्रा में आपको एक छोटे से द्वीप पर भी ले जाया जाता है। वह द्वीप अपने छोटे-छोटे सुघड़ पत्थरों के लिए प्रसिद्ध है। लोग डाउकी की निशानी के रूप में इन पत्थरों को ले जाते हैं। इस नदी के छिछले हिस्से में आप नाव से उतरकर तैर भी सकते हैं, क्योंकि यहां तक आतेआते नदी के भीतर का बहाव धीमा हो जाता है। जब आप पानी में होते हैं तो छोटी-छोटी मछलियां आपके साथ तैरती हुई मिलती हैं। ये छोटी-छोटी मछलियां आपके पैरों के पास गुदगुदी करती हैं। इस नदी की सतह पर बनने वाली सूर्य की छाया भी देख सकते हैं। ऐसा नजारा आप देश की किसी और नदी में नहीं पा सकते।

हैरान करते हैं पेड़ों की जड़ों से बने पुल रवाई गांव

यह गांव शिलांग से 82 किमी. दूर है। यहां पर नदी के ऊपर पेड़ों की जड़ों से बने पुलों की संरचना को देखकर आप दांतों तले अंगुली दबा लेंगे। रबड़ के पेड़ की जड़ों को आपस में उलझाकर बनाया गया यह पुल किसी अजूबे से कम नहीं है। यह देखकर आपको अपने पूर्वजों की सूझबूझ पर सहज ही गर्व होगा कि किस तरह अपने कौशल का प्रयोग कर उन्होंने आने वाली पीढ़ियों के जीवन को सुविधाजनक बना दिया। रिवाई गांव में आप बड़े-बड़े नींबू के पेड़ बहुतायत में देख सकते हैं। पहाड़ से उठते सूरज की सुबह की रेशमी किरणें इसके फलों पर पड़ती हैं तो ये किसी रत्न की भांति चमकने लगते हैं। वसंत में फूलों की खुशबू से भर जाता है यह गांव।

मौलिलांग : शिलांग से लगभग 90 किलोमीटर दूर स्थित यह गांव एशिया का स्वच्छतम गांव है। पूर्वी खासी पहाड़ी जिले में स्थित इस गांव को  ‘ईश्वर का बगीचा’ भी कहा जाता है। सामुदायिक प्रयासों से इस गांव को स्वच्छ बनाया गया है और इसकी झलक आपको यहां की हर गतिविधि में मिल जाएगी। इस गांव का सौंदर्य अद्भुत है। सबसे शानदार बात यह है कि गांव से रिवाई गांव के लिविंग रूट ब्रिज तक ट्रैकिंग की बहुत सुंदर व्यवस्था है। इस दौरान दोनों ओर प्राकृतिक रूप से खिले हुए आर्किड बहुत आकर्षित करते हैं।

पुखलेइन का मालपुए-सा स्वाद

डाउकी में भारतीय और तिब्बती दोनों ही प्रकार के भोजन की प्रमुखता है। इसके साथ ही चाइनीज खाने का चलन भी यहां जोर पकड़ रहा है। आप थुक्पा, नमकीन चाय आदि के साथ साथ देसी समोसे-जलेबी का भी आनंद उठा सकते हैं। स्थानीय खानपान में मांसाहार की अधिकता है, पर शाकाहारियों के लिए भी खानपान की कमी नहीं है। यहां मोमोज की कई किस्में मिल जाती हैं। यहां का एक प्रसिद्ध व्यंजन है-जदोह। इसका स्वाद बहुत विशिष्ट होता है। इसमें चावल को पोर्क के साथ पकाया जाता है। कभी-कभी इसे मुर्गे या मछली के साथ भी पकाया जाता है और इसे काले तिल के साथ पकाए गए सोयाबीन के साथ खाया जाता है। यहां का एक खास व्यंजन है पुखलेइन, जो यहां खूब पसंद किया जाता है। इसे चावल के आटे में गुड़ मिलाकर बनाया जाता है, फिर तेल में तलकर पकाया जाता है। इसका स्वाद कुछ-कुछ मालपुए जैसा लगता है।

ढाबों का संचालन स्त्रियों के हाथ

यदि आप मांसाहार के शौकीन हैं तो यहां के रास्तों में आपको कई ढाबे मिलेंगे। वे दिखने में छोटे जरूर हो सकते हैं, लेकिन यहां के व्यंजनों का स्वाद आपको लंबे समय तक याद रह जाएगा। पर जो चीज खास तौर पर आकर्षित करेगी, वह है इन ढाबों का संचालन करतीं स्त्रियां। आम जनजीवन में स्त्रियों की ऐसी भागीदारी यहां आने वाले लोगों को सुखद आश्चर्य से भर देती है।

शहद और बांस के अचार की खरीदारी

हां की स्थानीय आबादी मुख्य रूप से पर्यटन, कृषि और नदी से मिलने वाली मछलियों पर निर्भर है। यहां से आप स्थानीय संतरे खरीद सकते हैं। ‘मंडारिन’ किस्म के ये संतरे बहुत मीठे होते हैं। इसके साथ ही यहां की सुपारी और स्थानीय किस्म के पान के पत्ते खरीद सकते हैं। अभी यहां पर पर्यटकों को ध्यान में रखकर कुछ भी बेच देने या ब्रिकी करने वाली अपसंस्कृति नहीं आई है, इसलिए बहुत-सी शुद्ध चीजें आपको यहां मिल जाएंगी, जैसेस्थानीय शहद और बांस का अचार आदि।

कैसे और कब जाएं?

मेघालय की राजधानी शिलांग से डाउकी की दूरी करीब 82 किमी. है। शिलांग देश के अन्य हिस्सों से हवाई और सड़क मार्ग से जुड़ा है। शिलांग या उमरोई एयरपोर्ट राजधानी से 30 किमी. की दूरी पर है। गुवाहाटी से भी शिलांग सड़क मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है, जो यहां से करीब 100 किमी. की दूरी पर है। डाउकी और श्नोंगपेडेंग जाने के लिए अक्टूबर से अप्रैल तक का मौसम अधिक उपयुक्त माना जाता है।


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