कोर्ट का इन्कार, सीखने में अक्षम छात्रा को नहीं मिलेगी डिग्री
उच्च न्यायालय ने डिस्कैलकुलिया पीडि़त छात्र को डिग्री प्रदान करने के लिए आइआइटी बांबे को निर्देश देने से मना कर दिया।
मुंबई, प्रेट्र। सीखने में अक्षमता या किसी मानसिक समस्या को शारीरिक दिव्यांगता नहीं माना जा सकता है। यह कहते हुए बांबे हाई कोर्ट ने लर्निग डिसेबिलिटी (सीखने में अक्षमता) की शिकार आइआइटी छात्रा को राहत देने से इन्कार कर दिया है। उच्च न्यायालय ने डिस्कैलकुलिया पीडि़त छात्र को डिग्री प्रदान करने के लिए आइआइटी बांबे को निर्देश देने से मना कर दिया।
डिस्कैलकुलिया (गणित के सवालों को बहुत देर से समझना) ग्रस्त छात्रा का आइआइटी में दाखिला कोर्ट के निर्देश पर ही हुआ था। उसने तीन वर्षीय मास्टर ऑफ डिजाइन प्रोग्राम की परीक्षा भी पास कर ली है। लेकिन उसे आइआइटी से डिग्री नहीं मिल रही है।
न्यायमूर्ति एमएस सकलेचा एवं जस्टिस एके मेनन की पीठ ने 2012 में दाखिल छात्रा की याचिका को खारिज कर दिया। अपनी याचिका में छात्रा ने कहा था कि वह लर्निग डिसेबिलिटी से जुड़ी गंभीर समस्या डिस्कैलकुलिया से पीडि़त है। इस प्रकार वह शारीरिक दिव्यांगता की श्रेणी में आती है। लेकिन आइआइटी बांबे इस आधार पर उसे मास्टर ऑफ डिजाइन प्रोग्राम में दाखिला देने से इन्कार कर रहा है। आइआइटी सीखने में अक्षमता को दिव्यांगता नहीं मान रहा। इस पर हाई कोर्ट ने उस समय अंतरिम राहत प्रदान करते हुए सशर्त दाखिला लेने का निर्देश दे दिया। कहा कि अदालत के अंतिम आदेश पर ही उसके दाखिले की स्थिति निर्भर करेगी।
याचिकाकर्ता छात्रा के अनुसार, अंतिम आदेश के तहत ही उसने तीन वर्षीय कोर्स की परीक्षा पास कर ली, लेकिन आइआइटी उसे डिग्री नहीं दे रहा है। इस हफ्ते के शुरू में दिए अपने आदेश में हाई कोर्ट ने कहा, 'यद्यपि याचिकाकर्ता कोर्स पास घोषित होने की अधिकारी हो सकती है, लेकिन उसे आइआइटी कोर्स पास घोषित करने की और राहत नहीं दी जा सकती है।' कोर्ट का कहना था, 'डिस्कैलकुलिया को शारीरिक दिव्यांगता मानने की याचिकाकर्ता की दलील को स्वीकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि डिस्कैलकुलिया मानसिक प्रक्रिया को प्रभावित करने वाली एक समस्या है।'