श्रमिकों में रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए ‘ई-श्रम पोर्टल’ को राष्ट्रीय रोजगार सेवा से जोड़ा जा रहा
सामाजिक स्तर पर हो रहे तमाम बदलावों के कारण कार्यबल में महिलाओं की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। ऐसे में इससंदर्भ में समन्वित रूप से आगे बढ़ने की आवश्यकता है। आत्मनिर्भरता की दिशा में बढ़ते कदम। प्रतीकात्मक
विरजेश उपाध्याय। महिलाओं के सशक्तीकरण में आर्थिक आत्मनिर्भरता की बड़ी भूमिका है। आर्थिक आत्मनिर्भरता के दो स्तंभ हैं, संपत्ति का स्वामित्व और रोजगार। जहां तक स्वामित्व का विषय है तो उसमें सरकारी स्तर पर उठाए जाने वाले कदम काफी हद तक पूरे हो चुके हैं, बचे हुए हिस्से सामाजिक जागृति का ज्यादा है। इसके उलट रोजगार का विषय एक ऐसा मुद्दा है जो अर्थव्यवस्था के स्वरूप में परिवर्तन से प्रभावित होता है। रोजगार में बराबर की भागीदारी, तेज आर्थिक वृद्धि और सामाजिक बराबरी सभी को एक साथ सुनिश्चित करती है।
यही कारण है कि कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी पिछले दो दशकों से आर्थिक विमर्शों में एक महत्वपूर्ण मुद्दे के तौर पर देखी जा रही है। कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी कैसे बढ़ेयह बात भारत के संदर्भ में दो कारणों से और भी ज्यादा अहम हो जाती है। पहला विश्व की तुलना में भारत में महिलाओं की रोजगार में भागीदारी कम रही है और दूसरा, पिछले कई दशकों से यह दर और भी नीचे आई है। कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी और आर्थिक विकास के संबंध को देखें तो विश्व में किसी भी देश में आर्थिक वृद्धि के शुरुआती दौर में यह घटती है। इसके पीछे दो मुख्य कारण होते हैं, पहला जब परिवारों की आय बढ़ती है तो बुनियादी जरूरतों की पूर्ति के लिए महिलाओं को भी कामकाजी बनना पड़ता है।
ऐसे में यदि सामाजिक मान्यताएं महिलाओं को घरों से बाहर निकलकर काम करने को प्रोत्साहित नहीं करती हैं तो बहुत हद तक यह संभव है कि महिलाएं कार्यबल से बाहर हो जाएं। दूसरा, इस दौर में महिलाओं का शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात भी तेजी से बढ़ता है। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार जो शिक्षा के लिए महज उतने संसाधन ही जुटा पाते थे जिससे बेटों की शिक्षा हो पाए, तब यह बहुत हद तक संभव था कि उन परिवारों की लड़कियां छोटे-मोटे काम में लगें, परंतु जब आर्थिक वृद्धि से उनकी क्षमता बढ़ती है तब वे लड़कियों को भी पढ़ाई के लिए भेजते हैं। भारत में पिछले तीन दशकों में महिलाओं की कार्यबल में जो भागीदारी कम हुई है उसके पीछे ये कारण भी रहे हैं।
रोजगार की बदलती प्रवृत्ति
आधुनिक तकनीक रोजगार की प्रवृत्ति को बदल रहा है। गिग इकोनमी ने रोजगार की परिभाषा को बदल िदया है। कहीं से, कभी भी और जितना कार्य करना चाहें उतना ही करने की आजादी महिलाओं के कार्यबल में भागीदारी को सकारात्मक तरीके से प्रभावित करेगी। पिछले कुछ वर्षों में लिए गए सही निर्णयों और अनुपालन ने भारत को डिजिटल अर्थव्यवस्था के क्त्र में अ षे ग्रणीदेशों में खड़ा कर दिया है। वर्तमान में हमारा देश अब उस मोड़ पर आ खड़ा हुआ है जहां से महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी बढ़नी चाहिए। महिलाओं की बुनियादी शिक्षा में काफी प्रगति हो चुकी है और शिक्षित महिलाएं उच्च शिक्षा के लिए विषयों के चयन में सिर्फ डिग्री नहीं, बल्कि रोजगार के अवसरों को भी देख रही हैं। महिलाओं ने अपने करियर के दायरे में विस्तार किया है। सामाजिक सोच में भी परिवर्तन आया है। पति-पत्नी दोनों के काम करने को लेकर सामाजिक स्वीकार्यता बढ़ी है।
वैसे इन सकारात्मक संकेतकों के साथ-साथ कुछ चिंता के विषय भी हैं। जैसे महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी दर अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग है। इसमें अंतर भी बहुत अधिक है। इसके पीछे हर राज्य के कुछ अपने विशेष कारण और समस्याएं हैं। इन समस्याओं को समझने और उनका समाधान करने के लिए केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकारों को भी आगे आना होगा। इसी प्रकार कई मसले ऐसे हैं जिनका हल श्रम मंत्रालय और इसके संस्थान व विभाग अकेले नहीं कर सकते हैं, उन्हें अन्य मंत्रालयों के विभागों और संस्थानों के साथ समन्वय करना होगा। उदाहरण के तौर पर कौशल विकास पर प्रधानमंत्री के प्रयासों के उत्साहवर्धक परिणाम तो सामने आए हैं, परंतु जिस उच्च कौशल वाले कार्यबल की मंजिल की तरफ उन्होंने इशारा किया, यदि उसे सामने रखें तो अभी बहुत काम करने की आवश्यकता है। गणित, विज्ञान, अभियांत्रिकी और चिकित्सा शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी बढ़े इसके लिए शिक्षा मंत्रालय को आगे आना होगा। इसी प्रकार से महिलाओं को व्यावसायिक शिक्षा से सक्रिय रूप से जोड़ने और उन्हें संबंधित प्रासंगिक प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है।
इस दिशा में कई संबंधित मंत्रालयों और विभागों को आगे आना होगा। यह सही है केंद्र की वर्तमान मोदी सरकार में इन तमाम मसलों पर काम हो रहा है, परंतु पूर्ण समन्वय के साथ इसमें तेजी लाने की आवश्यकता भी है। अभी हाल ही में शहरी विकास मंत्रालय और राष्ट्रीय कौशल विकास निगम ने एक लाख निर्माण मजदूरों के कौशल प्रमाणीकरण के लिए साथ में काम करने का निर्णय लिया है। पिछले एक साल में श्रम मंत्रालय के ‘ई-श्रम पोर्टल’ से 400 अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वाले असंगठित क्षेत्र के लगभग 28 करोड़ श्रमिक जुड़ चुके हैं। यह सराहनीय है कि श्रमिकों में रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए ‘ई-श्रम पोर्टल’ को राष्ट्रीय रोजगार सेवा और उद्यम पोर्टल से भी जोड़ा जा रहा है। इसके अलावा, इन श्रमिकों के कौशल विकास के लिए भी समन्वित रूप से कार्य किया जाना चाहिए, ताकि उनकी आमदनी को बढ़ाया जा सके।
[अध्यक्ष, दत्तोपंत ठेंगड़ी राष्ट्रीय श्रमिक शिक्षा एवं विकास बोर्ड]